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वट सावित्री व्रत 2019: प्रकृति आराधना से मिलता है चिर सुहाग का वर, जानिए व्रत की पूरी विधि

तीन जून को है इस वर्ष वट सावित्री व्रत। सोमवती अमावस्‍या से भी बढ़ा महत्‍व।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 02 Jun 2019 04:20 PM (IST)Updated: Sun, 02 Jun 2019 06:35 PM (IST)
वट सावित्री व्रत 2019: प्रकृति आराधना से मिलता है चिर सुहाग का वर, जानिए व्रत की पूरी विधि
वट सावित्री व्रत 2019: प्रकृति आराधना से मिलता है चिर सुहाग का वर, जानिए व्रत की पूरी विधि

आगरा, जागरण संवाददाता। सुहागिनों के लिए वट सावित्री व्रत बहुत महत्व होता है। अमर सुहाग के वरदान की प्राप्ति के लिए सुहागिनें इस दिन व्रत रखती हैं। तीन जून को इस वर्ष सुहाग का यह पर्व है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार सुहागिनें वट सावित्री की पूजा कर पति की दीर्घायु और परिवार की सुख शांति की कामना करती हैं। 

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हिन्दू मान्यता के अनुसार इस व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का बहुत महत्व होता है। दरअसल, पुराणों के अनुसार पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही सारे दुःख दूर हो जाते हैं।

पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि वट सावित्री व्रत के अवसर पर सुहागिनें बरगद के पेड़ के चारों ओर घूमती हैं और रक्षा सूत्र बांध कर आशीर्वाद लेती हैं। इसके अलावा वे एक- दूसरे को सिंदूर भी लगाती हैं। साथ ही पुजारी से सत्यवान और सावित्री की कथा सुनती हैं। नवविवाहित सुहागिनों के लिए भी इस व्रत का बहुत महत्व है।

धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी 

विशेष संयोग से बढ़ा महत्‍व 

इस साल बड़ अमावस्या का महत्व इसलिए और बढ़ गया है, क्योंकि इस दिन चार विशेष संयोग भी पड़ रहे हैं। इनमें सोमवती अमावस्या, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और त्रिग्रही संयोग शामिल हैं। इस दिन शनि महाराज का भी जन्म हुआ था। इसलिए वटसावित्री व्रत के दिन वट और पीपल की पूजा से शनि महाराज प्रसन्न होते हैं और शनि दोष दूर होता है। इसी दिन शनि अमावस्या भी मनाई जाएगी। 

सोमवती अमावस्या

वट सावित्री व्रत के दिन सोमवती अमावस्या होने से इन वृक्षों की पूजा से पितृगण भी प्रसन्न होते हैं। इससे पितृ दोष के कारण जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है। पीपल के वृक्ष के नीचे पांच तरह की मिठाइयों को पीपल के पत्तों पर रखकर पितरों का ध्यान करें। इन्हें वहीं आस-पास मौजूद लोगों में बांट देना सुख-समृद्धि दायक हो सकता है। 

सर्वार्थ सिद्धि योग 

इस दिन वट सावित्री व्रत महिलाएं सर्वार्थ सिद्धि योग में रखेंगी। इससे मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सूर्योदय से लेकर रात्रि अंत तक रहेगा। इस योग में पूजापाठ करने और दान पुण्य करने से पितृ दोष दूर होता है और सभी कार्यों में आपको विशेष सफलता प्राप्त होती है।

अमृत सिद्धि योग

जब सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ अमृत सिद्धि योग बनता है तो यह मुहूर्त विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन वट सावित्री व्रत होने के कारण महिलाओं को अखंड सौभाग्य के साथ सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की भी प्राप्ति होगी। इन दोनों ही योगों के बनने पर सकारात्मक फलों की प्राप्ति होती है।

त्रिग्रही योग 

मिथुन राशि में मंगल, राहु और बुध का त्रिग्रही संयोग बना है। इस संयोग में पीपल और बरगद के वृक्ष की पूजा से शनि, मंगल और राहु के अशुभ प्रभाव दूर होंगे। इस दिन वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण करने से मनोवांछित फल मिलता है। 

क्यों किया जाता है वट सावित्री व्रत

वट सावित्री व्रत में वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि वट के वृक्ष ने सावित्री के पति सत्यवान के मृत शरीर को को अपनी जटाओं के घेरे में सुरक्षित रखा ताकि जंगली जानवर शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा सके। ज्योतिषियों के अनुसार, वट के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का निवास होता है इसलिए भी महिलाएं इस वृक्ष की पूजा करती हैं।

कैसे करें वट सावित्री का व्रत

पंडित वैभव के अनुसार वट सावित्री व्रत के अवसर पर सुहागिनों को बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करनी चाहिए। साथ ही कथा सुननी चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

वट वृक्ष के फायदों की बात करें तो, इस वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है। वट का वृक्ष रोग नाशक होता है। वट का दूध कई बीमारियों से हमारी रक्षा करता है।

पौराणिक कथा

राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री बहुत गुणवान और रूपवान थी। लेकिन उसके अनुरूप योग्य वर न मिलने के कारण सावित्री के पिता दुखी रहा करते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कन्या को स्वयं अपना वर तलाश करने भेज दिया और इस तलाश में एक दिन वन में सावित्री ने सत्यवान को देखा और उसके गुणों के कारण मन में ही उसे वर के रूप में वरण कर लिया। सत्यवान साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे।

सत्यवान व सावित्री के विवाह से पूर्व ही नारद मुनि ने यह सत्य सावित्री को बता दिया था कि सत्यवान अल्पायु है, अतः वह उससे विवाह न करे। यह जानते हुए भी सावित्री ने सत्यवान से विवाह करने का निश्चय किया।

जब सत्यवान के प्राण हरने लिए यमराज आए तो सावित्री भी उनके साथ चलने लगी। यमराज के बहुत समझाने पर भी वह वापस लौटने को तैयार नहीं हुई। तब यमराज ने उससे सत्यवान के जीवन को छोड़कर अन्य कोई भी वर मांगने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी। उसकी अटल पतिभक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने जब पुनः उससे वर मांगने को कहा तो उसने सत्यवान के पुत्रों की मां बनने का बुद्धिमत्तापूर्ण वर मांगा, यमराज के तथास्तु कहते ही मृत्युपाश से मुक्त होकर वटवृक्ष के नीचे पड़ा हुआ सत्यवान का मृत शरीर जीवित हो उठा। तब से अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए इस व्रत की परंपरा आरंभ हो गयी और इस व्रत में वटवृक्ष व यमदेव की पूजा का विधान बन गया।

दूसरी कथा की मानें तो मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। 

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