यहां अन्नपूर्णा देवी ने भरा भोलेनाथ का खप्पर, जानिये महाशिवरात्रि के बाद की इस पूजा का महत्व
ब्रज के शिवालयों में महाशिवरात्रि के दूसरे दिन होती है पूजा। पूजन को लेकर प्रचलित हैं कई मान्यताएं।
आगरा, जेएनएन। महाशिवरात्रि पर भगवान आशुतोष की आराधना के बाद मंगलवार को खप्पर पूजा का आयोजन शिवालयों में किया जा रहा है। शिव मंदिरों के अलावा आस्थावान लोग घर में भी खप्पर पूजन करते हैं। द्वार पर आने वाले साधुओं को शिव का प्रतिनिधि मान लोग भेंट देते हैं और उनके हाथ में लगे कटोरे नुमा लकड़ी के खप्पर को कढ़ी एवं चावल से भरते हैं। ब्रज में प्रचलित इस पूजा के कई मायने हैं।
खप्पर पूजा के महत्व पर वृंदावन के सेवायत रामगोपाल गोस्वामी बताते हैं कि भगवान शंकर का परिवार बहुत बड़ा था। जिसमें मां पार्वती, गणेशजी के अलावा सर्प, नंदी, गणेशजी, गणेशजी का मूसक, मां पार्वती का सिंह था। लेकिन भगवान के पास तो भांग के अलावा कुछ भी नहीं था। वे भस्म लगाते थे और श्मशान में रहते थे। लेकिन शिव के परिवार के अन्य सदस्यों को तो भूख लगती ही थी। भोजन को लेकर परिवार में आपस में झगड़ा होने लगा। सभी भूखे थे तो भगवान शंकर पार्वती जी के पास जो कि अन्नपूर्णा थीं, उनके पास भिक्षा मांगने गए। भगवान भोलेनाथ ने मां अन्नपूर्णा से कहा:
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे, शंकर प्राण बल्लभे।
ज्ञान, वैराग्य सिध्यार्थम, भिक्षाम देही पार्वते।।
भोलेनाथ बोले हे माता पूरे परिवार में झगड़ा हो रहा है। सब भूखे हैं। तो पार्वती जी ने भगवान शंकर के पास जो खप्पर था उसको अन्न से भर दिया। वह खप्पर आज तक खाली नहीं हुआ है। आज सारी सृष्टि का पालन मां अन्नपूर्णां इसी खप्पर से भरण पोषण कर रही हैं।
शिव हुए ब्रज की धरा पर पदार्पित
यूं तो शिव के मंदिर भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक हैं लेकिन ब्रजमण्डल के शिव मंदिरों की कुछ खास ही बात है। कई मंदिर यहां ऐसे हैं जिनके बारे में जनश्रुति है कि भगवान शिव यहां पदार्पित हुए थे।
कहते हैं कि द्वापर युग में भगवान शिव कई बार ब्रजआए थे। यहां तीन ऐसे मंदिर हैं जो पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराने बताये जाते हैं। मथुरा का रंगेश्वर महादेव, वृंदावन का गोपेश्वर महादेवऔर नंदगांव का आश्वेश्वरमहादेव मंदिर भोले भंडारी से सीधे जुड़े हुए माने जाते हैं।
नंदगांव के आश्वेश्वर मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को जब वसुदेव नंद के यहां छोड़ गए तो भगवान शिव उनके दर्शन करने यहां पधारे थे। योगी के वेश में आए भोलेनाथ को माता यशोदा पहचान नहीं सकीं और उन्होंने बालक कृष्ण के दर्शन कराने से मना कर दिया। कहते हैं कि इस पर नाराज होकर भगवान शिव उसी जगह धूनी रमाकर बैठ गए थे और अंतत: यशोदा को अपने लाल को उन्हें दिखाना पड़ा था।
इसी तरह मथुरा के रंगेश्वर मंदिर के बारे में कथा प्रचलित है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया तो उसका श्रेय लेने के लिए उनका भाई बलराम से झगड़ा हो गया। मंदिर के महंत दामोदर नाथ गोस्वामी कहते हैं कि प्राचीन कथाओं के अनुसार तब महादेव यहां पाताल से प्रकट हुये और ''रंग है, रंग है, रंग है'' कहते हुये फैसला सुनाते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने कंस को छल और बलराम ने बल से मारा है। जनश्रुति है कि जिस जगह भगवान शिव प्रकट हुये थे वहीं रंगेश्वर महादेव मंदिर स्थापित है। यहां मुख्य विग्रह धरातल से आठ फुट नीचे है और इसके दर्शन और पूजन से सभी तरह के कष्ट दूर होने की बात कही जाती है।
ब्रज के एक और मंदिर का महादेव से पुराना नाता बताया जाता है। वृंदावन के गोपेश्वर महादेव मंदिर के बारे में महामण्डलेश्वर डॉ. अवशेष स्वामी का कहना है कि प्राचीन कथानकों के अनुसार राधा और श्रीकृष्ण यहां महारास कर रहे थे। उन्होंने गोपियों को आदेश दे रखा था कि कोई पुरुष यहां नहीं आना चाहिये। उसी वक्त भगवान शिव उनसे मिलने वहां पहुंच गये। गोपियों ने आदेश का पालन करते हुये महादेव को वहां रोक लिया और कहा कि स्त्री वेश में ही वह अंदर जा सकते हैं। इसके बाद महादेव ने गोपी का रूप धरकर प्रवेश किया लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें पहचान गये। भगवान शिव के गोपी का रूप लेने की वजह से ही इस मंदिर का नाम गोपेश्वर महादेव मंदिर है।
खप्पर पूजा का विशेष महत्व
रंगेश्वर महादेव मंदिर में खप्पर एवं जेहर पूजा का विशेष महत्व है। खप्पर पूजा महाशिवरात्रि के बाद अमावस्या को होती है। वहीं, जेहर पूजा महाशिवरात्रि के दिन नवविवाहिता महिलायें पुत्र की प्राप्ति के लिए करती हैं।