Move to Jagran APP

सावन का अंतिम सोमवार आज, शिवालयों में उमड़ रही आस्था शहर हो या देहात

आगरा और आसपास के शिवालय हैं आस्था के प्रमुख केंद्र। सावन के सोमवारों को रहता है यहां का विशेष महत्व।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Aug 2018 12:16 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 12:16 PM (IST)
सावन का अंतिम सोमवार आज, शिवालयों में उमड़ रही आस्था शहर हो या देहात
सावन का अंतिम सोमवार आज, शिवालयों में उमड़ रही आस्था शहर हो या देहात

आगरा(जेएनएन): शिव की महिमा अपरंपार, होती पूरी कामना जो आता शिव के द्वार। सुलहकुल की नगरी आगरा में शिव मंदिरों की संख्या यूं तो सैंकड़ों में है। शिव के प्रिय माह सावन में इन मंदिरों की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है। सावन मास का आज अंतिम सोमवार है। निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में जन मानस पूजते हैं तो शहर से लेकर गांव और वानिकी क्षेत्रों में स्थित शिवालयों में बम भोले की गूंज उठती है। गली- गली में शिवालय यहां यूं ही नहीं कहे जाते। प्रस्तुत है ताज नगरी और आस पास के क्षेत्रों में स्थित कुछ शिवालयों की महिमा पर रिपोर्ट..।

loksabha election banner

कचौराघाट भोलेनाथ का मंदिर: आगरा- इटावा बॉर्डर पर कचौराघाट गांव में स्थित है भगवान भोलेनाथ का मंदिर। यहां यमुना भी भोलेनाथ को प्रणाम करते हुए बहती है। ग्रामीण इसे जो मांगा सो पाया वाला मंदिर भी कहते हैं। जब नाव से व्यापार होता था, तब बंजारे गांव में आकर रुकते थे। उन्होंने ही करीब 400 साल पहले इस मंदिर का निर्माण कराया। इसे बंजारों का मंदिर भी कहते हैं। कचौराघाट में बंजारों ने यमुना नदी के किनारे चार शिव मंदिर बनवाए। इन सभी मंदिरों में ग्रामीण पूजा-अर्चना करते है। शिवरात्रि पर विशाल मेले का आयोजन होता है। मन्नत पूरी होने के बाद ग्रामीण घंटा व नेजा चढ़ाते हैं। मंदिर की वास्तुकला बेहद शानदार है। मंदिर के किनारे पर दो बुर्ज बने हुए हैं, जिनमें भोलेनाथ के साथ नंदी महाराज विराजमान हैं। यमुना नदी मंदिर को छूते हुए बहती है, जिससे उसका सौंदर्य और बढ़ जाता है। सावन मे श्रद्धालु प्रतिदिन बेलपत्र आदि चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। भूतेश्वर मंदिर: बाह से बटेश्वर जाने वाले रास्ते पर खेड़ा देवीदास गांव के पास बना भूतेश्वर महादेव मंदिर बहुत प्राचीन है। यहां दिन-रात अखंड ज्योति जलती है। सुबह से रात तक श्रद्धालु दर्शनों को पहुंचते हैं। यहां पर मनौती के लिए लिखित अर्जी लगाने की परंपरा है। अपनी मनोकामना कागज पर लिखकर मंदिर में नियत स्थान पर रखी जाती है। मंदिर करीब 700 साल पुराना है। मान्यता है कि भूतेश्वर नाम क्षेत्रीय लोगों ने इसलिए दिया कि जब सुबह ग्रामीण जागे तो सड़क से कुछ दूरी पर खेत में विशाल मंदिर बना देखा। उसमें शिवलिंग और नंदी महाराज विराजमान मिले। ग्रामीणों ने कहा यह भूतों द्वारा रात में बनाया गया है। इसी से इसका नाम भूतेश्वर पड़ा। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को अगर कोई बाहों में समेटता है तो दोनों हाथ कभी नहीं मिल पाते। शिवलिंग के सामने नंदी महाराज विराजमान हैं। पांच मंजिला मंदिर के हर भाग में मूर्ति स्थापित करने की जगह थी। क्षेत्रीय लोगों का कहना है मंदिर निर्माण होते-होते सुबह हो गई, इस वजह से मूर्तियों की स्थापना नहीं हो सकी। मान्यता है कि यदि मंदिर के अंदर कोई हथियार लेकर प्रवेश करता है तो हथियार छूटकर गिर पड़ता है या व्यक्ति स्वयं ही जमीन पर फिसलकर गिर पड़ता है।

बड़ागांव का शिव मंदिर: बाह कस्बे के नजदीक बड़ागांव में यमुना के बीहड़ में टीले पर स्थित है भगवान शिव का मंदिर। मंदिर पर पहुंचने के बाद यमुना का मनोहारी दृश्य श्रद्धालुओं का मनमोह लेता है। इस प्राचीन मंदिर की मान्यता केवल गांव तक ही सीमित नहीं है, बाह तहसील जब दस्यु प्रभावित थी तो बड़े-बड़े दस्यु यहां मत्था टेकने आते थे।

मंदिर की स्थापना ग्रामीणों ने करीब 110 साल पहले की थी । बीहड़ में टीले पर बनाए मंदिर को बाद में वन खंडेश्वर नाम दिया गया। पुराने समय में दस्यु मंदिर पर पहुंच पूजा-अर्चना करते और घंटा चढ़ाते थे, आज भी ग्रामीण यहां पूजा-अर्चना करके घंटा चढ़ाते हैं। बड़ागांव के यमुना के बीहड़ में करीब 300 फीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर में श्रद्धालु सीढि़यां चढ़कर पहुंचते हैं। मंदिर में भोले शंकर की मूर्ति विराजमान है, साथ हैं नंदी महाराज। भोले का परिवार न होने के कारण इसे वन खंडेश्वर नाम दिया गया।

वनखंडी महादेव मंदिर: फतेहपुर सीकरी से तीन किलोमीटर आगरा की ओर हाईवे पर स्थित हैं वनखंडी महादेव का प्राचीन मंदिर। यहां दिन-रात अखंड ज्योति के साथ ही 14 वर्षो से दिन रात अखंड रामायण पाठ हो रहा है। दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं। श्रावण के सोमवार को मेला लगता है। वहीं महाशिवरात्रि पर सैकड़ों कांवड़ चढ़ाई जाती है। मंदिर तीन सौ साल प्राचीन है। मंडीगुड के बौहरे माखन लाल शुक्ला ने इसका निर्माण कराया। मंदिर की खोदाई के दौरान निकले शिवलिंग को ही मंदिर में स्थापित किया गया। मंदिर वन क्षेत्र (जंगल) मे बना था, इसलिए इनका नाम वनखंडी महादेव पड़ा। वनखंडी महादेव मंदिर के गर्भगृह पर स्थित विशाल चौकोर गुंबद की भीतरी दीवारों पर तीन सौ वर्ष पूर्व देवी देवताओं की आकृतियां पेंटिंग के रूप मौजूद हैं। गुंबद के बाहर चारों दिशाओं में बंदर की मूर्तिया हैं। बंडा वाली बगीची के महादेव: नामनेर क्षेत्र में ईदगाह कटघर के पास स्थित है बंडा वाली का बगीची। यहां का शिवलिंग और मंदिर चार सौ साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर को लेकर क्षेत्रीय लोगों में काफी मान्यता है। क्षेत्रीय लोग बताते हैं कि महाराष्ट्र से नामदेव नाम के बाबा ने यहां आकर बगीची बसाई। उनके चेले का नाम बंडा था। बाबा नामदेव की मृत्यु की बाद उनके चेले ने ही इस बगीची की देखभाल की। और उन्हीं के नाम पर इसका नाम बंडा वाली बगीची पड़ गया। बगीची में दोनों बाबा की समाधी और प्राचीन कुआं भी मौजूद है, जिस पर करीब दो सौ साल पुराने शिलालेख लगे हैं। हालांकि आर्मी क्षेत्र में होने के कारण इसका ज्यादा विस्तार नहीं हो पाया है। शिव मंदिर नहटौली: बाह कस्बे सेछह किमी दूर नहटौली गांव के बाहर भगवान शिव का मंदिर है। प्राचीन मंदिर में ग्रामीणपूजा-अर्चनाकर मनौती मांगते हैं। यहां आस-पास के कई गांवों के श्रद्धालु सावन के महीने में आते हैं। मंदिर की स्थापना ग्रामीण ब्रह्मालाल के पूर्वज ने करीब 100 साल पहले की थी। गांव के बाहर बीहड़ के किनारे मंदिर स्थापित है। यह मंदिर रेलवे लाइन के नजदीक बना हुआ है। मंदिर में अंदर शिवलिंग और प्रवेश द्वार पर नंदी महाराज विराजमान हैं। सावन में गांव की महिलाएं-युवतियां बेल पत्र आदि शिव को चढ़ाकर मनौती मांगती हैं। बाह से छह किमी इटावा मार्ग पर नहटौली गांव पर उतरने के बाद करीब एक किमी यमुना की ओर बीहड़ में पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर मंशा देवी मंदिर मार्ग पर है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.