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Deepawali 2020: इतिहास के झरोखाें से दीपावली, जानिए कब से शुरू हुआ लक्ष्मी जी के सिक्कों का प्रचलन

Deepawali 2020 गुप्त काल में ढाले गए थे लक्ष्मी जी के सिक्के। भारतीय मुद्रा के इतिहास में ईसा से 600 वर्ष पहले ढले पंचमार्क सिक्के सबसे प्राचीन। 12वीं शताब्दी में राजा गोविंदचंद्र गहड़वाल के समय ढले सर्वाधिक लक्ष्मी जी के सोने के सिक्के।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 05:13 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 05:13 PM (IST)
Deepawali 2020: इतिहास के झरोखाें से दीपावली, जानिए कब से शुरू हुआ लक्ष्मी जी के सिक्कों का प्रचलन
गुप्त काल में ढाले गए थे लक्ष्मी जी के सिक्के।

आगरा, जागरण संवाददाता। पंचोत्सव की धूम बाजार में नजर आ रही है। धनतेरस और दीपावली पर पूजन को लक्ष्मी-गणेश जी के चांदी के सिक्के खरीदने की परंपरा है। भारत में सबसे पुराने पंचमार्क सिक्के माने जाते हैं। गुप्त काल में सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण शुरू हुआ। राजपूत काल में सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण अधिक हुआ, जो मुगल काल से पूर्व गुलाम, खिजली, तुगलक, सैयद, लोदी काल तक चलता रहा।

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भारतीय मुद्रा के इतिहास में ईसा से करीब छह सौ से दो सौ वर्ष पूर्व तक मिलने वाले पंचमार्क सिक्कों को सबसे प्राचीन माना जाता है। चांदी, तांबे व कांसे के इन सिक्कों की कोई निर्धारित शेप नहीं होती थी। इन सिक्कों पर मछली, पेड़, मोर, यज्ञ वेदी, शंख, हाथी, बैल आदि चित्रित मिलते हैं। इन सिक्कों को राजाओं के बजाय व्यापारियों द्वारा जारी माना जाता है। यह सिक्के पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार से मिले हैं। भारत में पहली शताब्दी में कुषाण शासकों के समय सिक्कों पर चेहरों का अंकन शुरू हुआ। कनिष्क के समय का एक सिक्का ऐसा मिला है, जिस पर मिली आकृति को लक्ष्मी जी की आकृति माना गया है। यह कुषाण देवी अर्डोक्शो का सिक्का है। वो धन और समृद्धि की देवी थीं, सिक्के पर उनके हाथ में अनाज की फलियां दिखाई गई हैं।गुप्त काल में समुद्रगुप्त के समय सिक्कों पर देवी दुर्गा, चंद्रगुप्त द्वितीय के समय पद्मासन मुद्रा में देवी लक्ष्मी और स्कंदगुप्त के समय सिक्कों पर धनलक्ष्मी का अंकन किया गया।

अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार बताते हैं कि ईसा से करीब 600 वर्ष पूर्व ढाले गए पंचमार्क सिक्कों पर एक महिला की आकृति मिलती है, जिसे लक्ष्मी जी बताया जाता है। गुप्त काल के सिक्कों पर देवी का अंकन मिलता है। इसे देवी लक्ष्मी मानने पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। राजपूत काल में सिक्कों पर देवी का मुद्रण लक्ष्मी मानकर ही किया गया है। सबसे अधिक लक्ष्मी जी के मुद्रण वाले सोने के सिक्के 12वीं शताब्दी में गहड़वाल शासक गोविंदचंद्र गहड़वाल के समय जारी किए गए थे। कल्याणी के कलचुरी शासकों ने भी लक्ष्मी जी के सिक्के पर जारी किए। इसके बाद लंबे समय तक एक तरफ लक्ष्मी जी का चित्र और दूसरी तरफ राजाओं के नाम आदि का मुद्रण सिक्कों पर होता रहा।

अकबर ने सिक्कों से हटवाई थीं लक्ष्मी जी

इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि अकबर ने सिक्कों से लक्ष्मी जी को हटवाकर कलमे का मुद्रण कराना शुरू किया था। उन्होंने अपनी किताब 'हकीकत-ए-अकबर' में लिखा है कि प्राचीन काल में भारत में सिक्कों पर हिंदुओं की धन की देवी लक्ष्मी जी का चित्र उत्कीर्ण रहता था। वर्ष 1192 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर सत्ता अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपी, तब भी ऐसे सिक्के जारी रहे। अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक, सिकंदर लोदी जैसे शासकों ने भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। अकबर ने अपने सिक्कों पर लक्ष्मी जी के चित्र उत्कीर्ण करवाना बंद कर दिया था। यह अकबर की धार्मिक कट्टरता का ज्वलंत उदाहरण है। रांगेय राघव की किताब रांगेय राघव ग्रंथावली (भाग-10) में भी अकबर द्वारा सिक्कों पर से भारतीय नक्शा और लक्ष्मी जी को हटाने का जिक्र मिलता है। रांघेय राघव लिखते हैं कि सिक्कों पर से भारतीय नक्शे और लक्ष्मी जी की शक्ल को उड़ा देने का जो काम गौरी और खिलजी जैसे मुस्लिम पुरोहित वर्ग के साथी शासक नहीं कर पाए थे, वह अकबर ने कर दिखाया।

अकबर ने जारी किया था श्रीराम का सिक्का

भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस लौटने पर दीपावली मनाई जाती है। अकबर ने सहिष्णु होने के बाद दीन-ए-इलाही का प्रवर्तन किया था। वर्ष 1604 में अपनी मृत्यु से पूर्व उसने भगवान श्रीराम और सीता पर चांदी का सिक्का जारी किया था। पांच अधेला के सिक्के पर देवनागरी भाषा में राम सिया अंकित था। उसने हिंदू धर्म के प्रतीक चिह्नों स्वास्तिक, त्रिशूल वाले चार ग्राम वजन के सिक्के भी जारी किए थे। यह सिक्के अकबर की आगरा और फतेहपुर सीकरी स्थित टकसाल में ढाले गए थे। 


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