Holi Special 2019: फाल्गुन के पद और रंगों से ऐसे निखर रही बिहारी जी की छटा
होली के पद गाकर ठा. बांकेबिहारीजी से सेवायत कर रहे होली खेलने का आह्वान। टेसू के फूलों से बनाया जा रहा प्राकृतिक रंग।
बिहारी बिहारिन की मोपे छवि बरनी न जाय,तन मन मिलै झिले मृदुरस में आनंद उर न समाय।।
रंग महल मैं होरी खेलै, अंग अंग रंग चुचाय। श्री हरिदास ललित छवि निरखै, सेवत नव नव भाय।।
आगरा, विपिन पाराशर। ठा. बांकेबिहारीजी के सामने शाम ढलते ही मंदिर के सेवायत जब इन पंक्तियों का सस्वर गायन करते हैं तो आनंद हो उठता है। मंदिर का आंगन और आनंदित होने लगते हैं देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालु। वसंत पंचमी के बाद से हर दिन शाम ढलते ही वृंदावन में ठा. बांकेबिहारीजी के सामने होली के इन पदों का गायन हो रहा है। सेवायत इन पदों में ठाकुरजी को होली खेलने का आह्वान कर रहे हैं। ये सिलसिला रंगभरनी एकादशी तक चलेगा और रंगभरनी एकादशी से शुरू होंगे मंदिर में होली के रसिया।
होरी खेलौ तौ कुंजन चलौ गोरी। एक ओर रहौ सब ब्रज बनिता, तुम्ह रहौ राधे जू हमारी ओरी।।
चोवा, चंदन, अतर, अरगजा, लाल गुलाल भरौ झोरी।। ललित किशोरी प्रिया प्रियतम, खेलगे फाग सराबोरी।
वसंत पंचमी के दिन से शुरू होने वाले होली के पद गायन की ये परंपरा स्वामी हरिदासजी के समय से ही चली आ रही है। मंदिर सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी बताते हैं कि स्वामी हरिदास अपने लढ़ैते ठा. बांकेबिहारीजी की राग सेवा इसी प्रकार करते थे। पर्व-उत्सव कोई भी हो वे उसे गायन में समाहित करके ही ठाकुरजी की राग सेवा करते थे। इसी परंपरा का निर्वहन आज मंदिर में सेवायतों की युवा पीढ़ी भी निभा रही है। मान्यता है कि ठाकुरजी को होली के पद सुनाए जाते हैं ताकि आराध्य के मन में होली खेलने के भाव उत्पन्न हों और ब्रज में फिर होली की खुमारी ऐसी चढ़ की हर कोई आराध्य के रंग में रंगा नजर आए। गोस्वामी एक के बाद एक पद का गायन करते हैं इनमें...
बिहारी सब रंग बोर दई सूई सी सारी कसूमल अंगिया, अबही मोल लई।।
देखेगी मेरी सास ननदिया, होरी खेलत नई।।चले जाओ पिया कुंजबिहारी, जो कछु भई सो भई।।
इस पद की व्याख्या करते हुए गोस्वामी कहते हैं कि जब भगवान गोपियों पर पिचकारी से रंग डालते हैं तो गोपियां कह उठती हैं बिहारीजी हमें तो पूरी तरह से रंग में सराबोर कर दिया है। पिचकारी की धार सुई की तरह अंगों में चुभ रही है। जो चुनरी है अभी खरीदी थी वह भी पूरी रंग गई है। घर में जब सास और ननद रंगी चुनरिया देखेंगी तो उल्हाने मारेंगी की होरी खेलकर आई है। लेकिन गोपियां ये भी कहती हैं कि चलो कोई बात नहीं जो हुआ सो हुआ। रंग तो हमारे प्यारे बांकेबिहारी ने ही डाला है। सो सब कुछ सहन भी कर लेंगे।
गालों पर गुलचा लगा दर्शन दे रहे बिहारीजी
बांकेबिहारी मंदिर में होली की शुरूआत वसंत पंचमी से होती है। इसी दिन से ठा. बांकेबिहारी जी के गालों पर गुलाल के गुलचा और कमर में गुलाल की पोटली बांधी जाती है। जो होली खेलने का प्रतीक है। होली के दिन तक हर दिन ठाकुरजी अब गालों पर गुलाल लगाए दर्शन दे रहे हैं।
परोसी जा रही मेवा
ब्रजगोपियों और राधाजी संग होली खेलने में ठाकुरजी को थकान महसूस न हो। इसलिए सेवायत उन्हें प्रतिदिन सूखी मेवा भी भोग में परोस रहे हैं। पंचमेवा परोसने के पीछे सेवायतों का उद्देश्य है कि ठाकुरजी रंगभरनी एकादशी तक पूरी तरह से बलिष्ट बने रहें। ताकि होली में वे ब्रजगोपियों से हार न मान सकें।
युवाओं ने संभाली कमान
ठा. बांकेबिहारी जी मंदिर में परंपराओं का निर्वहन पूरी सिद्दत के साथ होता आया है। यही कारण है कि होली जैसे बड़े पर्व पर परंपराओं को निभाने की जिम्मेदारी सेवायतों की युवा पीढ़ी ने संभाल रखी है। ब्रज के दूसरे मंदिरों में भले ही गायन और वादन की परंपरा बुजुर्ग और पौढ़ सेवायतों के हाथ हो। लेकिन ठा. बांकेबिहारीजी मंदिर में अब इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन युवा पीढ़ी कर रही है। शाम ढलते ही युवा सेवायत मंदिर के जगमोहन में आराध्य के सामने होली के पदों का सस्वर गायन करते हैं तो माहौल पूरी तरह होली मय नजा आने लगता है। सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि वर्तमान में युवाओं को होली के अधिकतर पद कंठस्थ हैं। बताया कि चूंकि स्वामी हरिदासजी ने जो भी लिखा है उसे समझने के लिए परंपराओं को समझना जरूरी है। सेवायतों ने जब स्वामीजी की परंपराओं को मूर्तरूप से समझा है, तभी से परंपरा का निर्वाहान कर रहे हैं।
दो सौ टन टेसू के फूलों का बन रहा रंग
ठाकुर बांकेबिहारी जी टेसू के रंग से होली खेलेंगे। रंग भरनी एकादशी से शुरू होने वाली रंगों की होली के लिए सेवायतों द्वारा टेसू के फूलों से रंग तैयार किये जा रहे हैं। मंदिर में रंग तैयार करने को दो सौ टन टेसू के फूलो से रंग तैयार किया जा रहा है। टेसू का रंग त्वचा के लिए हानिकारक नही बल्कि लाभदायक साबित होता है।