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वृंदावन की लक्ष्‍मी ने अनजान रिश्तों से बांधी भावनाओं की डोर Agra News

लावारिस शवों को खुद मुखाग्नि देती हैं डॉ. लक्ष्मी गौतम। निराश्रित महिलाओं के लिए बेटी बन करती हैं सेवा निभाती हैं सभी दायित्व।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 12:10 PM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 12:10 PM (IST)
वृंदावन की लक्ष्‍मी ने अनजान रिश्तों से बांधी भावनाओं की डोर Agra News
वृंदावन की लक्ष्‍मी ने अनजान रिश्तों से बांधी भावनाओं की डोर Agra News

आगरा, विनीत मिश्र। ये अनजाने रिश्तों की एक सच्ची कहानी है। ये रिश्ते कागजी दस्तावेज तो नहीं बन सके, लेकिन अपनेपन की डोर से बंधते गए। जीते जी ही नहीं, दुनिया छोड़कर जाने के बाद भी। संवेदनाओं के इन मजबूत रिश्तों की डोर थामे हैं डॉ. लक्ष्मी गौतम। निराश्रितों के लिए बेटी बनकर सेवा करती हैं तो लावारिस शव का अंतिम संस्कार कर इंसानियत का फर्ज भी निभाती हैं।

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धर्मनगरी वृंदावन में रहने वालीं डॉ. लक्ष्मी गौतम एक संस्थान में प्राचीन भारतीय इतिहास व संस्कृति पढ़ाती हैं। आश्रय सदन या फिर सड़क, किसी अनजान और असहाय की खबर मिलते ही लक्ष्मी पहुंच जाती हैं हमदर्द बनकर। उसकी हर संभव सहायता करती हैं। लावारिस शव हो तो घाट पर ले जाकर मुखाग्नि देती हैं। कनक फाउंडेशन नाम से सेवाभावी संस्था चला रहीं लक्ष्मी की तस्वीरें इन दिनों सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रही हैैं, लोग उनके कामों को सराह रहे हैैं। असहायों, अनजानों की मदद का उनका जज्बा मिसाल बन चुका है।

ऐसे शुरू हुआ सफर

लक्ष्मी बताती हैं कि वर्ष 2011 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आश्रय सदनों में रह रहीं निराश्रित महिलाओं पर सर्वे कराया गया। सर्वे के दौरान उनकी समस्याएं पूछते-जानने के दौरान एक सवाल ने झकझोर दिया- जिन महिलाओं का कोई नहीं, उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है? पता चला कि मौत के बाद शव बोरे में भरकर संबंधित विभाग की कार्रवाई के इंतजार में इधर-उधर छोड़ दिए जाते हैं। सर्वे रिपोर्ट तो भेज दी मगर, निराश्रितों का पारिवारिक सदस्य बनने की भी ठान ली। रिपोर्ट पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आश्रय सदनों में मृत्यु होने पर वीडियोग्राफी कराने के निर्देश दिए थे। 2012 में उन्होंने कनकधारा फाउंडेशन बनाया।

अब तक कितने अनजानों का अंतिम संस्कार किया? लक्ष्मी कहती हैं कि कभी गिनती नहीं की, औसतन हर साल ये संख्या 20 से 25 रहती ही है।

लक्ष्मी कहती हैं कि एक अंतिम संस्कार में चार से साढ़े चार हजार रुपये का खर्च आता है। यह खर्च खुद वहन करती हैं। दुनिया में जो आया है, सबको मोक्ष मिले, बस यही जीवन का उद्देश्य है। फाउंडेशन आश्रय सदन में राशन का इंतजाम कराता है। निराश्रितों का इलाज भी कराता है। आश्रयसदन में किसी भी महिला की मौत होती है, तो उसका अंतिम संस्कार करने के बाद 13 दिन बाद शुद्धीकरण कार्यक्रम भी करती हैं।

जब बेटे के साथ किया अंतिम संस्कार

डॉ. गौतम के पति विजय कुमार बैंक में सहायक प्रबंधक पद से रिटायर्ड हैं। बड़ा बेटा अवन एनपीसीआइएल में साइंटिफिक अफसर है, बेटी अवनिका झारखंड में कोर्ट सब रजिस्ट्रार है। सबसे छोटा बेटा शुभम मर्चेंट नेवी में कैप्टन है। दो साल पहले का वाकया सुनाते हुए लक्ष्मी गौतम ने बताया कि छुट्टी पर शुभम घर आया था। वृंदावन में सड़क पर शव पड़ा होने की खबर मिली। शुभम को लेकर पहुंची। शव को श्मशान घाट ले गई। शाम होने को थी, स्कूटी की हेडलाइट में मुखाग्नि दी। 


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