Indian Air Force Day: बहुत जल्द भारत के पास भी होगा रूस- अमेरिका जैसा पैराशूट Agra News
उन्नत किस्म का स्वदेशी पैराशूट है रैम एयर मार्क-टू। एडीआरडीई विकसित कर रहा है पैराशूट। तकनीकी टेस्ट के ट्रायल में उतर चुका है खरा।
आगरा, अमित दीक्षित। पैराशूट की दुनिया में भारत ने एक बड़ी छलांग लगाई है। भारत के पास अमेरिका, रूस जैसा पैराशूट होगा। यह अब तक का सबसे उन्नत किस्म का स्वदेशी पैराशूट होगा। इसका नाम रैम एयर मार्क-टू है। पैराशूट के तकनीकी ट्रायल पूरे हो गए हैं। अब अगले चरण के ट्रायल शुरू होने जा रहे हैं। हवाई वितरण अनुसंधान एवं विकास संस्थापना (एडीआरडीई) के वैज्ञानिकों ने यह सफलता दो से तीन साल की मेहनत के बाद प्राप्त की है। एडीआरडीई ने दशक भर पूर्व रैम एयर मार्क-वन बनाया था।
वर्तमान में सेना व एयरफोर्स जेनरेशन टू (पीटीए-एम) के पैराशूट इस्तेमाल कर रही है, जबकि तीसरी पीढ़ी के पैराशूट टेक्टिकल असॉल्ट (पीटीए)-जी टू को विकसित किया जा रहा है। पीटीए-जी टू पैराशूट हर ट्रायल में पास हुआ है। इन सब के बीच एडीआरडीई ने ऐसे उन्नत श्रेणी के पैराशूट पर काम शुरू किया। जो खास तरीके के हैं। लैंडिंग के दौरान पैराट्रुपर को दिक्कत न हो और पैराशूट लंबी दूरी तक चला जाए। यही नहीं, उसका वजन भी कम हो और सालों साल तक चले।
रफ्तार नहीं बनेगी बाधा
रैम एयर मार्क-टू पैराशूट की मदद से 260 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ने वाले विमान से भी छलांग लगाई जा सकेगी।
उन्नत किस्म की नायलॉन का प्रयोग
रैम एयर मार्क-टू में उन्नत किस्म की नायलॉन अन्य मैटेरियल से तैयार किया गया है। पैराशूट की उम्र करीब बीस साल है।
दस हजार फीट से लगा सकते हैं छलांग
रैम एयर मार्क-टू पैराशूट यूं ही खास नहीं है। इस पैराशूट से दस हजार फीट की ऊंचाई से छलांग लगा सकते हैं। इसे कमांड करना आसान है। यहां तक ऐसे पैराशूट से हरक्युलिस 130 जे, एएन-32, आइएल-76 सहित अन्य विमानों से छलांग लगाई जा सकेगी।
यह है पैराशूट का इतिहास
पहली जनरेशन : सबसे पहले पैराट्रुपर पैराशूट (पीटीआर)-मेन (एम) पैराशूट विकसित किया था।
इस पैराशूट का सेना व एयरफोर्स ने 25 साल तक इस्तेमाल किया। अब पीटीआर-एम का कम इस्तेमाल हो रहा है।
दूसरी जनरेशन : पीटीआर-एम के बाद पीटीए-एम को सेना ने अपनाया, वर्तमान में पीटीए-एम का इस्तेमाल किया जा रहा है। फिर पीटीए-आर का प्रयोग किया गया।
कम होगा वजन
सामान्य पैराशूट का वजन 16 किग्रा होता है। पीटीए-जी 2 का वजन 14 किग्रा है, जबकि रैम एयर मार्क-टू पैराशूट का वजन इससे कम होगा। 1250 फीट की ऊंचाई से कूदने पर यह एक मिनट में नीचे आ जाएगा।
कैनबरा विमान ने दुश्मनों को चटाई थी धूल
आगरा एयरफोर्स स्टेशन यूं ही खास नहीं है। इसका इतिहास गौरवशाली है। कांगो हो या फिर पाकिस्तान। कैनबरा विमान जहां भी गया। दुश्मनों को धूल चटाई और सुरक्षित लौटकर आया। हालांकि वर्ष 2005 के आसपास एक विमान क्रैश हो गया। फिर इनका उपयोग बंद कर दिया गया। अमेरिका निर्मित 14 वीं स्क्वाड्रन के सदस्य कैनबरा को द्वितीय विश्व युद्ध में लोकप्रिय हुए हंटर बमवर्षक श्रृंखला में तैयार किया गया था। विश्व युद्ध के दौरान एक भी विमान क्षतिग्रस्त नहीं हुआ। आगरा में आधा दर्जन विमान थे। वर्ष 1961-62 में कांगो (जायरे) में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेनाओं में कैनबरा भी शामिल था। आगरा से ही भारतीय वायुसेना का प्रतिनिधित्व किया था। यही नहीं, वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई थी।
इसलिए हटाना पड़ा
कैनबरा सीरीज के बाद आए विमानों में कई खासियत थीं। विमान में धुआं उठते ही दुर्घटना की आशंका पर पायलट स्वचालित ढंग से पैराशूट के साथ बाहर आ जाता है लेकिन कैनबरा में यह सुविधा नहीं थी। इस सिस्टम के अभाव में पायलट चाहकर भी दुर्घटनाग्रस्त होने वाले विमान से अलग नहीं हो सकता।
हवा से हवा में भर सकते हैं ईंधन
आगरा एयरफोर्स स्टेशन में आइएल-78 जैसे तेलवाहक विमान हैं। फाइटर प्लेन को हवा से हवा में ईंधन दिया जा सकता है।
अवाक्स भी
एयरबोर्न अर्ली वार्निग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट (अवाक्स) आगरा एयरफोर्स स्टेशन में है। इससे दुश्मनों की हर हरकत पर निगाह रखी जाती है।