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Deepawali 2020: खरीददारी के साथ आज है सजने संवरने का भी महत्व, जानिए धनतेरस और छोटी दीवाली का महत्व

Deepawali 2020 इस वर्ष धनतेरस के दिन ही चतुर्दशी तिथि आ रही है। इस दिन खरीदारी करना बेहद शुभ होता है। इस दिन सोने चांदी के आभूषण चांदी का सिक्का लक्ष्मी गणेश जी की मूर्ति बर्तन वस्त्र गिफ्ट आइटम जैसी चीजें खरीदना बेहद उत्तम और शुभ माना जाता है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 13 Nov 2020 09:56 AM (IST)Updated: Fri, 13 Nov 2020 09:56 AM (IST)
Deepawali 2020: खरीददारी के साथ आज है सजने संवरने का भी महत्व, जानिए धनतेरस और छोटी दीवाली का महत्व
इस वर्ष धनतेरस के दिन ही चतुर्दशी तिथि आ रही है। यह प्रदोष काल में आ रही है।

आगरा, जागरण संवाददाता। आज धनतेरस और छोटी दिवाली को एक साथ मनाया जा रहा है। इनकी तारीखों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी क्योंकि तिथि के मुताबिक धनतेरस और छोटी दिवाली एक ही दिन पर पड़ रही हैं। शुक्रवार यानी 13 नवंबर को ये दोनों त्यौहार मनाए जा रहे हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार धनतेरस होने के चलते इस दिन खरीदारी करना बेहद शुभ होता है। इस दिन सोने चांदी के आभूषण, चांदी का सिक्का, लक्ष्मी गणेश जी की मूर्ति, बर्तन, वस्त्र, गिफ्ट आइटम जैसी चीजें खरीदना बेहद उत्तम और शुभ माना जाता है। 

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धनतेरस

धनतेरस को छोटी दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। यह त्यौहार इस वर्ष 13 नवंबर को पड़ रहा है। धनतेरस का मुहूर्त शाम 5 बजकर 34 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 6 मिनट तक है। इस दिन प्रदोष काल शाम 5 बजकर 28 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 7 मिनट तक है। वृषभ काल मुहूर्त शाम 5 बजकर 34 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 29 मिनट तक है।

छोटी दिवाली

नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली, मुख्य त्यौहार से एक दिन पहले मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने की चतुर्दशी तिथि पर छोटी दिवाली मनाई जाती है। इस दिन को नरक चौदस या रूप चौदस भी कहा जाता है। यह त्यौहार 14 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन अभयदान (दीवाली स्नान अनुष्ठान) का शुभ समय सुबह 5:23 से शुरू होकर 6:43 बजे तक का है।

रूप चतुर्दर्शी पूजन

इस वर्ष धनतेरस के दिन ही चतुर्दशी तिथि आ रही है। यह प्रदोष काल में आ रही है। ऐसे में इस दिन रूप चतुर्दशी, हनुमान पूजन, यमदीप दान होगा। मान्यता है कि इस दिन लोग सुबह उबटन लेपन के बाद ही स्नान करते हैं। इससे व्यक्ति का रूप निखरता है। इसके अलावा अनिष्ट के विनाश और लंबी आयु के लिए इस दिन दीपक (चार मुखी) जलाया जाता है। इसे पूरे घर में घुमाया जाता है। फिर इस दीपक को किसी सुनसान स्थान या चौराहे पर रख दिया जाता है।

ये है कथा

रूप चतुर्दशी की कथा के अनुसार एक समय भारत वर्ष में हिरण्यगर्भ नामक नगर में एक योगिराज रहते थे। उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। अत: उन्होंने समाधि लगा ली। समाधि लगाए कुछ ही दिन ‍बीते थे कि उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। बालों में भी छोटे-छोटे कीड़े लग गए। आंखों की रोओं और भौंहों पर जुएं जम गईं। ऐसी दशा के कारण योगीराज बहुत दुखी रहने लगे। इतने में ही वहां नारदजी घूमते हुए वीणा और करताल बजाते हुए आ गए। तब योगीराज बोले- हे भगवान मैं भगवान के चिंतन में लीन होना चाहता था, परंतु मेरी यह दशा क्यों गई? तब नारदजी बोले- हे योगीराज! तुम चिंतन करना जानते हो, परंतु देह आचार का पालन नहीं जानते हो। इसलिए तुम्हारी यह दशा हुई है। तब योगीराज ने नारदजी से देह आचार के विषय में पूछा।

इस पर नारदजी बोले- देह आचार से अब तुम्हें कोई लाभ नहीं है। पहले जो मैं तुम्हें बताता हूं उसे करना। फिर देह आचार के बारे में बताऊंगा। थाेड़ा रुककर नारदजी ने कहा- इस बार जब कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आए तो तुम उस दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा ध्यान से करना। ऐसा करने से तुम्हारा शरीर पहले जैसा ही स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा। योगीराज ने ऐसा ही किया और उनका शरीर पहले जैसा हो गया। उसी दिन से इसको रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। हे भगवान जैसा आपने योगीराज को रूप दिया वैसा सबको देना। 


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