राज बब्बर जैसे सितारे दिए हैं आगरा के रंगमंच ने, बहुत रोचक है यहां Theater का इतिहास
लोकप्रिय फ़िल्म स्टार राज बब्बर आगरा इप्टा से लंबे समय तक जुडे़ रहे। आगरा में उन्होंने शैलेंद्र रघुवंशी के साथ सूरज का सातवां घोड़ा चाणक्य जैसे नाटक का मंचन किया।
आगरा, आदर्श नन्दन गुप्त। कला संस्कृति के इस नगर में रंगमंच ने कई दशकों से अपने रंग बिखेरे हैं। नाटकों के माध्यम से जहां शुद्ध मनोरंजन किया जाता रहा है, वहीं धर्म, संस्कृति, परंपरा के निर्वाह करने के संदेश भी दिए गए हैं। समय-समय पर राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा की जाती रही है। सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों पर भी प्रहार किए जाते रहे हैं।
आगरा इप्टा के महासचिव दिलीप रघुवंशी के मुताबिक 1942 में आगरा में आधुनिक रंगमंच की शुरुआत हुई थी। आगरा इप्टा के संस्थापक सदस्य राजेंद्र रघुवंशी और बिशन खन्ना ने इस सांस्कृतिक परंपरा की नींव रखी। आगरा के मदन मोहन दरवाजा स्थित राजपूत प्रेस 1942-1943 में आगरा कल्चरल स्क्वैड और 25 जुलाई 1943 के बाद भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के कलाकारों के आश्रम के रूप में रहा। रंगमंच में जब महिला कलाकार ने दी दस्तक शुरुआती दिनों में रंगमंच में महिलाओं का काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। राजेंद्र रघुवंशी की पत्नी अरुणा रघुवंशी ने शहर में पहली बार थियेटर में बतौर महिला काम किया।
आगरा में वर्ष 1946 में 'गोदान' नाटक में उन्होंने धनिया की भूमिका निभाई। 'आज का सवाल ' नाटक एक मई 1942 में सुभाष पार्क में हुआ। उसमें अभिनय भी किया। आगरा कल्चरल स्क्वैड की पहली प्रस्तुति सुभाष पार्क में हुई थी। इसके बाद शहर में निरंतर हिंदी नाटकों का मंचन होने लगा। राजेंद्र रघुवंशी ने मुंशी प्रेम चंद्र के उपन्यास सूरे की आंखें नाम की नाट्य रूपांतरण किया। इसका मंचन सन1952 से 1972 तक चला। इप्टा आज भी लगातार सक्रिय है। जितेंद्र रघुवंशी ने इप्टा को काफी मजबूती दी। उनके निधन के बाद इसकी बागडोर दिलीप रघुवंशी व ज्योत्स्ना रघुवंशी ने सँभाल रखी है। लोकप्रिय फ़िल्म स्टार राज बब्बर आगरा इप्टा से लंबे समय तक जुडे़ रहे। आगरा में उन्होंने शैलेंद्र रघुवंशी के साथ सूरज का सातवां घोड़ा, चाणक्य जैसे नाटक का मंचन किया।
रंगमंच से निकलकर मुंबई में अपनी कलाकारी का लोहा मनवाने वालों में ताजनगरी के कलाकार भी पीछे नहीं है। मुंबई के सुपरहिट अभिनेता और राजनीति में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजबब्बर ने भी आगरा में छात्र जीवन में रंगमंच के कार्यक्रमों में भाग लिया था। जिसके बाद राजबब्बर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ऐसे ही कई कलाकार है जो ताजनगरी से रंगमंच से निकलकर मुबंई के सिनेमा जगत में अपना मुकाम हासिल कर चुके हैं।
रंगलोक संस्था ने पहली बार आगरा में व्यवसायिक थिएटर शुरू किया। डिंपी मिश्र के नेतृत्व में इस संस्था की ओर से शहर में हर महीने एक नाटक का मंचन किया जाता था। डिम्पी को देश व प्रदेश स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है।
वरिष्ठ रंगकर्मी केशव प्रसाद सिंह की अगुवाई में संस्कार भारती आगरा में कई साल से राष्ट्रीय स्तर पर नाट्य महोत्सव का आयोजन करती है। जिसमें देशभर से हर साल सैकड़ों कलाकार जुटते हैं। नतरंजलि थियेटर ग्रुप की निदेशक अलका सिंह ने तो नाट्य क्षेत्र में क्रांति ला दी है। वर्ष में वे कई बड़े आयोजन करती है, जिनमें देश भर के संस्कृतिकर्मी अपने रंग बिखेरते हैं।
फेंड्स थियेटर ग्रुप के अनिल जैन व उमाशंकर मिश्रा नुक्कड़ नाटक और पूर्ण कालिक नाटकों के माध्यम से शहर में चेतना पैदा कर रहे हैं।
भगत ने दी दिशा
आगरा में सबसे पुरानी मंचीय गायन शैली प्रस्तुति की विधा भगत है। रंगकर्मी अनिल शुक्ल ने इसे साल 2006 में पुर्नजीवन दिया। अब श्रीभगवान शर्मा के निर्देशन में भी भगत की प्रस्तुति हो रही है। वहीं 2006 में इस पर काम होने के बाद 2010 में लोहामंडी के पुनियापाड़ा मोहल्ले में भगत की प्रस्तुतियां हुईं। आज शिल्पग्राम के ताजमहोत्सव में होने वाले कार्यक्रमों में भी भगत की प्रस्तुति दी जाती है।
शहर में संचालित हैं ये थिएटर
ताजनगरी में रंगमंच की प्रस्तुतियों के लिए वैसे तो कई स्थान हैं। लेकिन, माथुर वैश्य महासभा भवन, सूरसदन प्रेक्षागृह, नागिरी प्रचारिणी, कलाकृति आदि प्रमुख स्थान है जहां रंगमंच की प्रस्तुतियां होती हैं। कई शिक्षण संस्थानों में भी अब रंगमंच की प्रस्तुति के लिए मंच तैयार हुए हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान में अभी हाल ही में तैयार हुए अटल बिहारी वाजपेयी अंतरराष्ट्रीय सभा भवन, आगरा कॉलेज का गंगाधर शास्त्री भवन और विश्वविद्यालय का जेपी सभागर रंगमंच के लिए तैयार है।
दयाल कला मंच ने किए यादगार नाटक
आगरा के रंगमंच में दयाल प्यारी दयाल का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। रंगमंच के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा याद रहेगा।.इप्टा के साथ उनका नाटक बङी बुआ में उनके अभिनय को काफी सराहा गया। आषाढ़ का एक दिन, पिंड दी कुङी में भी उनके लाजवाब अभिनय था। 90 के दशक में उन्होंने नाट्य ग्रुप दयाल कला मंच की स्थापना की । उनके निर्देशक में कई नाटकों का मंचन किया, जिसमें प्रमुख नाटक थे आत्म हत्या की दुकान, मजनूंं पार्क, चमेली का ढाबा, बाप रे बाप, अपराजिता, तौबा तौबा आदि।
उनके सिखाये कलाकार आज हिन्दी सिनेमा व टीवी के क्षेत्र में अभिनय करके अपने और अपने शहर का नाम रोशन कर रहे हैं, इनमें सत्यव्रत मुदगल, पंकज शर्मा, अर्चना गुप्ता आदि है।
शिव नाट्य केंद्र भी है सक्रिय
शिवा नाट्य केंद्र आगरा जिसके संस्थापक और निदेशक सोमनाथ यादव ने सन 1990मे इससंस्थान की ।संस्था का मूल उददेश्य समाज सेवा के साथ साथ समाज में फैली कुरीतियों पर रंगमंच के माध्यम से लोगो को जागृत करना है।