Kalashtami 2020: वो पांच उपाय जो खोलेंगे सफलता का रास्ता, जानिए काल भैरव की पूजा विधि
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार जो भक्त काल भैरव देव की पूजा करते हैं। उनके जीवन से सभी दुःख और क्लेश दूर हो जाते हैं। जीवन में यश और कीर्ति का आगमन होता है।
आगरा, जागरण संवाददाता। 14 मई, यानि आज कालाष्टमी मनाई जाएगी। यूं तो हर माह कालाष्टमी की तिथि आती है लेकिन ज्येष्ठ माह की यह तिथि विशेष महत्व रखती है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार इस दिन भगवान शिव जी के रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त काल भैरव देव की पूजा करते हैं। उनके जीवन से समस्त प्रकार के दुःख और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में यश और कीर्ति का आगमन होता है। कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन श्री भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। भैरव बाबा की पूजा करने से व्यक्ति रोगों से दूर रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है।
अपनाएं ये पांच उपाए
- कालाष्टमी के कुत्ते को भोजन कराना चाहिए। ऐसा करने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। भैरव बाबा का वाहन कुत्ता होता है, इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन कराने से विशेष लाभ होता है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने से भैरव बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अगर संभव हो तो इस दिन उपवास भी रखना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- कालाष्टमी के पावन दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन भैरव बाबा के साथ मां दुर्गा की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए।
- काल भैरव भगवान शिव के ही अवतार हैं, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की कथा का श्रवण करना शुभ रहता है।
- कालाष्टमी के दिन भैरव बाबा को भोग लगाएं। आप अपनी इच्छानुसार भैरव बाबा को भोग लगा सकते हैं। भैरव बाबा को चने-चिरौंजी, पेड़े, काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा पसंद होते हैं।
कालाष्टमी पूजा विधि
कालाष्टमी की रात में काल भैरव की पूजा विधि विधान से करना चाहिए। इस दौरान भैरव कथा का पाठ करना चाहिए। उनको पूजा के बाद जल अर्पित करें। काल भैरव का वाहन कुत्ता है, इस दिन को भोजन कराना शुभ और फलदायी माना जाता है। काल भैरव की पूजा के बाद मां दुर्गा की भी विधिपूर्वक पूजा करें। रात में मां पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनकर रात्रि जागरण करें। व्रत रखने वाले लोगों को फलाहार करना चाहिए।
काल भैरव पूजा मंत्र
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।
काल भैरव देव की उत्पत्ति की कथा
पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि काल भैरव की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं हैं, लेकिन इनमें सबसे सटीक और सच कथा इस प्रकार है। धार्मिक किदवंती के अनुसार, एक बार देवताओं ने भगवान ब्रह्मा देव और विष्णु जी से पूछा कि- हे जगत के रचयिता और पालनहार कृपा कर बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? देवताओं के इस सवाल से ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लग गई। इसके बाद सभी देवतागण, ब्रह्मा और विष्णु जी सहित कैलाश पहुंचे और भगवान भोलेनाथ से पूछा गया कि- हे देवों के देव महादेव आप ही बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं? देवताओं के इस सवाल पर भगवान शिव जी के तेजोमय और कांतिमय शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली, जो नभ और पाताल की दिशा में बढ़ रही थी। तब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा- आप दोनों में जो सबसे पहले इस ज्योति की अंतिम छोर पर पहुंचेंगे। वहीं, सबसे श्रेष्ठ है। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय बाद ब्रम्हा और विष्णु जी लौट आए तो शिव जी ने उनसे पूछा-हे देव क्या आपको अंतिम छोर प्राप्त हुआ। इस पर विष्णु जी ने कहा -हे महादेव यह ज्योति अनंत है, इसका कोई अंत नहीं है। जबकि ब्रम्हा जी झूठ बोल गए, उन्होंने कहा- मैं इसके अंतिम छोर तक पहुंच गया था। यह जान शिव जी ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठें, और शिव जी के प्रति अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करने लगे। यह सुन भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने ब्रम्हा जी के चौथे मुख को धड़ से अलग कर दिया। उस समय ब्रह्मा जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव जी से क्षमा याचना की। इसके बाद कैलाश पर्वत पर काल भैरव देव के जयकारे लगने लगे।