Holi Special 2019: रंग ही नहीं जलेबी, रसगुल्ला की भी होती हैं यहां होली पर बौछार
वृंदावन के मंदिरों में बरसेंगे लड्डू और जलेबी के रंग। ठा. सनेहबिहारी मंदिर में रंगभरनी एकादशी के बाद होलिका दहन तक अलग-अलग प्रकार की होली हर दिन होती है।
आगरा, जेएनएन। ब्रज में होली का रंग निराले हैं। ग्रामीण अंचलों में कीचड़ की होली होती है, तो तीर्थनगरी वृंदावन के मंदिरों में हर दिन अबीर- गुलाल होली में उड़ता नजर आएगा। लेकिन रंगों के अलावा मंदिरों में जलेबी, रसगुल्ला, कभी टॉफी आदि की भी होली का मदमस्त नजारा देखने को मिलता है। जलेबी का प्रचलन होली में अधिक होता है। होली खेलने के बाद जलेबी एक- दूसरे को भेंट की जाती है। इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता है कि पूरे दिन रंग और गुलाल जब मुंह के जरिए श्वांस और भोजन की नलियों में पहुंचता है तो वह नुकसानदायक होता है। लेकिन गर्म जलेबी खाने के बाद वह गुलाल और रंग नलियों से साफ हो जाता है। यही कारण है कि पूरे दिन होली खेलने के बाद भक्त ठाकुरजी को भी जलेबी का प्रसाद अर्पित कर खुद भी जलेबी जरूर खाते हैं।
वृंदावन में होली के रंग निराले हैं। यहां रंगों की भी होली होती है, तो होली गायन में भी बरसती है। पदों के गायन में होली ब्रज की संस्कृति का बखान करती है। रंगों की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है लेकिन जलेबी और रसगुल्ला की होली तो वृंदावन में ही होती है। ठा. सनेहबिहारी मंदिर में रंगभरनी एकादशी के बाद होलिका दहन तक अलग-अलग प्रकार की होली हर दिन होती है। सनेहबिहारी मंदिर के सेवायत अतुलकृष्ण गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में होली का आनंद ही निराला है। पहले दिन लड्डू की होली होती है। जिसमें ठाकुरजी की आरती के बाद भक्तों के ऊपर लड्डू बरसाए जाते हैं। जिस तरह से रंगों की बरसात होली में होती है। ठीक उसी तरह से लड्डू बरसाकर होली का आनंद भक्तों को मिलता है। दूसरे दिन जलेबी की होली का आनंद मंदिर में भक्तों को मिलता है। बताया कि तीसरे दिन गुलाब जामुन की होली होती है और चौथे दिन अबीर-गुलाल की होली का आनंद मंदिर प्रांगण में भक्त उठाते हैं। बताया कि एक दिन की होली के लिए हर मिठाई की मात्रा पांच सौ किलो रखी जाती है। मंदिर में होली के रसिया पर नाचते-थिरकते भक्तों पर जब जलेबी, रसगुल्लों की बरसात होती है तो हर कोई मदमस्त नजर आता है।
रंग से होली खेलने के बाद खाई जाती है जलेबी
पूरे दिन रंग- गुलाल की होली खेलने के बाद शाम को ठाकुरजी को गर्म जलेबी भोग में परोसी जाती है। ठाकुरजी को भोग में जलेबी अर्पित करने के बाद ब्रजवासी खुद भी जलेबी खाते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता ये भी है कि पूरे दिन जो भी रंग श्वांस नली और भोजन की नली में पहुंचता है। गर्म जलेबी का रस उस रंग को नलियों से साफ कर देता है। जिसका विपरीत असर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नहीं पड़ता। यही कारण है कि होली खेलने के बाद जलेबी जरूर खाई जाती है।