Holi 2020: प्रेम से पगी लाठियां बरसतीं हैं दो गांवों में, जानिए बरसाना की होली क्यों अलग है नंदगांव से
बुधवार शाम साढ़े पांच बजे से बरसाना में हुरियारने बरसाएंगे नंदगांव के हरियारों पर लठ्ठ। गुरुवार को होगी नंदगांव में लठामार होली।
आगरा, तनु गुप्ता। एक रंग विविध रंगों का और एक रंग प्रेम का। जग को प्रीत की रीत समझाने, मनमीतों ने रचीं विविध लीलाएं। प्रेम की धारा को राह दिखाने वाली एक ओर राधा और दूसरी और हर कला से पूर्ण कान्हा। दो रूप लेकिन प्राण एक। एक अहसास प्रेम का। राधारानी का धाम बरसाना प्रेम के इसी अहसास से यूं तो सदैव से ही परिपूर्ण रहा है लेकिन होली के अवसर पर प्रेम का रंग इस अहसास को एक अलग अलौकिकता से संवार देता है। श्री कृष्ण कहते हैं कि संसार में कोई ऐसा नहीं जिसे प्रेम न हो। लेकिन जो प्रेम अपने आराध्य के प्रति हो वही प्रेम जीवन धारा को राह देता है। इसी प्रेम से वशिभूत होकर फाल्गुन की नवमी पर लाखों श्रद्धालु बरसाना की लठामार होली की एक झलक देखने भर को पहुंच चुके हैं। लाडि़ली जी के मंदिर की सीढि़यों से रंगीली गली तक बस भक्त ही भक्त दिखाई दे रहे हैं और राधे राधे की गूंज सुनाई दे रही है। शाम साढ़े पांच बजते ही बरसाना की हुरियारने नंदगांव के हुरियारों पर लठ्ठ बरसाना शुरु करेंगी। तो हरियारे प्रेम से पगे लठ्ठों से बचने के सारे यतन भी करेंगे लेकिन आनंद आएगा प्रेम की लाठिया खाने में ही।
क्यों है बरसाना और नंदगांव की होली अलग
कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण फागुन सुदी नवमी को होली खेलने बरसाना गए और बिना फगुवा (नेग) दिए ही वापस लौट आए। बरसाना की गोपियों ने कन्हैया से होली का फगुवा लेने के लिए नंदगांव जाने की सोची। इसके लिए राधाजी ने बरसाना की सभी सखियों को एकत्रित किया और बताया कि कन्हैंया बिना फगुवा दिए ही लौट गए हैं। हमें नंदगांव चलकर उनसे फगुवा लेना है। अगले दिन ही (दशमीं) को बरसाना की ब्रजगोपियां होली का फगुवा-
लेने नंदगांव आती हैं।
दसमी दिन आ बरसाने
हुरियारिन आ नंदगांम
सजीं समकीलि कल कौ
बदलौ अज देंय चुकाय
बराबर हो कह गोरी रसीली।
राधा कृष्ण की अलौकिक होली लीला देखने के लिए भगवान सूर्य भी कुछ क्षण के लिए स्थिर हो जाते हैं। गोपियां भी सूर्य देव से कहती हैं कि
सूरज छिप मत जइयो
आज श्याम संग होरी खेलूंगी।
सूरज छिपने तक तड़ातड़ लाठियां बरसती हैं।
संबंधों को जीवंतता आज भी है यहां
मानाकि वो द्वापर युग था जब धरा को साक्षात नारायण और नारायणी के अवतार पवित्र किये थे। सदियां बीत गईं। आधुनिकता की दौड़ में कई पीढि़या गुजर गईं। आैर वक्त की रफ्तार में तमाम मान्यताएं बदल गईं लेकिन ब्रज की मान्यता आज भी वो ही है। यहां आज भी हर ग्वाल कृष्ण और हर ब्रजबाला राधा के रूप में देखी जाती है। द्वापर काल में जुड़ा नंदबाबा और बृषभान का संबंध आज भी दोनों गांवों को प्रगांणता प्रदान करता है। अपनत्व का यह भाव आज भी बरसाना और नंदगांव की होली में झलकता है। आठ किलोमीटर की ये दूरी अपनत्व के सेतु से तय की जाती है। होली पर यहां उड़नेे वाला गुलाल हर बरसाने और नंदगांव वाले को तरबतर करता है। गुरुवार को दशमी के दिन बरसानावासी यशोदा कुंड पर एकत्रित होंगे और यहां से नंदभवन मंदिर के लिए निकलेंगे।
नंदगांव की हर गली भी रंग बिरंगी नजर आएगी। छतों से रंग बरसेगा।
लठ्ठ पड़ते ही चमकेंगी ढाल
इस बार परंपरा के साथ आधुनिकता की झलक भी लठामार होली में दिखाई देगी। घूंघट की ओट से जब हरियारने हुरियारों पर लठ्ठ बरसाएंगी तो लठ्ठ की मार पड़ते ही ढाल चमकने लगेगी। जी हां, इस बार विशेष रूप से एलइडी लगी ढालें तैयार हुई हैं। इन ढालों में एयरबैग भी लगे हैं। जैसे ही पूरे जोर से हुरियारने लठ्ठ मारेंगी ढाल चमकने के साथ ही एयरबैग के कारण लठ्ठ की मार को कम कर देगी।