Pitra Paksha 2020: ब्राह्मण भाेज से पहले, जानिए भाेजन का पहला भाग किसको एवं क्यों है जरूरी
Pitra Paksha 2020 शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हवन में जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते।
आगरा, जागरण संवाददाता। महालय, श्राद्ध पक्ष, पितृ पक्ष यानि पितरों को तृप्त करने के पवित्र दिन। वो दिन जब देह त्याग परलोक सिधारे पितरों का चिर आशीष उनके वंशज फिर से पा सकते हैं। लेकिन पितरों काे तृप्त करने से पहले एक महत्वपूर्ण बात है जिसे ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है। अमूमन हर सनातन धर्मी अपने पूर्वजों को श्राद्ध के रूप में अपनी श्रद्धा अर्पित करता है। पितरों की पसंद के अनुसार ही भाेजन आदि पकवान बनाकर ब्राह्मण भोज कराया जाता है लेकिन इससे पूर्व भोजन को अपने किसी आैर को समर्पित करने का नियम है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार श्राद्ध में भाेजन का पहला भाग अग्नि को अर्पित किया जाना बेहद जरूरी है।
जानें सबसे पहले किसने किया था श्राद्ध
पंडित वैभव जोशी ने धर्म ग्रंथों के आधार पर जानकारी देते हुए बताया कि महाभारत काल में श्राद्ध के बारे में पता चलता है, जिसमें भीष्म पितामाह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में कई बातें बताई हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि श्राद्ध की परंपरा कैसे शुरू हुई और धीरे-धीरे जनमानस तक कैसे यह परंपरा शुरू हुई। महाभारत के अनुसार, सबसे पहले महातपस्वी अत्रि ने महर्षि निमि को श्राद्ध के बारे में उपदेश दिया था। इसके बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया।
अग्नि देव को भाेजन का पहला भाग अर्पित करने का रहस्य
महर्षि निमि को देखकर अन्य श्रृषि मुनि पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते- करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए। लगातार श्राद्ध का भोजन पाने से देवताओं पितरों को अजीर्ण रोग हो गया और इससे उन्हें परेशानी होने लगी। इस परेशानी से निजात पाने के लिए वे ब्रह्माजी के पास गए और अपने कष्ट के बारे में बताया। देवताओं और पितरों की बातें सुनकर उन्होंने बताया कि अग्निदेव आपका कल्याण करेंगे। अग्निदेव ने देवातओं और पितरों को कहा कि अब से श्राद्ध में हम सभी साथ में भोजन किया करेंगे। मेरे पास रहने से आपका अजीर्ण भी दूर हो जाएगा। यह सुनकर प्रसन्न हो गए। इसके बाद से ही सबसे पहले श्राद्ध का भोजन पहले अग्निदेव को दिया जाता है, उसके बाद ही देवताओं और पितरों को दिया जाता है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हवन में जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता, उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते। इसलिए श्राद्ध में अग्निदेव को देखकर राक्षस भी वहां से चले जाते हैं। अग्नि हर चीज को पवित्र कर देती है। पवित्र खाना मिलने से देवता और पितर प्रसन्न हो जाते हैं।