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काशी विश्वनाथ, आगरा में भी ऐसा मंदिर, जहां औरंगजेब को करना पड़ा था सज्दा

आगरा किला से करीब एक किमी दूर है प्राचीन श्यामजी मंदिर। इतिहासकार बाला दुबे और राजकिशोर राजे ने अपनी पुस्तकों में किया है मंदिर का जिक्र। मंदिर के लिए औरंगजेब ने प्रतिदिन एक रुपया देने की व्यवस्था की थी। एक गांव की जागीर की थी मंदिर के नाम।

By Nirlosh KumarEdited By: Published: Mon, 13 Dec 2021 03:00 PM (IST)Updated: Mon, 13 Dec 2021 03:00 PM (IST)
काशी विश्वनाथ, आगरा में भी ऐसा मंदिर, जहां औरंगजेब को करना पड़ा था सज्दा
आगरा के श्यामजी मंदिर में औरंगजेब को भी नतमस्तक होना पड़ा था।

आगरा, निर्लोष कुमार। काशी विश्वनाथ कारिडोर का सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोकार्पण करने के साथ ही बाबा विश्वनाथ और मां गंगा का मिलन एक बार फिर हो गया। काशीवासी आह्लादित हैं और देश में शिव दीपावली मनाने की तैयारी है। इसके साथ ही चर्चा में आ गया है, मुगल शहंशाह औरंगजेब। वो औरंगजेब जिसने काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में

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ओरछा नरेश वीरसिंह बुंदेला द्वारा निर्मित केशवदेव मंदिर समेत न जाने कितने मंदिरों का विध्वंस करा दिया था। आगरा में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां औरंगजेब को भी सज्दा करना पड़ा था। इस मंदिर को वो तुड़वा नहीं सका था। मंदिर के लिए उसने एक रुपया प्रतिदिन का इंतजाम भी कराया था।

आगरा किला से करीब एक किमी की दूरी पर बिजलीघर से छीपीटोला की तरफ जाने वाले मार्ग पर श्यामजी मंदिर है, जो अत्यंत प्राचीन है। औरंगजेब ने सत्तासीन होने के बाद ही देश में हिंदू मंदिरों को तुड़वाना शुरू कर दिया था। श्यामजी मंदिर को तुड़वाने का आदेश भी उसने किया था। इतिहासकार बाला दुबे की पुस्तक "मोहल्ले आगरा के' में जिक्र है कि श्यामजी मंदिर में प्रतिदिन शाम को पूजा होती थी। धर्म के अलावा औरंगजेब द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों पर भी चर्चा होती। दक्षिण भारत से लौटने के बाद औरंगजेब जब आगरा किला में रुका तो उसे इसकी जानकारी हुई। मंदिर में शाम को आरती की तैयारियां चल ही रही थीं कि मुगल सैनिक वहां आ गए। झांझ, मंजीरे छीनकर फेंक दिए गए। पुजारी ने मंदिर में सुराही में पानी भरकर रखना चाहा तो सिपाहियों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। सिपहसालार ने चांदी की सुराही जब्त कर ली और हंसते हुए कहा कि वेबकूफ कहीं पत्थर और पीतल के बुत पानी पीते हैं। पुजारी को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया और मंदिर बंद कर दिया गया। सुराही को औरंगजेब के पास पहुंचा दिया गया।

उस रात औरंगजेब सो रहा था कि तभी उसे लगा कि किसी ने उसे लात मारी है। वो उठकर बैठा ही था कि उसे किसी ने फिर लात मारी। डरे हुए औरंगजेब को अपने कक्ष में एक सफेद छाया नजर आई। औरंगजेब को आवाज सुनाई दी उठ, पानी भिजवा, मुझे प्यास लगी है। देखता क्या है, उस चांदी की सुराही में पानी भरकर मेरे सिरहाने रख। तू खुद रख। औरंगजेब इससे भयभीत हो उठा। सुबह होते ही औरंगजेब चांदी की सुराही में पानी भरकर श्याम जी मंदिर पहुंच गया। मंदिर का ताला खाेला गया और पुजारी को बुलाकर औरंगजेब ने पानी से भरी सुराही सौंपी। श्यामजी मंदिर की मूर्ति को देखकर उसने कहा था कि इस मंदिर पर फैजाने इलाही का साया है, इसे छेड़ा न जाए। उसी दिन मंदिर से पहरा हटा दिया गया और फिर से आरती में भीड़ जुटने लगी। मंदिर को नहीं तोड़ने का आदेश भी उसने किया था।

मंदिर के नाम की थी एक गांव की जागीर

इतिहासविद् राजकिशोर राजे ने अपनी किताब "तवारीख-ए-आगरा' में इस वाकये का जिक्र किया है। राजे लिखते हैं कि अपनी मंदिर विध्वंस नीति के तहत श्यामजी मंदिर को तोड़ने का आदेश भी औरंगजेब ने किया था। मंदिर के पुजारियों को बंधक बना लिया गया। कहते हैं कि उस रात औरंगजेब ठीक से सो भी नहीं सका। उस रात कुछ ऐसा हुआ कि उसने मंदिर तोड़ने का आदेश ही वापस नहीं लिया, बल्कि मंदिर के लिए एक रुपया प्रतिदिन देने की व्यवस्था भी की। एक गांव की जागीर भी उसने मंदिर के नाम कर दी। कभी श्यामो गांव मंदिर की जागीर हुआ करता था।


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