Independence Day 2022: आजादी आंदोलन का प्रमुख केंद्र थी एटा की चमन कोठी, पढ़ें क्यों मालिक ने महात्मा गांधी को बताया था अपना बल्दियत
Independence Day 2022 कोठी के मालिक नियाज जुबैरी आजादी के दीवाने थे और कोठी में रहने वाले इस शख्स को काल कोठरी मिली। आज भी यह कोठी आन वान शान की तरह है। आंदोलन के दौरान कोठी में रहने वाले शख्स को काल कोठरी मिली।
आगरा, जागरण टीम। आजादी के आंदोलन के दौरान मारहरा की चमन कोठी क्रांतिकारी गतिविधियों का बड़ा केंद्र बनकर उभरी। आजादी के इतिहास को देखें तो यह कोठी आज भी आजादी के तीर्थ की तरह है। खास बात यह है कि इस कोठी के मालिक नियाज जुबैरी आजादी के दीवाने थे और कोठी में रहने वाले इस शख्स को काल कोठरी मिली। आज भी यह कोठी आन, वान, शान की तरह है।
नियाज अहमद जुबैरी का जन्म सन 1898 में हुआ था। चूंकि वह वक्त भारत की गुलामी का था, इसलिए देश को आजाद कराने में उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना, अंग्रेजों से लोहा लिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर चलाए गए नमक आंदोलन में भी उनकी बराबर भागेदारी रही। इसके लिए उन्हें एक वर्ष का कठोर कारावास भुगतना पड़ा था।
सन 1931 में जब वह एटा जेल में कैद थे, उस समय वहां एक ऐसी घटना घटित हुई, जो मारहरा की हिंदू-मुस्लिम एकता की विरासत को आज भी कायम रखे हुए है। हुआ यूं, कि जेल में कैद एक हिंदू बंदी को अंग्रेज जेलर ने उसे सिर्फ इस बात पर ठोकर मार दी थी, कि वह उसके सामने पवित्र ग्रंथ गीता का पाठ पढ़ रहा था। यह घटना देख जुबैरी सहन नहीं कर सके और उन्होंने भरे न्यायालय में तथाकथित जेलर के गाल पर तमाचा जड़ दिया था। इसके लिए उन्हें काल कोठरी की सजा भुगतनी पड़ी थी। आंदोलन के दौरान कोठी में रहने वाले शख्स को काल कोठरी मिली।
नियाज अहमद जुबैरी के छोटे भाई अजीज अहमद जुबैरी ने भी आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। ये वह सेनानी थे, जिन्होंने जेल में उनकी बल्दियत पूछे जाने पर अपने पिता का नाम महात्मा गांधी बताया था। उनकी मां के देहांत पर उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लपेट कर सुपुर्दे खाक किया गया था। स्वदेशी आंदोलन के दौरान उन्होंने अपने परिवार के अलावा नगर के दर्जनों परिवारों के रेशमी व विदेशी कपड़े बीच चौराहे पर जलवाकर विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। चमन कोठी मारहरा में काफी मशहूर है और आजादी के बाद आज भी शान से खड़ी हुई है।