औघड़- फक्कड़ शिव, जानिए क्यों हैं त्रिदेवों में सबसे श्रेष्ठ और क्या देते हैं जीवन संदेश Agra News
कृतित्व और व्यक्तित्व का अनूठा रंग सिखाता है जीवन जीने का ढंग। सावन माह गुरुवार को हो जाएगा समाप्त। शिव आराधना का माह है सावन।
आगरा, तनु गुप्ता। अनादि, अनंत शिव, विष पान करने वाले शिव। गणों सहित भयभीत भी करते हैं शिव और अपने सौम्य रूप से मन को शांति भी पहुंचाते हैं शिव। माना जाता है कि विश्व में शिव आराधना सबसे प्राचीन है। प्राचीन शिवलिंग हों या प्राचीन शिवलिंग के अवशेष, इस बात को प्रमाणित भी करते हैं। शिव आराधना जितनी गूढ़ है उतना ही गूढ़ है शिव का स्वरूप। भगवान शिव को तपस्वी, औघड़- फक्कड़ और न जाने क्या- क्या कहा जाता है लेकिन शिव पिता और पति रूप में भी आदर्श माने गए हैं। शिव रूप पर शोध करने वाले धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी से जागरण डॉट कॉम ने चर्चा की।
पंडित वैभव के अनुसार बहुत से लोग प्रश्न करते हैं कि क्या भगवान शंकर को नहीं मालूम था कि गणेशजी उनके पुत्र हैं। फिर उन्होंने अनजाने में उनकी गर्दन काट दी और फिर जब उन्हें मालूम पड़ा तो उन्होंने उस पर हाथी की गर्दन जोड़ दी? जब शिव यह नहीं जान सके कि गणेश उनके पुत्र हैं तो फिर वह कैसे भगवान? इसका जवाब है कि भगवान शिव के संपूर्ण चरित्र को पढ़ना जरूरी है। उनके जीवन को लीला क्यों कहा जाता है? लीला उसे कहते हैं जिसमें उन्हें सबकुछ मालूम रहता है फिर भी वे अनजान बनकर जीवन के इस खेल को सामान्य मानव की तरह खेलते हैं। लीला का अर्थ नाटक या कहानी नहीं। एक ऐसा घटनाक्रम जिसकी रचना स्वयं प्रभु ही करते हैं और फिर उसमें शामिल होते हैं। वे अपने भविष्य के घटनाक्रमों को खुद ही संचालित करते हैं। दरअसल, भविष्य में होने वाली घटनाओं को अपने तरह से घटाने की कला ही लीला है। यदि भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो आज गणेश प्रथम पुज्यनीय देव न होते और न उनकी गणना देवों में होती। दार्शनिक क्षेत्रों में माना जाता है कि लीला ऐसी वृत्ति है जिसका आनन्द प्राप्ति के सिवा और कोई अभिप्राय नहीं। इसीलिए कहते हैं सृष्टि और प्रलय सब ईश्वर की लीला ही है। अवतार धारण करने पर इस लोक में आकर भगवान् जो कृत्य करते हैं, उन सबकी गिनती भी लीलाओं में ही होती है। लोक व्यवहार में वे सब कृत्य जो भगवान के किसी अवतार के कार्यों के अनुकरण पर अभिनय या नाटक के रूप में लोगों को दिखाए जाते हैं। भगवान राम को सभी कुछ मालूम था कि क्या घटनाक्रम होने वाला है। उन्हें मालूम था कि मृग के रूप में आया यह राक्षस कौन है। लेकिन सीता ने उनकी नहीं मानी और तब उन्होंने लक्ष्मण को सीता के पहरे के लिए छोड़ कर मृग के पीछे चले गए। इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू किसी को नहीं मार रहा है। यह सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। अब तो यह बस खेल है। बर्बरिक से जब महाभारत का वर्णन पूछा गया तो उसने कहा कि मुझे तो दोनों ही ओर से श्रीकृष्ण ही योद्धाओं को मारते हुए नजर आ रहे थे।
नाम अनेक लेकिन शिव हैं एक
पंडित वैभव कहते हैं कि शिव ही शंकर, महेश, रुद्र, महाकाल, भैरव आदि है। त्रिदेवों में से एक महेश को ही भगवान शिव या शंकर भी कहा जाता है। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। कहते हैं कि उन्हीं में से एक महाकाल हैं। दूसरे तारा, तीसरे बाल भुवनेश, चौथे षोडश श्रीविद्येश, पांचवें भैरव, छठें छिन्नमस्तक, सातवें द्यूमवान, आठवें बगलामुख, नौवें मातंग, दसवें कमल। अन्य जगह पर रुद्रों के नाम:- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है।
क्या हैं शिव, शंकर, महादेव
शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं– शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है।
पंडित वैभव कहते हैं कि शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विलय के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है। इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में है।
शिव- भैरव
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव कहते हैं कि भैरव भी कई हुए हैं जिसमें से काल भैरव और बटुक भैरव दो प्रमुख हैं। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल शिव के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शिव की पंचायत के सदस्य हैं। वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला। वेद जिन्हें रुद्र कहते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व के कालों में भी शिव थे। उन कालों की शिव की गाथा अलग है।
शिव के द्वारपाल
नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
शिव पंचायत के देवता
सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
शिव पार्षद
जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं। यहां देखा गया है कि नंदी और भृंगी गण भी है, द्वारपाल भी है और पार्षद भी।
शिव गण
भगवान शिव के गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र। जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। दूसरी ओर वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से अलग कर दिया। देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र नामक गण उत्पन्न किया। भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।
शिव के अवतार
कहते हैं कि शिव ने स्वयं से अपनी शक्ति को पृथक किया तथा शिव एवं शक्ति ने व्यवस्था हेतु एक कर्ता पुरुष का सृजन किया जो विष्णु कहलाए। भगवान विष्णु के नाभि से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। विष्णु ने ब्रह्मदेव को निर्माण का कार्य सौंपकर स्वयं पालन का कार्य वहन किया। फिर स्वयं शिव के अंशावतार शंकर ने सृष्टी के विलय के कार्य का वहन किया। कई जगहों पर शंकर को ही 'महेश' कहा जाने लगा। जैसे की ब्रम्हा, विष्णु और महेश। वस्तुतः शंकर यह रुद्र अर्थात शिव का अंशावतार है। महारुद्र शिव के कुछ विशेष अंशावतारों को रुद्रावतार के नाम से जाना जाता है, जैसे हनुमानजी को रुद्रावतार कहा जाता है। हनुमान ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं। कई बार रुद्रावतार के लिए केवल 'रूद्र' इस शब्द का ही प्रयोग किया जाता है जोकि गलत है, जैसे की कई बार हनुमान को ग्यारहवां रुद्र कहा जाता है जबकि वे ग्यारहवें रुद्रावतार है। उसी तरह शिव के कई अवतार हुए जिनमें से एक महेश को ही माता पार्वती का पति कहा गया है।
सप्तऋषि गण शिव के शिष्य
शिव ने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए सात ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के सात बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन सात रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश का पिता कौन
शिव पुराण अनुसार परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव हैं। अर्वाचीन और प्राचीन विद्वान उन्हीं को ईश्वर कहते हैं। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेवजननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की आठ भुजाएं हैं। पराशक्ति जगत जननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है।
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