वृद्धाश्रम में हो गई संस्कारों की 'इंटर्नशिप', जानिए गांव गांव क्यों घूम रहे छात्र छात्राएं Agra News
एनएसएस के छात्र-छात्राओं की बुजुर्गों से हाल पूछते कभी गला रुंध गया तो व्यथा सुन छलकीं आंखें।
आगरा, जिज्ञासु वशिष्ठ। गांव-गांव घूम-घूमकर राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तहत इंटर्नशिप कर रहे छात्र-छात्राएं वृद्धाश्रम गए तो थे राष्ट्र की सेवा का पाठ पढ़ाने, मगर वहां के माहौल ने व्यथित कर दिया। बुजुर्गोे से बात करते-करते कभी गला रुंध गया तो किसी की आंखें झलझला उठीं। और जब लौटे तो संस्कारों की 'इंटर्नशिप' कर चुके थे।
वृद्धाश्रम में पहुंचे केए कॉलेज के छात्रों से जब बुुजुर्ग रामवचन ने कहा 'मौज में हैं....।, तो मनदीप की आंखें डबडबा गईं। बुजुर्ग के मुख से निकलने वाला अल्फाज भले ही 'मौज' था, लेकिन इसमें दर्द छिपा हुआ था, अपनों की बेरुखी का तो मौजूदा हालातों का।
सिर्फ मनदीप की आंखें ही नहीं डबडबाईं, बल्कि मनप्रीत तो एक बुजुर्ग की हालत देख कर रो पड़ी। उनसे जब दादा कहकर उनका हाल पूछा तो वह रो पड़े। जुबां से कुछ न बोल सके। शायद अपनों ने भुला दिया, यहां पर यह बच्चे दादा पुकार रहे थे इसलिए। एक बुजुर्ग तो अपने परिजनों के व्यवहार से इतने आहत थे कि अब ङ्क्षजदा नहीं रहना चाहते। केए कॉलेज के एनएसएस के डेढ़ दर्जन छात्र-छात्राएं योजनाधिकारी डॉ.मिथलेश पांडे एवं डॉ.रानू शर्मा के नेतृत्व में समर इंटर्नशिप के लिए गांव-गांव जा रहे हैं।
इसके तहत वह प्रधान सुरेंद्र सिंह के साथ में शनिवार को सुबह 11 बजे करीब वृद्धाश्रम पहुंचे। यहां बुजुर्गों के साथ इन्होंने करीब डेढ़-दो घंटे बिताए। बुजुर्गों के पास जाकर बातचीत की। उनके दर्द को जानने का प्रयास किया। शिक्षिका डॉ.रानू शर्मा ने बताया कि वह अक्सर यहां आती हैं ऐसे में सोचा था क्यों ने इन बच्चों को भी यहां लाया जाए, ताकि जो संस्कार गुम हो रहे हैं वह जागृत हों।
दिल की बात
यहां आकर देखा कि जो माता-पिता बच्चों को पढ़ाते-लिखाते हैं। जब उनकी बारी आती है तो वह उन्हें किस हाल में छोड़ जाते हैं।
-विदुषी अग्रवाल
'हर बच्चे को शुरू से मां-बाप को समझना चाहिए। इस तरह से माता-पिता को छोड़ देना गलत है।
-मनदीप कौर
'मैं दूसरी बार यहां आई है। एक बार सहेली के जन्मदिवस पर आई थी। बुजुर्ग मां-बाप हम सबकी जिम्मेदारी हैं।
-अदिति बंसल
'किसी ने कहा बेटा अच्छा था, लेकिन बहू के आने के बाद घर में नहीं रखा, लेकिन जो भी हो। बहुएं भी बेटी होती हैं। बेटों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।
-गौरव