Move to Jagran APP

Holi Special: गोकुल में छाई छड़ीमार होली की उमंग, ढोल नगाड़ाें पर झूम रहे भक्‍त

नंदभवन से शुरु हुई भगवान कृष्‍ण और बलराम की शोभायात्रा में उमड़े भक्‍त। मुरलीधर घाट पर हुई छड़ीमार होली। विधायक पूरन प्रकाश ने भी लिया छड़ीमार होली का आनंद।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 01:22 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 01:22 PM (IST)
Holi Special: गोकुल में छाई छड़ीमार होली की उमंग, ढोल नगाड़ाें पर झूम रहे भक्‍त
Holi Special: गोकुल में छाई छड़ीमार होली की उमंग, ढोल नगाड़ाें पर झूम रहे भक्‍त

आगरा, मनोज चौधरी। होरी खेलन आयौ श्याम, आज जाय रंग में बोरो री, और हा-हा खाय पड़ै जब पइयां तब जाय छोड़ो री..., होरी खेलन आयौ श्याम आज...। गोकुल, जो कन्‍हैया की बाल लीलाओं का प्रमुख स्‍थल है। जहां बाल रूप में कान्‍हा ने लीलाएं कीं और राधा के साथ प्रेम भरी अठखेलियां भी कीं। आज वही गोकुल फाग की उमंग से सराबोर है। रंग और अबीर गुलाल से यहां प्रतिदिन हो रही भोर है। फाग के इसी आगमन का उत्‍सव फाल्‍गुन की द्वादशी सोमवार को सुबह से ही गोकुल में छाया हुआ है। बरसाना, नंदगांव और जन्‍मभूमि में हुई लठामार होली के बाद आज बाल गोपाल के साथ राधा जी गोपियों संग छड़ी से होली खेल रही हैं

loksabha election banner

सोमवार को दोपहर 12 बजे से छाड़ीमार होली के पहले चरण की शुरुआत हुई। गोकुल में यमुना किनारे स्थित नंद किले के नंद भवन में ठाकुर जी के समक्ष राजभोग रखा गया। 12 बजे भगवान श्री कृष्ण और बलराम होली खेलने के लिए मुरली घाट को निकले। बाल स्वरूप भगवान के डोला को लेकर सेवायत चल रहे थे। उनके आगे ढोल नगाड़े और शहनाई की धुन पर श्रद्धालु नाचते गाते आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में जगह जगह फूलों की वर्षा हाे रही थी और दोनों ओर खड़े भक्‍त अपने ठाकुर जी को नमन कर रहे थे। डोला के पीछे हाथों में हरे बांस की छड़ी लेकर गोपियां चल रही थीं। विभिन्न समुदायों की रसिया टोली गोकुल की कुंज गलियों में रसिया गायन करती हुई निकल रही थीं। नंद भवन से डोला मुरली घाट पहुंचा जहां भवगान के दर्शन के लिए पहले से ही श्रद्धालुओं का हुजूम मौजूद था। भजन कीर्तन, रसिया गायन के बीच छड़ी मार होली की शुरुआत हुई।  

बता दें कि छड़ी मार होली गाकुल में ही खेली जाती है। भगवान कृष्ण और बलराम पांच वर्ष की आयु तक गोकुल में रहे थे। इसलिये उनके लाला को कहीं चोट न लग जाए इसलिए यहां छड़ी मार होली खेली जाती है। गोकुल में भगवा कृष्ण पलना में झूले हैं वही स्वरूप आज भी यहां झलकता है। नंद किले के मैनेजर गिरधारी भटिया, सेवायत मोहन लाल, पांचीलाल मुखिया और मनमोहन शर्मा ने बताया कि यहां बल्लभ कुल संप्रदाय के तीर्थ यात्री अधिकांश होली खेलने के लिए आते हैं।

विदेशी भक्‍त और विधायक पर भी बरसी छड़ी

होली के हुल्‍लड़ में न कोई अपना होता है और न कोई पराया। न कोई माननीय होता है और न कोई एक देश का। बस एक रंग होता है कान्‍हा की भक्ति का। भक्ति के इसी रंग का असर था कि छड़ीमार होली के दौरान विधायक पूरन प्रकाश ने भी छड़ीमार होली का आनंद लेने में परहेज न किया तो वहीं विदेशी भक्‍त भी होली के इस उमंग में शामिल होने से खुद को रोक नहीं पाए। 

हर ओर है बस फाग का उत्‍साह 

होली के गीतों की तरंग के साथ पहले गुलाल, फिर फूल और उसके बाद टेसू के फूलों से बने रंग की मार खाने को हर कोई लालायित है। गोकुल का छड़ी मार हुरंगा होली का अनोखा रूप है। भगवान कृष्‍ण और बलराम की 

शोभायात्रा गोकुल की गलियों से होती हुई मुरलीधर घाट जब पहुंचती हैंतो  यहां पर विश्व प्रसिद्ध उत्सव का वैभव श्रद्धालुओं को शामिल होने के लिए विवश कर देता है। गोपिकाएं ग्वाल वालों के साथ होली खेलती हैं। यहीं घाट पर कन्हैया भी विराजमान हैं। ठीक दो बजे ठाकुर जी की अलौकिक छवि के सामने से पर्दा हटते ही जयजयकार हो उठती है।

क्‍या है छड़ीमार होली की मान्‍यता

गोकुल में कृष्ण का बचपन बीतने के कारण यहां लाठी की जगह छड़ी से खेली जाती है। मान्यता है कि बालकृष्ण को लाठी से कहीं लग ना जाए इसलिए गाेपियां छड़ी से होली खेलती हैं। गोकुल में छड़ीमार होली का उत्सव एक परंपरा बन चुका है, जो सदियों से जारी है। होली खुद में अनोखी विरासत को समेटे हुए है। आज भी गोकुल की छड़ीमार होली में श्रीकृष्ण के बालरूप की झलक मिलती है। गोकुल बालकृष्ण की नगरी है। बालगोपाल का यहां बचपन गुजरा है इसलिए गोकुल में उनके बालस्वरूप को ज्‍यादा महत्व दिया जाता है।गोकुल के छैल छबीलों को गोपियां खूब छका देती हैं। दरअसल, कृष्ण- बलराम ने यहां ग्वालों और गोपियों के साथ होली खेली थी। कान्हा के रूप को याद करते हुए यहां छड़ीमार होली खेली जाती है। होली खेलते हुए गोपियां ये भी ख्याल रखती हैं कि कहीं कृष्ण लल्ला को चोट न लग जाए। गोकुल में होली द्वादशी से शुरू होकर धुलेंडी तक चलती है। कहा जाता है कि इस दौरान कृष्ण भगवान सिर्फ एक दिन यानी द्वादशी को बाहर निकलकर होली खेला करते थे। गोकुल में बाकी के दिन होली मंदिर में ही खेली जाती है। 

सैकड़ों साल से चली आ रही इस होली परंपरा की सबसे खास बात ये है कि जब भगवान बगीचे में बैठकर भक्तों के साथ होली खेलते हैं, तो हुरियारिन भगवान और श्रद्धालुओं के साथ छड़ी से होली खेलती हैं। इस दौरान पूरे ब्रज में सिर्फ इसी जगह ही लठ की जगह छड़ी से होली खेली जाती है। 

मुरलीधर घाट का महत्‍व

छड़ीमार होली गोकुल के मुरलीधर घाट से शुरू होती है। माना जाता है कि इसी घाट पर कान्हा ने सबसे पहले अपने अधरों पर मुरली रखी थी। पहले यहां होरंगा खेला जाता है यानि गोपियां कान्हा बने होरियारों पर प्यार से छडि़यां बरसाती हैं। इसके बाद रंग- गुलाल से होली खेलने का दौर शुरू होता है। यहां एक बार आने वाले भक्त हर साल खींचे चले आते हैं। कहा जाता है कि ब्रज की होली में एक बार रंग जाने वाले पर कभी कोई दूसरा रंग नहीं चढ़ता है। यहां के प्यार भरे गुलाल में श्री कृष्ण का आशीर्वाद समाया होता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.