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Janmashtami 2020: कृष्ण की भक्ति से पहले समझ लें क्या है राधा नाम की शक्ति

anmashtmi 2020 प्रेम की देवी राधा श्रीकृष्ण की परम सखी ही नहीं बल्कि उनकी गुरु भी हैं। राधा और कृष्‍ण दो नाम भले ही हैं लेकिन अर्थ दोनों का एक ही है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 12:56 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 12:56 PM (IST)
Janmashtami 2020: कृष्ण की भक्ति से पहले समझ लें क्या है राधा नाम की शक्ति
Janmashtami 2020: कृष्ण की भक्ति से पहले समझ लें क्या है राधा नाम की शक्ति

आगरा, जागरण संवाददाता। कृष्ण हैं विस्तार यदि तो सार हैं राधा। कृष्ण की हर बात का आधार हैं राधा। कृष्ण के जीवन की धारा हैं राधा। यदि राधा नाम न लिया तो कृष्ण भक्ति अधूरी है। कृष्ण की कृपा यदि पानी है तो राधा नाम की महिमा पहले समझ लेनी चाहिए। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार प्रेम की देवी राधा श्रीकृष्ण की परम सखी ही नहीं बल्कि उनकी गुरु भी हैं। राधा और कृष्‍ण दो नाम भले ही हैं लेकिन अर्थ दोनों का एक ही है। कृष्‍ण ने अपने अवतार में कर्म के साथ प्रेम की प्रधानता का महत्‍व भी समझाया। अगर 'प्रेम' शब्द का कोई समानार्थी है तो वो राधा-कृष्ण है। प्रेम शब्द की व्याख्या राधा-कृष्ण से शुरू होकर उसी पर समाप्त हो जाती है। राधा-कृष्ण की प्रीति से समाज में प्रेम की नई व्याख्या, एक नवीन कोमलता का आविर्भाव हुआ। समाज ने वो भाव पाया, जो गृहस्थी के भार से कभी भी बासा नहीं होता। राधा-कृष्ण के प्रेम में कभी भी शरीर बीच में नहीं था। जब प्रेम देह से परे होता है तो उत्कृष्ट बन जाता है और प्रेम में देह शामिल होती है तो निकृष्ट बन जाता है।

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'राधामकृष्णस्वरूपम वै, कृष्णम राधास्वरुपिनम;

कलात्मानाम निकुंजस्थं गुरुरूपम सदा भजे।'

रुक्मणि भी जानती थीं कृष्ण के जीवन की धारा हैं राधा

रुक्मणि व कृष्ण की अन्य रानियों ने कभी भी कृष्ण और राधा के प्रेम का बहिष्कार नहीं किया। रुक्मणि राधा को तबसे मानती थीं, जब कृष्ण के वक्षस्थल में तीव्र जलन थी। नारद ने कहा कि कोई अपने पैरों की धूल उनके वक्षस्थल पर लगा दे, तो उनका कष्ट दूर हो जाएगा। कोई तैयार नहीं हुआ, क्योंकि भगवान के वक्षस्थल पर अपने पैरों की धूल लगाकर हजारों साल कौन नरक भोगेगा? लेकिन राधा सहर्ष तैयार हो गईं। उन्हें अपने परलोक की चिंता नहीं थी, कृष्ण की एक पल की पीड़ा हरने के लिए वह हजारों साल तक नरक भोगने को तैयार थी। उस समय तो रुक्मणि चमत्कृत थी, जब कृष्ण के गरम दूध पीने से राधाजी के पूरे शरीर पर छाले आ गए थे। कारण था कि राधा तो उनके पूरे शरीर में विद्यमान हैं।

हर रिश्‍ते में समभाव रखते थे कृष्‍ण

पंडित वैभव कहते हैं कि कृष्ण ने यौवन का पूर्ण आनंद लिया, जो संयमित था। उनकी उद्दीप्त मुरली की तान ने कभी भी मर्यादाओं की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। राधा के प्रति प्रेम तो अनन्य है लेकिन सभी अपनों के प्रति उनके प्रेम में कोई अलग भाव नहीं था। अपनी दोनों माताओं एवं पिताओं, अपनी रानियों, ग्वाल बालों, संगी-साथियों, ब्रज वनिताओं से भी कृष्ण उतने ही घनिष्ठ थे।

रास का अर्थ

पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि श्रीकृष्‍ण ने रास रचाया, लेकिन रास है क्या? जब कोई मनोवेग इतना प्रबल हो जाए कि चुप न रह सके, चिल्ला उठे तो वह रास बन जाता है। उस महारास का मुख्य उद्देश्य था महिलाओं की जाग्रति। बेचारी महिलाएं अपने मन की बात कैसे करें। समाज का बंधन, परिवार का बंधन। उस महारास में ब्रज की महिलाओं ने अपने अस्तित्व को नई पहचान दी थी। कृष्ण की कुशलता थी कि उन्होंने सबको एक जैसा स्नेह दिया। पशु-पक्षी, शिक्षित-अशिक्षित, रूपवान-कुरूप सभी को समदृष्टि से देखा और अपने स्नेह से वश में कर लिया।

जनमानस से जुड़े कृष्‍ण

कृष्ण का भारतीय जनमानस पर अद्भुत प्रभाव है। जन्म से लेकर मोक्ष तक वो भारतीय जनमानस से जुड़े रहे। उनके चरित्र को लोग इतने निकट पाते हैं कि लगता है कि ये सब उनके घर में ही घटित हुआ हो। अपने पूरे जीवनकाल में वो भारतीय जनमानस का नेतृत्व करते हुए दिखाई देते हैं। बचपन में इन्द्र के अभिमान को चूर करके प्रकृति के स्वरूप गोवर्धन की पूजा करवाते हुए ग्रामीणजनों एवं किसानों का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाई देते हैं। अन्यायी कंस का वध करके पूरे परिवार एवं समाज को भयमुक्त बनाते हैं। गरीब सुदामा के प्रति उनका प्रेम समाज के दलित एवं शोषित वर्ग के उत्थान का प्रतिनिधित्व करता है। गीता का संबोधन समस्त मानव जाति को बुराइयों से बचने का संदेश है।


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