Independence Day 2022: दर−ब−दर, फिर शून्य से शिखर, पढ़ें कैसे तय किया पाकिस्तान से आगरा तक का सफर
Independence Day 2022 एक दिन के बेटे और दो बेटियों के साथ छोड़ा था घर। आगरा के मनमोहन चावला के पिता का पाकिस्तान में था मेवों का कारोबार। वर्तमान में आगरा में इंटर और डिग्री कालेज के साथ है आइटीआइ।
आगरा, जागरण संवाददाता। गोदी में एक दिन का बच्चा, पेट में बंधी नकदी, दो बेटियों की सुरक्षा की चिंता और स्थापित व्यापार छोड़ कर आने का दुख, सबको समेटे 15 अगस्त को मनमोहन चावला के पिता पाकिस्तान के भावलपुर से निकले। कई दिनों की यात्रा के बाद आगरा पहुंचे और यहां अपना काम स्थापित किया। वर्तमान में आगरा में इस परिवार का एक डिग्री कालेज, आइटीआइ और इंटर कालेज है।
मनमोहन चावला बताते हैं कि उनके पिता स्वर्गीय रामकिशन चावला का पाकिस्तान के भावलपुर में मेवों का थोक का काम था।दो बहनें बड़ी थीं और 14 अगस्त को बड़े भाई सुभाषचंद चावला का जन्म हुआ था। स्थिति ज्यादा गंभीर हुई तो दुकान पर काम करने वाले ही दगाबाज निकले। कुछ ने मदद की लेकिन सामान नहीं ले जाने दिया। एेसे में जितनी नकदी थी उसे पेट पर बांधा।
एक हफ्ते पहले दिल्ली के लिए एक ड्राफ्ट तैयार करवा लिया था, वो लिया और भरा-पूरा घर और दुकान छोड़कर आ गए।ट्रेनों में मार-काट मची थी। किसी तरह चार-पांच दिन में पूरा परिवार पंजाब पहुंचा। यहां 15-20 दिन रूके। फिर हरियाणा में रूके और उसके बाद आगरा आकर बस गए। आगरा में सरकार की तरफ से घटिया में मकान मिला, जहां 1957 तक रहे। इसके बाद बल्केश्वर में निवास बनाया। आगरा आकर अजीत मार्केट में कपड़े का थोक कारोबार शुरू किया। काम चल निकला तो फाइनेंस का काम किया। मनमोहन चावला का जन्म आगरा में ही हुआ।
मनमोहन बताते हैं कि सालों तक फाइनेंस का काम किया, तीन कंपनियां थीं। टीवी का शोरूम भी था।अब बल्केश्वर में ही इंटर और डिग्री कालेज हैं। यहीं आइटीआइ भी है। इसके साथ ही एक रेडियो एफएम चैनल भी संचालित है।मां कृष्णा देवी चावला सालों तक उस भयावहता को याद करती रहीं। मनमोहन चावला जनसंघ के समय से ही राजनीति से जुड़े। भाजपा के सक्रिय सदस्य हैं।