Right To Information: सूचना के अधिकार से मिली गुम होने वाली शिकायतों के ताले की चाबी
Right To Information सूचना का अधिकार दिवस पर विशेष। अब थानों के चक्कर काटने की जगह दस रुपये शुल्क जमा करके हक से मांगते हैं सूचना। हर वर्ष दो हजार से ज्यादा लोग पुलिस से मांगते हैं सूचनाएं।
आगरा, अली अब्बास। नौ साल से बिना किसी जुर्म के नारी संरक्षण गृह में निरुद्ध मुन्नी को आरटीआइ की मदद से मुक्ति मिली थी। आरटीआइ एक्टिविस्ट नरेश पारस को नारी संरक्षण गृह में निरुद्ध मुन्नी नामक युवती के बारे में जानकारी मिली थी। इसकी कोई पुष्टि नहीं हो पा रही थी। विभाग के अधिकारी भी इस बारे में कुछ नहीं बता रहे थे। सूचना का अधिकार लागू होने के दो साल बाद वर्ष 2007 में आरटीअाइ से नारी निकेतन से मुन्नी के निरुद्ध और उसके जुर्म के बारे में जानकारी मांगी। जवाब में बताया गया कि मुन्नी 21 जुलाई 1999 को एत्मादपुर क्षेत्र में लावारिस हालत में घूमती मिली थी। इसने पिता का नाम अहमद निवासी जयपुर बताया था। इसके बावजूद उसे घर भिजवाने की जगह नारी संरक्षण गृह भेज दिया गया। सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के बाद मुन्नी के बारे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से शिकायत की गयी। आयोग की टीम ने जांच करने के बाद तत्कालीन डीएम को तलब किया। इसके बाद मुन्नी को 2008 में कानपुर महिला शरणालय भेजा गया। वहां रहकर उसने एक कंपनी में नौकरी की। इसके बाद शादी करके नई जिंदगी की शुरुआत की।
सूचना के अधिकार से लोगों को अपनी गुम होने वाली शिकायतों के ताले की चाबी मिल गयी। वर्ष 2005 में सूचना के अधिकार का कानून लागू होने से पहले फरियाद अधिकारियों को अपनी शिकायत देने के बाद लोग उस पर हुृई कार्रवाई के लिए विभागों के चक्कर काटते थे। अधिकारी के यहां से निकला उनका प्रार्थना पत्र बीच में कहीं गायब हो जाता था। विभाग में पहुंचे अपने प्रार्थना पत्र का पता लगाने के लिए सुविधा शुल्क देना पड़ता था। मगर, सूचना के अधिकार का कानून लागू होने के बाद लोग अब कोई भी प्रार्थना पत्र देने के बाद निर्धारित समय पर कार्रवाई न होने उसके बारे में बिना विभागों के चक्कर काटे उसकी स्थित जान सकते हैं।
वह दस रुपये के शुल्क से सूचना के अधिकार से आसानी से जानकारी हासिल कर लेते हैं। सूचना के अधिकार का कानून विभागों में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करने के साथ ही लोगों का मददगार भी साबित हो रहा है। पुलिस विभाग से इस साल एक हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी शिकायतों पर की गयी कार्रवाई के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सूचना के अधिकार का प्रयाेग किया।
महत्वपूर्ण तथ्य
-ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपने जमीन संबंधी विवाद को लेकर थाने में की शिकायत शिकायत पर हुई कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगते हैं।
-शहर के लोग पड़ोसी या बस्ती में हुए झगड़ों में थाने पर की गयी शिकायत पर हुई कार्रवाई के बारे में ज्यादा जानकारी मांगते हैं।
-महिलाएं पारिवारिक विवाद विशेषकर पति और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत पर हुृई कार्रवाई के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए सूचना के अधिकार का प्रयोग करती हैं।
-सूचना के अधिकार का प्रयोग करने में पुलिसकर्मियों की पत्नियां भी पीछे नहीं हैं। कुछ पुलिसकर्मियों ने अपने को मिलने वाले वेतन की जानकारी पत्नी से छिपाने का प्रयास किया। इस पर उनकी पत्नियों ने सूचना के अधिकार का प्रयोग करके वेतन के बारे में पता कर लिया।
गोपनीयता का हवाला देकर नहीं देते सूचनाएं
आरटीआइ एक्टिविस्ट एवं अधिवक्ता सत्यपाल गोस्वामी बताते हैं पुलिस धारा 8 का हवाला देकर सूचना देने से मना कर देते हैं। धारा आठ के तहत वह सूचनाएं देय नहीं हैं जिनसे किसी की लोकलाज या गोपनीयता भंग होती है। धारा आठ में उन नियम एवं शर्तों का उल्लेख में है, जिसके तहत सूचनाएं देय नहीं हैं।
जन प्रहरी जगा रही अलख
आगरा में सूचना के अधिकार के प्रति अलख फैलाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता नरोत्तम शर्मा ने जन प्रहरी संस्था बनाई। इस संस्था के जरिए वे शहर के अलावा ग्रामीण इलाकों में पत्रक का वितरण सूचना के अधिकार की ताकत से लोगों को वाकिफ करा रहे हैं। साथ ही इस कानून की बारीकियों से अवगत कराने को संगोष्ठियां भी आयोजित कर रहे हैं।
पुलिस में सूचना के अधिकार का प्रयोग करने वालों का आंकड़ा
12 अक्टूबर 2005 को सूचना के अधिकार लागू हुआ था। इस वर्ष तीन महीने के दौरान सिर्फ नौ लोगों ने सूचना के अधिकार का प्रयोग किया। इसके अगले साल 82 लोगों ने इसका प्रयोग किया। जागरूकता बढ़ने के साथ ही यह आंकड़ा बढ़ता चला गया।
वर्ष संख्या
2005 9
2006 82
2007 514
2008 579
2009 979
2010 1636
2011 1408
2012 1700
2014 2400
2015 1800
2017 2833
2018 2186
2019 2100
2020 1050
(नोट: वर्ष 2020 का आंकड़ा एक जनवरी से 30 सितंबर तक का है।)