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हो जाएं सावधान, भूखे रहने या कम खाने से हो सकते हैं इस रोग के शिकार

रेनबो आरोग्यम में लगा जनरल सर्जरी, नेत्र रोग एवं रक्त संबंधी समस्याओं का शिविर। रेनबो हॉस्पिटल में सर्जरी की यूनिट शुरू, डा. विनीत वर्मा नियमित रूप से देंगे संवाएं।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 05:32 PM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 06:00 PM (IST)
हो जाएं सावधान, भूखे रहने या कम खाने से हो सकते हैं इस रोग के शिकार
हो जाएं सावधान, भूखे रहने या कम खाने से हो सकते हैं इस रोग के शिकार

आगरा [जागरण संवाददाता]: गॉल ब्लैडर स्टोन के मामले पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहे हैं। अमूमन यह रोग 30 से 50 साल की महिलाओं में अधिक पाया जाता है। महिलाओं में जहां इस रोग की उपस्थिति तीन गुना ज्यादा है, वहीं दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी और मध्य भारत के लोगों में सात गुना ज्यादा देखी गई है। यह जानकारी शहर के वरिष्ठ सर्जन डा. विनीत वर्मा ने दी।

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रेनबो हॉस्पिटल की नई यूनिट रेनबो आरोग्यम की ओर से रविवार को जनरल सर्जरी एवं नेत्र शिविर आयोजित किया गया। इसमें वरिष्ठ सर्जन डा. विनीत वर्मा और नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. रजत गोयल ने मरीजों को सेवाएं प्रदान कीं। डा. विनीत ने बताया कि पित्त की पथरी बनने का कारण अभी बहुत स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन कम कैलोरी, तेजी से वजन घटाने वाले भोजन व लंबे समय तक भूखे रहने से गॉल ब्लैडर सिकुडऩा बंद हो जाता है और इस वजह से इसमें पथरी विकसित हो जाती है। पित्त की पथरी और मोटापा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन और हाइपरकोलेस्टोरोलेनिया जैसे लाइफस्टाइल रोगों के बीच गहरा ताल्लुक होता है। डा. रजत गोयल ने बताया कि आंखों के मामलों में लोगों को आम तौर पर बस एक ही जानकारी होती है, मोतियाबिंद। लेकिन हमारी दिनचर्या में आंखें कई तरह के जोखिमों से गुजरती हैं। वायरल कंजक्टिवाइटिस और आंखों में होने वाली एलर्जी भी समय-समय पर लोगों को परेशान करती है, जिसे गंभीरता से न लेने पर गंभीर समस्या हो सकती है। रेनबो आरोग्यम, रेनबो हॉस्पिटल के आनंद अग्रवाल और अमित अग्रवाल ने बताया कि 25 वर्षों से अधिक अनुभव प्राप्त एवं सेंट स्टीफन हॉस्पिटल, दिल्ली में लंबे समय तक सेवाएं प्रदान कर चुके जनरल एवं लेप्रोस्कोपिक सर्जन डा. विनीत वर्मा अब रेनबो आरोग्यम में अपनी नियमित सेवाएं प्रदान करेंगे। वे यहां मरीजों के लिए उपलब्ध रहेंगे। रविवार को आयोजित शिविर में डा. वर्मा द्वारा पित्त की थैली में पथरी, अपेंडिक्स, हर्निया, आंत संबंधी रोगों से ग्रसित मरीजों को 50 रूपये के शुल्क पर सेवाएं प्रदान की गईं, पैथोलॉजी, अल्ट्रासाउंड, मोतियाबिंद की जांच, आंखों के पर्दे एवं पूर्ण आंखों की जांच पर 50 प्रतिशत की छूट प्रदान की गई, साथ ही रियायती दरों पर ऑपरेशन किए गए। आगे भी यह ऑपरेशन रियायती दरों पर किए जाएंगे। सुबह 10.30 से दोपहर 1.30 बजे तक आयोजित शिविर का लाभ 100 से अधिक मरीजों ने उठाया।

मौत का सर्टिफिकेट नहीं है ब्लड कैंसर

इधर रेनबो हॉस्पिटल एवं राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल के संयुक्त तत्वावधान में रेनबो आरोग्यम, रेनबो हॉस्पिटल में ही हिमेटोलॉजी यानि रक्त संबंधी स्वास्थ्य शिविर लगाया गयाय। शिविर में राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल नई दिल्ली के हीमेटोलॉजी एवं बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के अध्यक्ष डा. दिनेश भूरानी और डॉ पंकज गोयल ने मरीजों को सेवाएं प्रदान कीं। शिविर समाप्त होने तक उन्होंने 50 से अधिक मरीज देखे। इसमें एनीमिया, थैलीसीमिया, ब्लड डिस्क्रिसिस, ब्लड कैंसर के मरीजों की जांचें एवं परामर्श प्रदान किया गया। डा. दिनेश ने बताया कि ब्लड कैंसर का नाम सुनते ही लोग ये मान लेते हैं कि अब जीना मुश्किल है, लेकिन ऐसा नहीं है। कैंसर से पहले खून में गडबडी यानि ब्लड डिसऑर्डर होता है। अगर समय रहते डिसऑर्डर का पता लगा लिया जाए तो उसे कैंसर में तब्दील होने से रोका जा सकता है। ब्लड कैंसर का इलाज उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। शुरूआत में पता चलने पर यह पूरी तरह ठीक हो जाता है। कई मामलों में केवल एक गोली खाकर लोग सालों-साल जीवित रहते हैं तो कई बार कुछ खास तरह की दवाएं दी जाती हैं, लेकिन मरीज लंबी जिंदगी जीते हैं। वहीं कई तरह के कैंसर ऐसे भी हैं जिनका इलाज करना डॉक्टरों के लिए चुनौती है। डॉ पंकज गोयल ने बताया कि कुछ साल पहले जहां 15 फीसदी को ही उपचार से बचाया जा सकता था वहीं आज यह आंकडा रिस्क फैक्टर के अनुसार 50 से 70 फीसदी पर पहुंच गया है। अब टॉरगेटिड कीमोथैरपी इलाज में काफी मददगार साबित हो रही है। पहले कीमोथैरेपी ही एकमात्र चारा था।

बता दें कि डा. दिनेश भूरानी राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली के रक्त संबंधी रोगों, रक्त कैंसर एवं बोन मैरो विभाग के सुपरस्पेशलिस्ट हैं। डा. भूरानी देश के प्रथम चिकित्सक हैं जिन्होंने हिमैटोओंकोलॉजी में डीएम की डिग्री प्राप्त की। उनके द्वारा अब तक 600 से अधिक सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं। 


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