अहोई अष्टमी 2018: ये अपनाएं उपाए तो संतान के जीवन से हर बाधा रहेगी दूर, जानें पूजन विधि
बुधवार को है कार्तिक मास का प्रमुख त्योहार अहोई अष्टमी। माताएं करेंगी संतान के सुख और लंबी आयु की मंगल कामना।
आगरा [जागरण संवाददाता]: कार्तिक मास, जिसे त्योहारों का मास कहना गलत न होगा। हर दिन का इस मास में अलग महत्व होता है। सुहागिन स्त्रियों के पर्व करवाचौथ के ठीक चार दिन बात माताएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। धर्म वैज्ञानिक वैभव जोशी बताते हैं कि धार्मिक कर्म-कांड के अनुसार कार्तिक मास की महिमा पद्मपुराण में वर्णित है। इसलिए इस माह में आने वाले सभी व्रत का विशेष फल है। अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। संतान की लंबी आयु के लिए माताएं एवं निसंतान स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए इस दिन विशेष विधान से पूजन यदि करें तो उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
क्या है अहोई माता की पूजा का मुहूर्त
बुधवार को अहोई अष्टमी है। इस दिन पूजा का शुभ मुहुर्त सायं 5: 45 से 7: 00 बजे तक का है।
पूजन विधान
पंडित वैभव जोशी के अनुसार इस दिन गोबर से या चित्रांकन के द्वारा कपड़े पर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। व्रत समापन में शाम को अहोई माता की पूजा की जाती है। मां को विधिवत पकवानों का भोग लगाया जाता है। इसके बाद आकाश में तारे देख करवे से अर्घ्य देने के बाद व्रत समापन का हो जाता है। पूजा में संतान का शामिल होना अति आवश्यक है। पूजा पाठ के बाद माताएं अन्न-जल ग्रहण करती हैं। उस करवे के जल को दीपावली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है। यह जल पुत्रों के स्नान में भी इस्तेमाल किया जाता है। अहोई माता के रूप में पार्वती की पूजा करने की परंपरा है।
अहोई व्रत में स्याहु की माला का भी बहुत महत्व है। घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती है और दीपावली तक उसे धारण करती हैं। साथ ही पूजा में संतान को साथ बैठाकर कथा सुनाई जाती है। संतान का तिलक कर उनके दीर्घायु होने की कामना की जाती है। सायं काल या कहें प्रदोष काल में उसकी पूजा की जाती है।
ऐसे रखें इस दिन उपवास
- प्रात: स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें।
- अहोई माता की आकृति, गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाएं।
- सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें।
- पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला , जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें।
- पहले अहोई माता की, रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें, उन्हें दूध भात अर्पित करें।
- फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें।
- कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु मां को देकर उनका आशीर्वाद लें।
- अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें।
- चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख लें।
अहोई अष्टमी व्रत के विशेष प्रयोग
पंडित वैभव के अनुसार यदि संतान की शिक्षा, करियर, रोजगार में बाधा आ रही होतो निम्न प्रयोग करें।
- अहोई माता को पूजन के दौरान दूध-भात और लाल फूल अर्पित करें।
- इसके बाद लाल फूल हाथ में लेकर संतान के करियर और शिक्षा की प्रार्थना करें।
- संतान को अपने हाथों से दूध भात खिलाएं।
- फिर लाल फूल अपनी संतान के हाथों में दे दें और फूल को सुरक्षित रखने को कहें।
अगर संतान के वैवाहिक या पारिवारिक जीवन में बाधा आ रही हो
- अहोई माता को गुडं का भोग लगायें और एक चांदी की चेन अर्पित करें
- माँ पार्वती के मंत्र - ह्रीं उमाये नम: 108 बार जाप करें।
- संतान को गुड़ खिलाएं और अपने हाथों से उसके गले में चेन पहनाएं।
- उसके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दें।
अगर संतान को संतान नहीं हो पा रही हो
- अहोई माता और शिव जी को दूध भात का भोग लगाएं।
- चांदी की नौ मोतियां लेकर लाल धागे में पिरो कर माला बनाएं।
- अहोई माता को माला अर्पित करें और संतान को संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें।
- पूजा के उपरान्त अपनी संतान और उसके जीवन साथी को दूध भात खिलाएं।
- अगर बेटे को संतान नहीं हो रही हो तो बहू को, और बेटी को संतान नहीं हो पा रही हो तो बेटी को माला धारण करवाएं।