पूजा करते वक्त बहुत जरूरी है कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना, भूलकर भी न करें ये गलतियां
पूजा करते हैं तो ध्यान अंतिरक्ष में जाता है। और ध्यान को ऊपर ले जाने में सुषुम्ना नाड़ी का बहुत बड़ा योगदान होता है। यह नाड़ी रीड़ की हड्डी में से होकर ब्रह्मरंध्र चक्र से जुड़ी होती है। अगर कमर और गर्दन झुक जाएंगी तो नाड़ी भी झुक जाएगी।
आगरा, जागरण संवाददाता। सनातन धर्म की एक मान्यता है कि अपने दिन को यदि पूरी तरह उत्साह, उर्जा से परिपूर्ण रखना चाहते हैं तो इश्वर की आराधना या पूजा से दिन की शुरूआत करनी चाहिए। इसके पीछे सिर्फ धार्मिक सोच ही नहीं है। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छुपा हुआ है। जैसे कि एक मान्यता के अनुसार पूजा करते वक्त साधक को सीधे बैठना चाहिए। इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण के बारे में सनातन धर्म की जानकार विनीता मित्तल बताती हैं कि जब हम पूजा करते हैं तो कमर और गर्दन को सीधा रखने को कहा जाता है। इसका मुख्य कारण है कि जब हम पूजा करते हैं तो ध्यान अंतिरक्ष में जाता है। और ध्यान को ऊपर ले जाने में सुषुम्ना नाड़ी का बहुत बड़ा योगदान होता है। यह नाड़ी रीड़ की हड्डी में से होकर ब्रह्मरंध्र चक्र से जुड़ी होती है।
अगर कमर और गर्दन झुक जाएंगी तो नाड़ी भी झुक जाएगी। अगर नाड़ी झुक जाएगी तो ब्रह्मरंध्र की नाड़ियां धुलोक से संपर्क बनाने मे असमर्थ हो जाती है। क्योंकि तरंगों की दिशा नीचे की ओर हो जाती है। और जो ध्यान की तरंगें ऊपर को जानी चाहिए। वो नीचे को जाना शुरू कर देती है। ध्यान हमेशा ऊपर को सोचने से ही लगता है। इसलिए हवन यज्ञ ध्यान और पूजा पाठ में हमेशा कमर और गर्दन को सीधा रखना चाहिए।
गीले सिर पूजा करना दे सकता है नुकसान
अगर आप जल्दबाजी मे गीले सिर पूजा करते हो तो बहुत हानिकारक होता है। इसके अलावा जमीन पर बिना कुचालक आसन के बैठ जाते हैं तो भी बहुत हानिकारक होता है। जब आप पूजा करते हो तो उस समय आपके शरीर से विधुत तरंगें निकलती हैं। और आपका सिर गीला होता है तो वो विधुत तरंगे गीले सिर के वालों में ही विलय कर जाती है। जिसके कारण ध्यान क्रिया तो बाधित होती ही है इसके साथ साथ सिर मे भयंकर बीमारियों का जन्म हो जाता है। इसी प्रकार जब आप खाली जमीन पर बैठते हो तरंगें मूलाधार चक्र से भी बाहर निकलती है तथा वो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र मे संपर्क बना लेती है। जिसके कारण वो तरंगें जमीन मे चली जाती है। जो शरीर की पॉजिटिव ऊर्जा को खींच लेती है। जो ध्यान से उत्पन्न होती है। क्योंकि पृथ्वी सुचालक का काम करती है। इसलिए पूजा करते समय कुचालक आसन का प्रयोग करना चाहिए। जिससे उत्पन्न तरंगें सीधे ऊपर की ओर जाये तथा ध्यान और पूजा मे सहायक बन जाए।