Radhashtmi 2019: अनूठा है बरसाना का पर्व, जानिए क्या है पूजन विधान और महत्व Agra News
छह सितंबर को ब्रज में मनाई जाएगी राधाष्टमी। दोपहर में होता है राधारानी का अभिषेक।
आगरा, जागरण संवाददाता। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद उनकी विशेष सखी राधारानी का जन्मोत्सव ब्रज की धरा पर मनाया जाएगा। भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार इस वर्ष यह 6 सितंबर को राधाष्टमी मनायी जाएगी। राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊंची पहाडी़ पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। इस दिन बरसाना में बहुत रौनक रहती है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। धार्मिक गीतों तथा कीर्तन के साथ उत्सव का आरम्भ हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा
राधाष्टमी कथा
डॉ शोनू बताती हैं कि राधाजी, वृषभानु गोप की पुत्री थी। राधाजी की माता का नाम कीर्ति था। पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रुप में इन्हें राधाजी मिली थी। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया।
इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था, तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थी, लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। ऎसा कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी। राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है।
ऐसे होता है विशेष पूजन
राधाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत का पालन किया जाता है। राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराते हैं स्नान कराने के पश्चात उनका श्रृंगार किया जाता है। राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति को विग्रह में स्थापित करते हैं। मध्यान्ह के समय श्रद्धा तथा भक्ति से राधाजी की आराधना कि जाती है। धूप-दीप आदि से आरती करने के बाद अंत में भोग लगाया जाता है। कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्ण की संयुक्त रुप से पूजा की बात कही गई है।
होते हैं मूल शांत
इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा किया जाता है। सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी तथा बूरा और औषधियों से मूल शांति होती है। अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रो के साथ श्यामाश्याम का अभिषेक किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार राधाष्टमी का व्रत करने वाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते है। जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वह सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।
ब्रज में राधाष्टमी
डॉ शोनू कहती हैं कि ब्रज और बरसाना में जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाई जाती है। वृंदावन में भी यह उत्सव बडे़ ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिरों इस दिन को उत्सव के रुप में मनाया जाता है। वृन्दावन के राधा बल्लभ मंदिर में राधा जन्म की खुशी में गोस्वामी समाज के लोग भक्ति में झूम उठते हैं। मंदिर का परिसर राधा प्यारी ने जन्म लिया है, कुंवर किशोरी ने जन्म लिया है के सामूहिक स्वरों से गूंज उठता है।
मंदिर में बनी हौदियों में हल्दी मिश्रित दही को इकठ्ठा किया जाता है और इस हल्दी मिली दही को गोस्वामियों पर उड़ेला जाता है। इस पर वह और अधिक झूमने लगते हैं और नृत्य करने लगते हैं। राधाजी के भोग के लिए मंदिर के पट बन्द होने के बाद, बधाई गायन होता है। इसके बाद दर्शन खुलते ही दधिकाना शुरु हो जाता है। इसका समापन आरती के बाद होता है।
मिलता है मोक्ष
वेद तथा पुराणादि में राधाजी का कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है। राधाजन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसंपन्न बनता है, भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है। श्रीमद देवी भागवत मे श्री राधा जी कि पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं।