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Dev Uthani Ekadashi 2020: 25 नवंबर को जागेंगे देव, इस एकादशी पर रखें इन विशेष बातों को ध्यान

Dev Uthani Ekadashi 2020 आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की एकदशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को चार महीने बाद भगवान जगते हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 05:02 PM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 05:02 PM (IST)
Dev Uthani Ekadashi 2020: 25 नवंबर को जागेंगे देव, इस एकादशी पर रखें इन विशेष बातों को ध्यान
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को चार महीने बाद भगवान जगते हैं।

आगरा, जागरण संवाददाता। चार माह से रुके हुए मांगलिक कार्य शुक्रवार से फिर से आरंभ हो जाएंगे। चार माह की नींद से देव जागेंगे और मंगल काज संवारेंगे। 25 नवंबर को तुलसी विवाह, देवउठनी यानी देव प्रबोधिनी एकादशी है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर ये पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के साथ ही तुलसी की भी विशेष पूजा की जाती है। तुलसी का विवाह शालिग्राम (विष्णु का स्वरूप) से करवाया जाता है। मान्यता है कि आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की एकदशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं। इसके बाद देव प्रबोधिनी यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को चार महीने बाद भगवान जगते हैं। ये देव के जागने यानी उठने की तिथि है, इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। भगवान के जगने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है। इस दिन भगवान के जगने का उत्सव देवतागण भी व्रत पूजन द्वारा मनाते हैं।

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ये कार्य देंगे शुभफल

एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि कामों के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें। जल में लाल फूल और चावल भी डाल लेना चाहिए। इस दौरान सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम:। ऊँ भास्कराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। भगवान विष्णु के साथ ही लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में सामान्य पूजन सामग्री के अतिरिक्त दक्षिणावर्ती शंख, कमल गट्टे, गोमती चक्र, पीली कौड़ी भी रखना चाहिए। सुबह स्नान के बाद तुलसी को जल चढ़ाएं। देवोत्‍थान पर सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और ओढ़नी यानी चुनरी अर्पित करें। सुहाग का सामान भी तुलसी को चढ़ाएं। अगले दिन यानी 26 नवंबर को ये चीजें किसी गरीब सुहागिन को दान करें। ध्यान रखें कभी भी सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते ना तोड़ें। अमावस्या, चतुर्दशी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते तोड़ना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। अकारण तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। अगर वर्जित किए गए दिनों में तुलसी के पत्तों का काम हो तो तुलसी के झड़े हुए पत्तों का उपयोग करना चाहिए। वर्जित की गई तिथियों से एक दिन पहले तुलसी के पत्ते तोड़कर रख सकते हैं। पूजा में चढ़े हुए तुलसी के पत्ते धोकर फिर से पूजा में उपयोग किए जा सकते हैं।

मंत्रोच्चारण

भगवान को जगाने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए-

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।


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