तिथि की शुभता के अनुसार करेंगे ये कार्य तो मिलेगी सफलता, जानिये क्या है तिथियों का रहस्य
हिंदू पंचांग के अनुसार होती हैं तिथियां। हर तिथि का होता है विशेष महत्व।
आगरा, जागरण संवाददाता: भारतीय समाज पर भले ही चाहे कितना पाश्चात्य प्रभाव हो लेकिन आज भी शुभ कार्य से पहले हिंदू पंचांग के अनुसार तिथियां जरूर देखी जाती हैं।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार हिंदू पंचांग में काल गणना का प्रमुख हिस्सा तिथियां होती हैं। तिथियों के अनुसार ही व्रत- त्योहार आदि तय किये जाते हैं। शुभ कार्य से पहले लोग तिथियां जरूर देखते हैं।
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि प्रत्येक हिंदू माह में 15- 15 दिन के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं। हर पक्ष में प्रतिपदा से लेकर 15 वीं तिथि तक की संख्या होती है। शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक। दोनों पक्षों में 15- 15 दिन होते हैं। पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि इनमें से कुछ तिथियां विशेष कार्यों के लिए शुभ मानी गईं हैं तो कुछ अशुभ।
प्रतिपदा तिथि
प्रतिपदा तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं।कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है। इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्तकर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
द्वित्तीया तिथि
विवाह मुहूर्त, यात्रा करना, आभूषण खरीदना, शिलान्यास, देश अथवा राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माने गए हैं परंतु इस तिथि में तेल लगाना वर्जित है।
तृतीया तिथि
तृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज- संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं।
चतुर्थी तिथि
सभी प्रकार के बिजली के कार्य, शत्रुओं का हटाने का कार्य, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है। क्रूर प्रवृति के कार्यों के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है।
पंचमी तिथि
सभी प्रवृतियों के लिए यह तिथि उपयुक्त मानी गई है। इस तिथि में किसी को ऋण देना वर्जित माना गया है।
षष्ठी तिथि
पंडित वैभव जोशी के अनुसार युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे शुभ कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं। इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकर्म आदि कार्य वर्जित हैं।
सप्तमी तिथि
विवाह मुहुर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषणों का निर्माण और नवीन आभूषणों को धारण किया जा सकता है। यात्रा, वधु- प्रवेश, गृह- प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार, आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
अष्टमी तिथि
इस तिथि में लेखन कार्य, युद्ध में उपयोग आने वाले कार्य, वास्तुकार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद- प्रमोद से जुड़े कार्य, अस्त्र- शस्त्र धारण करने वाले कार्यों का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है।
नवमी तिथि
पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि शिकार करने का आरम्भ करना, झगड़ा करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण करना, मद्यपान तथा निर्माण कार्य तथा सभी प्रकार के क्रूर कर्म इस तिथि में किए जाते हैं।
दशमी तिथि
राजकार्य अर्थात वर्तमान समय में सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है। हाथी, घोड़ों से संबंधित कार्य, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि इस तिथि में की जा सकती है। गृह-प्रवेश, वधु- प्रवेश, शिल्प, अन्न प्राशन, चूड़ा कर्म, उपनयन संस्कार आदि कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
एकादशी तिथि
एकादशी तिथि में व्रत, सभी प्रकार के धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध से जुड़े कर्म, शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ करना और यात्रा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं।
द्वादशी तिथि
इस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं। इस तिथि में तैलमर्दन, नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए।
शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि
संग्राम से जुड़े कार्य, सेना के उपयोगी अस्त्र-शस्त्र, ध्वज, पताका के निर्माण संबंधी कार्य, राज-संबंधी कार्य, वास्तु कार्य, संगीत विद्या से जुड़े काम इस दिन किए जा सकते हैं। इस दिन यात्रा, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण तथा यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग करना चाहिए।
चतुर्दशी
चतुर्दशी तिथि में सभी प्रकार के क्रूर तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं। शस्त्र निर्माण इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है। इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है। चतुर्थी तिथि में किए जाने वाले कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं।
पूर्णमासी
पूर्णमासी जिसे पूर्णिमा भी कहते हैं, इस तिथि में शिल्प, आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। संग्राम, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति तथा पोषण करने वाले सभी मंगल कार्य किए जा सकते हैं।
अमावस्या
इस तिथि में पितृकर्म मुख्य रुप से किए जाते हैं। महादान तथा उग्र कर्म किए जा सकते हैं। इस तिथि में शुभ कर्म तथा स्त्री का संग नहीं करना चाहिए।