शिवाजी के चकमे पर दांत पीसता रह गया था औरंगजेब, दुर्लभ पांडुलिपि ने खोले कई राज
शिवाजी की कैद पर मिली दूसरी दुर्लभ पांडुलिपि। पहली पांडुलिपि से करीब 75 साल अधिक पुरानी। ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में चल रहा सूचीकरण।
आगरा, विपिन पाराशर। वृंदावन में ब्रज संस्कृति शोध संस्थान की असूचीबद्ध प्राचीन पांडुलिपियों में ऐतिहासिक काव्य ग्रंथ सेवा दी वार की पांडुलिपि मिली है। इसमें छत्रपति शिवाजी के मुगल बादशाह औरंगजेब की कैद में आगरा से बचकर निकलने का वर्णन है।
संस्थान के सचिव लक्ष्मी नारायण तिवारी ने बताया कि प्रसिद्ध विद्वान पं. उदय शंकर दुबे के निर्देशन में इन दिनों असूचीबद्ध प्राचीन पांडुलिपियों का सूचीकरण हो रहा है। इसमें कवि कुलपति मिश्र रचित ऐतिहासिक काव्य ग्रंथ 'सेवा दी वार' की पांडुलिपि मिली है। इस ग्रंथ में पंजाबी भाषा के कुल 44 छंद हैं, लेकिन लिपि नागरी है।
ग्रंथ में छत्रपति शिवाजी के बादशाह औरंगजेब की कैद से निकल भागने का वर्णन है। कवि कुलपति मिश्र आमेर नरेश मिर्जा राजा जय सिंह के पुत्र राम सिंह के आश्रित थे और आगरा के इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के प्रत्यक्षदर्शी थे। इस दुर्लभ ग्रंथ की अब तक मात्र एक पांडुलिपि ही ज्ञात थी, लेकिन अब संस्थान में ग्रंथ की यह दूसरी पांडुलिपि है, जो पहली पांडुलिपि से लगभग 75 वर्ष अधिक पुरानी है।
इसका प्रतिलिपि काल विक्रम संवत 1830 (सन 1773) है। शिवाजी पर कार्य कर रहे पुणे के प्रसिद्ध युवा इतिहासकार डॉ. केदार फालके का मत है कि यह पांडुलिपि एक महत्वपूर्ण खोज है। इससे शिवाजी के आगरा प्रकरण को व्यापक संदर्भों में समझा जा सकेगा।
शिवाजी को इसलिए किया कैद
छत्रपति शिवाजी की बढ़ती शक्ति रोकने के लिए मुगल बादशाह ने आमेर नरेश मिर्जा राजा जय सिंह को दक्कन (महाराष्ट्र) भेजा। जय सिंह ने शिवाजी को औरंगजेब से संधि करने के लिए बाध्य किया और शिवाजी पांच मार्च सन 1666 को आगरा बादशाह औरंगजेब से मिलने आए। उनकी सुरक्षा का दायित्व राजा जय सिंह ने अपने पुत्र राजकुमार राम सिंह को सौंपा।
शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ आगरा आए, लेकिन औरंगजेब के अपमानजनक व्यवहार से दुखी होकर मुगल दरबार में जाने से मना कर दिया। इससे नाराज औरंगजेब ने शिवाजी को राम सिंह के शिविर में नजरबंद कर लिया। औरंगजेब छत्रपति शिवाजी की कैद में ही हत्या करना चाहता था। शिवाजी 17 अगस्त 1666 को राम ङ्क्षसह के सहयोग से मुगल सैनिकों को चकमा देकर भाग निकले और मथुरा, प्रयाग, काशी तथा अमरकंटक होते हुए 20 नवंबर 1666 को रायगढ़ (महाराष्ट्र) पहुंचे।
इस तरह औरंगजेब की कैद से निकले थे शिवाजी
छत्रपति शिवाजी को आगरा में जब एहसास हो गया कि औरंगजेब ने उन्हें कैद तो कर ही लिया है, दो दिन बाद वह उन्हें मौत के घाट उतारना चाहता है। तो शिवाजी ने भागने की रणनीति बनाई और खुद की बीमारी का बहाना बना लिया। बीमार शिवाजी के उपचार के लिए जब दरबारी पहुंचे तो शिवाजी ने कहा कि उनकी बीमारी फलों के उसारा करने के बाद ही ठीक हो सकती है। दरबारियों ने ये बात औरंगजेब को कही तो औरंगजेब ने फलों की व्यवस्था कर दी। जब टोकरियों में रखकर फल राम सिंह के उस शिविर में पहुंचे जहां शिवाजी कैद थे। वहां फलों को हटाकर एक टोकरी में शिवाजी बैठ गए और दूसरी टोकरी में सांभाजी को बिठा दिया। इसके बाद रामसिंह की मदद से 17 अगस्त 1666 को वे फलों की टोकरी में बैठ कर शिविर से बाहर निकल आए और बेटे सांभाजी के साथ मथुरा होते हुए प्रयागराज पहुंचे। इसी दौरान शिवाजी को पता चला कि औरंगजेब ने मुनादी करवा दी है कि किसी भी क्षेत्र में एक व्यक्ति किसी किशोर के साथ मिले तो उसे तत्काल दरबार में पहुंचाया जाए। औरंगजेब की इस मुनादी की जानकारी होने के बाद शिवाजी ने प्रयागराज में बेटे सांभाजी को तीर्थ पुरोहित को सौंप दिया और कहा कि जब तक वे महाराष्ट्र से खुद किसी को न भेजें सांभाजी की सुरक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है। सांभाजी को प्रयाग में छोड़कर शिवाजी संतों की टोलियों के बीच होकर 20 नवंबर 1666 को रायगढ़ महाराष्ट्र पहुंचे। इतना ही नहीं शिवाजी को भय था कि औरंगजेब फिर भी उनकी खोज करेगा। तो महारा्र्र पहुंचने के बाद उन्होंने परिवार को सूचना दी कि रास्ते में सांभाजी की मौत हो गई है और उनका क्रियाकर्म भी कर डाला। जब औरंगजेब को इसकी जानकारी हुई तो उसने शिवाजी की खोज बंद करवा दी। जानकारी मिलने के बाद शिवाजी ने सांभाजी को अपने दूत के साथ रायगढ़ बुलवा लिया।