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Deepawali 2020: पंचोत्सव का चौथा पर्व गोवर्धन कल, जानिए महत्व और पूजन विधि

Deepawali 2020 गोवर्धन पूजा के दिन लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से एक पर्वत बनाकर उसे जल मौली रोली चावल फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर उसकी पूजा करते हैं। इसके बाद गोबर से बने इस पर्वत की परिक्रम लगाई जाती है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 14 Nov 2020 04:04 PM (IST)Updated: Sat, 14 Nov 2020 04:04 PM (IST)
Deepawali 2020: पंचोत्सव का चौथा पर्व गोवर्धन कल, जानिए महत्व और पूजन विधि
प्रकृति संवर्धन का संदेश देता दीपोत्सव का चौथा त्योहार गोवर्धन पूजन रविवार को है।

आगरा, जागरण संवाददाता। प्रकृति संवर्धन का संदेश देता दीपोत्सव का चौथा त्योहार गोवर्धन पूजन रविवार को है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी। हिंदू मान्यता के अनुसार गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थें। मगर, भगवान कृष्ण के कहने पर एक वर्ष ब्रजवासियों ने गाय की पूजा की और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा की। तब से हर वर्ष ऐसा किया जाने लगा। जब ब्रजवासियों ने भगवान इंद्र की पूजा करनी बंद कर दी तो वो इस बात से नाराज हो गए और उन्होंने ब्रजवासियों का डराने के लिए पूरे ब्रज को बारिश के पानी में जलमग्न कर दिया।

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भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया। लगातार सात दिन तक भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की। भगवान ब्रह्मा ने जब इंद्र को बताया कि भगवान कृष्ण विष्णु का अवतार हैं तो इस बात को जानकर इंद्र बहुत पछताए और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। इंद्र का क्रोध खत्म होते ही भगवान कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष वह इस पर्वत की पूजा करेंगे और अन्नकूट का उन्हें भोग लगाएंगें। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है।

पूजन विधि

पंडित वैभव कहते हैं कि इस दिन लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से एक पर्वत बनाकर उसे जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर उसकी पूजा करते हैं। इसके बाद गोबर से बने इस पर्वत की परिक्रम लगाई जाती है। इसके बाद ब्रज के देवता कहे जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

अन्‍नकूट का महत्‍व

भगवान श्री कृष्ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया तो वह लगातार सात दिनों तक भगवान ने सात दिन तक अन्न जल ग्रहण नहीं किया था। इसलिए व्रजवासियों ने उन्हें सात दिनों को आठ पहर के हिसाब से 56 भोग लगाए।


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