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Independence Day 2022: आगरा में धधक उठी थी अगस्त क्रांति की ज्वाला, एक आवाज ने दी थी गूंगों को भी जुबान

Independence Day 2022 आजादी की आवाज बुलंद करने वालों को पुलिस ने किया था गिरफ्तार। नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन और छिटपुट झड़पें हुई थीं। युवाओं को जंगल में छोड़ देती थी पुलिस। यूनियन जैक को नहीं दी थी सलामी।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 09 Aug 2022 03:16 PM (IST)Updated: Tue, 09 Aug 2022 03:16 PM (IST)
Independence Day 2022: आगरा में धधक उठी थी अगस्त क्रांति की ज्वाला, एक आवाज ने दी थी गूंगों को भी जुबान
मोती गंज स्थित पुरानी चुंगी का मैदान।

आगरा, जागरण संवाददाता। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। हर घर तिरंगा के लक्ष्य के साथ आजादी की 75वीं सालगिरह का उत्सव मनाने की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। 80 वर्ष पूर्व महात्मा गांधी के आह्वान पर नौ अगस्त, 1942 को शहर में क्रांति की ज्वाला धधक उठी थी। शहर के हर गली-मुहल्ले से आजादी के दीवानों की टोलियां सड़कों पर निकल आई थीं। ब्रिटिश सरकार के उत्पीड़न के खिलाफ गर्व से सिर उठाकर शहरवासियों ने आजादी का बिगुल फूंक दिया था।

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कांग्रेस का अधिवेशन बंबई (मुंबई) में अगस्त, 1942 में हुआ था। इसमें महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ आजादी के लिए करो या मरो का आह्वान किया था। नौ अगस्त से आंदोलन की शुरुआत होनी थी। आठ अगस्त को ही कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को मुंबई में गिरफ्तार कर लिया गया था। कांग्रेस मुख्यालय से तार मिलने के बाद शहर में आंदोलन में रूपरेखा तैयार की गई थी। नौ अगस्त को पुलिस ने श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल और पं. जगन प्रसाद रावत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। शहर की गलियों में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाने वाले प्रकाश नारायण शिराेमणि, राधेमोहन अग्रवाल, श्रीचंद दौनेरिया, शांतिस्वरूप श्रीवास्तव, पं. कालीचरन तिवारी, गोपाल नारायण शिरोमणि, लक्ष्मीनारायण बंसल, पं बैजनाथ प्रसाद समेत अन्य क्रांतिकारियों को भी गिरफतार कर लिया गया। नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में जनता ने प्रदर्शन किए थे। कई जगह छिट-पुट झड़पें भी हुईं।

युवाओं को जंगल में छोड़ देती थी पुलिस

अगस्त क्रांति की शुरुआत के बाद युवाओं को लेकर पुलिस अत्यधिक सतर्क हो गई थी। युवाओं को जेल भेजने के बजाय उन्हें पकड़कर जंगल में छोड़ दिया जाता था। पुलिस को यह भय था कि अगर युवाओं को जेल में रखा गया तो वह क्रांतिकारियों के साथ मिल जाएंगे।

यूनियन जैक को नहीं दी थी सलामी

स्वतंत्रता सेनानी सरोज गौरिहार ने बताया कि उस समय वह 11-12 वर्ष की थीं और सिंगी गली स्थित सीनियर कन्या पाठशाला में सातवीं में पढ़ती थीं। नौ अगस्त को छात्राएं स्कूल की सीढ़ियों पर खड़ी हो गई थीं। शिक्षकों को छोड़कर किसी को स्कूल में प्रवेश नहीं करने दिया था। स्कूल में यूनियन जैक को सलामी दी जाती थी। छात्राओं ने यूनियन जैक को सलामी देने से इन्कार कर दिया था। शहर में जगह-जगह लोग इकट्ठे हो गए थे। आजादी के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने का जुनून सिर पर हावी था। 


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