Holi 2020: बस कुछ देर और फिर होगी फालैन के पंडा की अग्निपरीक्षा, ये है होली की अनूठी परंपरा
मंगलवार की तड़के साढ़े चार बजे होलिका से निकलेगा मोनू पांडा। 30 फुट के व्यास में 15 फुट ऊंची रखी गयी है होलिका।
मथुरा, जेएनएन। फालैन का विश्व प्रसिद्ध पंडा मेला होलिका पूजन के एवं समाज गायन के साथ सोमवार की दोपहर को शुरू हो गया। आसपास के गांव के हुरियारों की टोलियां गांव में पहुंचने लगी। पूरा गांव अबीर गुलाल से सराबोर हो गया। फालैन में रखी विशाल होलिका का फालैन के हुरियारों ने पूजन कर मेला शुरू किया। जिसके बाद पैग़ाव, विशम्बरा, सुपाना, राजागड़ी, नगरिया डें वीसा आदि गावों से हुरियारे पूजन को पहुंचने लगे हैं। गांंव फालैन के लोगों ने उनका गुलाल लगाकर स्वागत किया है। कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण भी हुरियारों के स्वागत के लिए पहुंचे। उधर सभी गांवों के हरियारों ने प्रहलाद मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना की एवं मोनू पंडा के सकुशल निकलने के लिए प्रहलाद जी महाराज से आशीष मांगा।
उधर मोनू पंडा धधकती होलिका से निकलने के लिए पूजा में तल्लीन बैठे हैं। 30 फुट के व्यास में रखी गयी होलिका को सजाया गया है ।मंगलवार की तड़के 4:30 बजे होलिका में अग्नि प्रवेश होगी। जिससे होकर मोनू पंडा उन ऐतिहासिक पलों को साकार करेंगे जिसमे भक्त प्रह्लाद महाराज का होलिका बाल भी बांका नही कर पाई थी।
एक माह से हैं मोनू पंडा घर से दूर
फालैन में धधकते अंगारों से गुजरने के लिए मोनू पंडा एक माह के कठिन तप पर बैठे थे। मोनू पंडा ने जागरण को बताया कि होलिका दहन से ठीक एक माह पूर्व ही उन्होंने अपना घर त्याग दिया था। पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन किया। गांव में बने प्रह्लाद कुंड तट पर बने प्रह्लाद मंदिर में ही मोनू रहे। एक माह तक मोनू घर की दहलीज नहीं चढ़े और पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन किया। मंदिरों में पूजन करने वाले मोनू एक माह तक मंदिर में जमीन पर ही सोए। केवल फलाहार का सेवन किया। चप्पल भी नहीं पहनी। एक माह तक गांव की सीमा से बाहर नहीं गए। रोज सुबह चार बजे उठकर कुंड में स्नान करने के साथ ही चार बजे से सात बजे तक पूजन किया। इसके बाद शाम को साढ़े तीन बजे से सात बजे तक पूजन किया। रात आठ बजे से 11 बजे तक विशेष जाप प्रतिदिन किया।
परंपरा है वर्षों पुरानी
ग्रामीणों के अनुसार वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। ऐसा नहीं है कि इस परंपरा का निर्वाहन कोई एक ही व्यक्ति ही करता हो। जब कोई पंडा जलती होली में से निकलने में असमर्थता व्यक्त करता है तो वह अपनी पूजा करने वाली माला, जिले भक्त प्रहलाद की माला कहते हैं उसे मंदिर में रख देता है। इसके बाद गांव का जो व्यक्ति उसे उठा लेता है वह जलती होली में से निकलता है। विशाल जलती होली से जिस समय पंडा निकलता है उस समय उस होली के आसपास खड़े रहना भी संभव नहीं होता है लेकिन पंडा धधकते अग्नि के बीच से बेदाग निकल जाता है।