Christmas Celebration: उत्तर भारत का पहला चर्च, जो बयां करता है गौरवशाली इतिहास Agra News
यीशु के अनुयायियों को अकबर ने दिया था आगरा में भूखंड। यहां नियमित गूंजता है प्रभु यीशु का प्रेम व करुणा का संदेश।
आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। वजीरपुरा मार्ग स्थित निष्कलंक माता (मदर मेरी) का महागिरजाघर है। यहां सेंट पीटर्स कॉलेज, बिशप हाउस के साथ एक बहुत प्राचीन गिरजाघर है। इसे उत्तर भारत का सबसे प्राचीन गिरजाघर होने का गौरव हासिल है। इसके आसपास ही लाहौर में भी दूसरा गिरजाघर बना था। गोवा से आए तीसरे मिशन को इसके लिए बादशाह अकबर ने भूखंड दिया था, जिसमें बाद में इस चर्च का निर्माण किया गया।
उत्तर भारत के पहले गिरजाघर को आज अकबरी गिरजाघर के रूप में जाना जाता है। यह चर्च आकार में भले ही बहुत छोटा है, लेकिन उसका विशेष महत्व है। इसका अपना गौरवशाली इतिहास है।
वर्ष 1562 में आगरा शहर में ईसाइयों का आगमन शुरू हो गया था। अकबर ने गोवा की पुर्तगाली बस्ती से यहां ईसाई पादरियों के मिशन को आमंत्रित किया था। क्रिश्चियन समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने अकबर से गिरजाघर के लिए भूखंड मांगा। उन्होंने अपने दीन ए इलाही सिद्धांत को अपनाते हुए भूखंड दे दिया। वर्ष 1599 में यीशु के अनुयायियों ने यहां चर्च का निर्माण पूरा करवा लिया। इसके बाद आगरा में पहली बार क्रिश्चियन समाज ने यहां क्रिसमस मनाया था। मोमबत्ती जलाकर प्रभु यीशु से सभी के कल्याण की कामना की थी।
निष्कलंक माता का महागिरजाघर
क्रिश्चियन समाज के आगरा आने के प्रारंभिक दिनों में केवल अकबरी चर्च ही क्रिश्चियन समाज के लिए था। क्रिश्चियन समाज की संख्या बढ़ती गई तो चर्च छोटा पड़ता गया, जिससे नए चर्च की जरूरत महसूस होने लगी। जिससे निष्कलंक माता का महागिरजाघर वर्ष 1849 में बनाया गया, जिसे माता मरियम को समर्पित किया गया। इसका निर्माण इटली निवासी तत्कालीन बिशप बोर्गी ने कराया था। उनका कार्यकाल यहां केवल 10 वर्ष का था, इस अंतराल में उन्होंने धर्मप्रांत में आठ इमारतें बनवाईं। इनमें ये इस चर्च के अलावा सेंट पीटर्स कॉलेज, सेंट पैटिक जूनियर कॉलेज, छावनी में सेंट पैट्रिक चर्च, मेरठ और झांसी में चर्च व अन्य इमारतें बनवाईं।
मुगलकालीन है स्थापत्य कला
अकबरी चर्च वर्ष 1851 तक आगरा का प्रमुख चर्च रहा है। चर्च के मध्य भाग की दीवार लाल पत्थरों की है, जिस पर पच्चीकारी की गई है। यह मुगलकालीन स्थापत्य कला से मेल खाती है। इसकी संपूर्ण बनावट भी मुगलिया शैली में है। चर्च का गुम्बद मुगलिया स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। कहा जाता है कि जहांगीर की ईसाई मत के प्रति आस्था बढ़ने लगी तो उन्होंने इस चर्च को भव्यता प्रदान करने के लिए सुंदरीकरण कराया था।
ये हैं आगरा के अन्य चर्च
रोमन कैथोलिक
सेंट मैरी चर्च, प्रतापपुरा (वर्ष 1923)
सेंट पैटिक चर्च, छावनी (वर्ष 1848)
सेंट जूड चर्च, कोलक्खा (वर्ष 2014)
सेंट थॉमस चर्च, शास्त्रीपुरम (वर्ष 2010)
चर्च ऑफ नार्थ इंडिया
सेंट जोंस चर्च, फव्बारा (वर्ष 1875)
सेंट जोंस चर्च, सिकंदरा (वर्ष 1842)
सेंट पॉल चर्च, खंदारी (वर्ष 1855)
सेंट जॉर्जेज कैथोडिल चर्च, सदर बाजार (वर्ष 1828)
मैथोडिस्ट
सेंट्रल मैथोडिस्ट चर्च, कलक्टेट (वर्ष 1888)
हैवलोक चर्च, छावनी (वर्ष 1845)
बैप्टिस्ट चर्च (वर्ष 1845)
कई बार टूटा और बना
- इस चर्च को कई विपत्तियों का भी सामना करना पड़ा। वर्ष 1615 में मुगलों और पुर्तगालियों के बीच मतभेद हो गया। इसके बाद जहांगीर ने इस चर्च को तुड़वा दिया। इसका फिर निर्माण हुआ। वर्ष 1616 में चर्च में आग लग गई जिसकी फिर मरम्मत कराई गई।
- वर्ष 1632 में शाहजहां ने पुर्तगालियों के स्थल हुगली पर चढ़ाई कर दी। चर्च के अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया गया। वर्ष 1634 में शाहजहां ने फादर जेसुईट व अन्य को चर्च तुड़वाने की शर्त पर छोड़ा। वर्ष 1636 में एक बार फिर शाहजहां ने इस चर्च को बनवाया।
- वर्ष 1748 में पर्सियन आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने मुगल सल्तनत को तहस-नहस कर दिया। उसने इस चर्च को भी निशाना बनाया। बाद में चर्च की मरम्मत समाज के लोगों द्वारा कराई गई और इसे माता मरियम के नाम पर समर्पित कर दिया गया।
दूसरा चर्च बना लाहौर में
उत्तर भारत का पहला चर्च है, इसलिए इसकी बहुत मान्यता है। इतिहास से जुड़ा होने के कारण यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। अकबरी चर्च के बाद दूसरा दूसरा चर्च लाहौर में बनाया गया था।
राजकिशोर राजे, वरिष्ठ इतिहासकार
अकबरी चर्च के प्रति क्रिश्चियन ही नहीं, अन्य समाजों की भी विशेष आस्था है। विशेष दिवसों में तो यहां विश्वासीजनों की लंबी कतार लगी रहती है।
फादर मून लाजरस, आध्यात्मिक निर्देशक सेंट लारेंस, सेमिनरी