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Navratra 2020: अंतिम नवरात्र के पूजन से पहले जान लें हवन की सही और पूरी विधि

Navratra 2020 हवन या यज्ञ साधक के तन और मन को शुद्ध करने के साथ वातावरण को भी स्‍वच्‍छ करता है। हवन के धुएं से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 09:58 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 09:58 AM (IST)
Navratra 2020: अंतिम नवरात्र के पूजन से पहले जान लें हवन की सही और पूरी विधि
हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है।

आगरा, जागरण संवाददाता। नवरात्र में होने वाली प्रतिदिन की साधना को पूर्णता मिलती है अष्‍टमी या नवमी पर होने वाले हवन से। कह सकते हैं कि माता को पूर्णाहुति देकर हम उनको प्रसन्‍न कर सकते हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार हवन महज एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण प्रक्रिया है। हवन या यज्ञ साधक के तन और मन को शुद्ध करने के साथ वातावरण को भी स्‍वच्‍छ करता है। हवन के धुएं से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है। हवन से हर प्रकार के 94 प्रतिशत जीवाणुओं का नाश होता है। घर की शुद्धि तथा सेहत के लिए हर घर में हवन करना चाहिए। हवन के साथ कोई मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ध्वनि तरंगित होती है।

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ये है धार्मिक महत्‍व

पंडित वैभव कहते हैं कि हवन भारतीय परंपरा अथवा सनातन धर्म में शुद्धिकरण का एक कर्मकांड है। पुराणों के अनुसार कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुंचाने की प्रक्रिया को 'यज्ञ' कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वे पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है।

क्‍या है हवन कुंड

हवन कुंड का अर्थ है हवन की अग्नि का निवास स्थान। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आसपास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है

हवन कुंड का आकार

प्राचीनकाल में कुंड चौकोर खोदे जाते थे। उनकी लंबाई, चौड़ाई समान होती थी। यह इसलिए कि उन दिनों भरपूर समिधाएं प्रयुक्त होती थीं। घी और सामग्री भी बहुत- बहुत होमी जाती थींं, इसके कारण अग्नि की प्रचंडता भी अधिक रहती थी। उसे नियंत्रण में रखने के लिए भूमि के भीतर अधिक जगह रहना आवश्यक था। उस‍ स्थिति में चौकोर कुंड ही उपयुक्त थे। पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक महंगाई के कारण किफायत करनी पड़ती है। ऐसी दशा में चौकोर कुंडों में थोड़ी ही अग्नि जल पाती है और वह ऊपर अच्‍छी तरह दिखाई भी नहीं पड़ती। ऊपर तक भरकर भी वे नहीं आते तो कुरूप लगते हैं। ऐसेे में में कुंड इस प्रकार बनने चाहिए कि बाहर से चौकोर रहें। लंबाई-चौड़ाई, गहराई समान हो।

हवन की सामग्री

हवन के लिए आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानी कपूर, लौंग, चावल, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे तथा घी, शकर, जौ, तिल, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरा उपयोगी होता है। हवन के लिए गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी कटोरियां या उपले घी में डुबोकर डाले जाते हैं।

ऐसे करें हवन

हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। सबसे पहले रोज की पूजा करने के बाद अग्नि स्थापना करें फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से हवन शुरू करें।

- ॐ आग्नेय नम: स्वाहा (ॐ अग्निदेव ताम्योनम: स्वाहा)

- ॐ गणेशाय नम: स्वाहा

- ॐ गौरियाय नम: स्वाहा

- ॐ नवग्रहाय नम: स्वाहा

- ॐ दुर्गाय नम: स्वाहा

- ॐ महाकालिकाय नम: स्वाहा

- ॐ हनुमते नम: स्वाहा

- ॐ भैरवाय नम: स्वाहा

- ॐ कुल देवताय नम: स्वाहा

- ॐ स्थान देवताय नम: स्वाहा

- ॐ ब्रह्माय नम: स्वाहा

- ॐ विष्णुवे नम: स्वाहा

- ॐ शिवाय नम: स्वाहा

- ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा

- ॐ स्वधा नमस्तुति स्वाहा

- ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: क्षादी: भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: स्वाहा

- ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा

- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम्/ उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् मृत्युन्जाय नम: स्वाहा

- ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।

ऐसे दें पूर्णाहुति

हवन के बाद गोला में कलावा बांधकर फिर चाकू से काटकर ऊपर के भाग में सिन्दूर लगाकर घी भरकर चढ़ा दें जिसको वोलि कहते हैं। फिर पूर्ण आहूति नारियल में छेद कर घी भरकर, लाल तूल लपेटकर धागा बांधकर पान, सुपारी, लौंग, जायफल, बताशा, अन्य प्रसाद रखकर पूर्ण आहुति मंत्र बोले-

'ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।' 

पूर्ण आहुति के बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर परिवार सहित आरती करके अपने द्वारा हुए अपराधों के लिए क्षमा-याचना करें, क्षमा मांगें। इसके बाद अपने ऊपर किसी से 1 रुपया उतरवाकर किसी अन्य को दें दें।  


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