मंगल समय खिचरी जेंवत हैं राधाबल्लभ...सदियों पुरानी परंपरा के साक्षी बने सैंकड़ों भक्त
मंगलवार सुबह पद गायन के बीच वृंदावन में राधाबल्लभ लाल ने खिचड़ी का लिया स्वाद।
मंगल समय खिचरी जेंवत हें श्रीराधाबल्लभ कुंज महल में।
रति रसमसे गसे गुण तन मन नाहिन संभारत प्रेम गहल में।।
चुटकी देत सखी संभरावत हंसत हंसावत चहल पहल में।
जै श्री कुंजलाल हित यह विधि सेवत समैं समैं सब रहत टहल में।।
आगरा, जेएनएन। भक्ति के भावों से ओतप्रोत संगीतमय पदों का गायन मंगलवार की सुबह राधाबल्लभ मंदिर में सेवायत कर रहे थे, और अंदर ठा. राधाबल्लभ जू पंचमेवा से युक्त खिचड़ी का स्वाद ले रहे थे। भगवान की इस मनोहारी छवि को निहार मंदिर में खड़े भक्त आल्हादित हो रहे थे।
श्रीहित हरिवंश महाप्रभु द्वारा सेवित ठा. राधाबल्लभ लाल जू के आंगन में मंगलवार सुबह खिचड़ी महोत्सव की शुरूआत उल्लास पूर्वक हुई। परंपरा के अनुसार सुबह ठाकुरजी के जागने से पहले सेवायतों ने समाज गायन में जगार स्तुति की। 11 पद जगार के होने के बाद ठाकुरजी जागे तो उन्हें सर्द मौसम में राहत देने को पंचमेवा से युक्त खिचड़ी परोसी गई।
मंगला आरती से पहले खिचड़ी का प्रसाद अर्पित करने के बाद सेवायतों ने आराध्य की मंगला आरती उतारी। मंदिर में खिचड़ी महोत्सव के दर्शनों को भोर से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लग गई। धोती- कुर्ता और बगलबंदी पहने ठाकुरजी ने जब भक्तों को दर्शन दिए तो निहाल हो गए श्रद्धालु भी। जो जिस भाव में ठाकुरजी को निहार रहा था खुद को ठगा सा महसूस करता रह गया। ठाकुरजी को खिचड़ी प्रसाद अर्पित करने के बाद भक्तों को खिचड़ी बांटी गई।
तीन सौ साल पुरानी है परंपरा
मंदिर सेवायत मनमोहन गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में खिचड़ी महोत्सव की परंपरा तीन सौ साल पहले शुरू की। करीब तीन सौ साल पहले कमल नयन महाराज ने ठाकुरजी को सर्दी से राहत देने के लिए पंचमेवायुक्त खिचड़ी परोसी। आज भी सेवायत इस परंपरा का निर्वहन वैदिक रूप से निभा रहे हैं।
मान्यता है कि शरद ऋतु में पंचमेवायुक्त खिचड़ी खाने के बाद शरीर में गर्माहट रहती है। भाव सेवा में ठाकुरजी को सर्दी से राहत देने के लिए पंचमेवायुक्त खिचड़ी के साथ गजक, रेवड़ी, मक्खन, मिश्री, रबड़ी, कुलिया, चिपिया आदि मेवा भी परोसी जाती है।