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हेमा ने संसद में उठाया 'गिरिराजजी' के विकास का मुद्दा, न्‍यास बनाने की मांग Agra News

संसद में हेमा बोलीं गिरिराज महाराज की जय जय जय श्रीराधे। दो राज्यों की सीमा होने के कारण श्री गोवर्धन जी विकास न्यास बनाकर एकीकृत विकास होना चाहिए।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 07:10 PM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 07:10 PM (IST)
हेमा ने संसद में उठाया 'गिरिराजजी' के विकास का मुद्दा, न्‍यास बनाने की मांग Agra News
हेमा ने संसद में उठाया 'गिरिराजजी' के विकास का मुद्दा, न्‍यास बनाने की मांग Agra News

आगरा, जेएनएन। संसद में शून्यकाल के दौरान मथुरा की सांसद ने गोवर्धन पर्वत के संरक्षण और विकास का मुद्दा उठाया। गिरिराजजी का सात कोसीय परिक्रमा मार्ग दो राज्यों उत्तर प्रदेश-राजस्थान की सीमा के अंतर्गत आता है। इसलिए एकीकृत विकास के लिए केंद्र सरकार से 'श्री गोवर्धन जी विकास न्यास' बनाकर विकास कराने का आग्रह किया। 

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गुरूवार को संसद में हेमा ने मुद्दा उठाते हुए कहा कि माननीय सभापति महोदय आज मैं आपके माध्यम से मेरे संसदीय क्षेत्र मथुरा के महत्वपूर्ण विषय पर माननीय प्रधानमंत्री और सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूं। मेरे संसदीय क्षेत्र श्री गोवर्धन जी धाम में श्री गिरिराज पर्वत हैं, जिनको ब्रज का तिलक भी संतों द्वारा कहा गया है । भगवान श्री कृष्ण के जीवनकाल की केवल दो ही चीज मूल रूप से विराजमान हैं। एक है श्री गिरिराज पर्वत और दूसरा ब्रज की रज ।

श्री गिरिराज पर्वत जी की सात कोस यानी 21 किलोमीटर की परिक्रमा में विश्व भर से लगभग प्रतिवर्ष 5 से 10 करोड़ भक्त आते हैं। कुछ भक्त दण्डवती परिक्रमा करके अपने को धन्य समझते हैं । मुड़िया पूर्णिमा, कार्तिक मास, एकादशी से पूर्णिमा तक, सावन, भादो, फागुन मास में अत्यंत भीड़ रहती है। विश्व भर में ऐसा कोई तीर्थ नहीं है, जहां इतनी भारी मात्रा में भक्त व तीर्थ यात्री आते हों।

'गिरिराजजी' यानी राधाकृष्ण की दिव्य लीलाओं का प्रमाण, विश्वास, मन्नत और भक्ति की अनूठी परिभाषा, परंपरा और विश्वास इतिहास के दावों की मोहताज नहीं होतेे हैंं। पर्वतराज गोवर्धन की प्रत्येक शिला में दिव्यता तो कदम कदम पर रहस्यमयी लीला छिपी हैं। देश ही नहीं दुनिया भर के लोग यहां नत मस्तक हो रहे हैं। ब्रज वसुंधरा की यह पावन स्थली भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का अद्भुत संग्रह स्थल भी है। आस्था को ब्रज वसुंधरा की तरफ मोड़ता गोवर्धन पर्वत, श्रद्धालुओं को महंगी और लग्जरी गाड़ियों को छोड़कर नंगे पैर 21 किलोमीटर पैदल चलने के लिए यहां खींच कर ला रहा है।

गोवर्धन पर्वत को भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की छोटी उंगली पर ब्रज वासियों की इंद्र से सुरक्षा के लिए उठा लिया था। आज उसी गोवर्धन की सुरक्षा और विकास के लिए मैं सरकार से प्रार्थना करती हूं। गोवर्धन में 60 -70 वर्ष पहले 370 वाटर बॉडीज थीं। वह सब प्राय: लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। उन पर भूमाफियाओं द्वारा कब्जा कर लिया गया है। वहां गौ घाट होते थे। गहन वृक्षावली, मोर, तोते, कोयल आदि पक्षियों के विहार की व्यवस्था होती थी। सभी कुडों पर लगभग गौ घाट समाप्त कर दिए गए हैं, वृक्षावली को तहस नहस कर दिया गया है। रेन वाटर रिचार्ज की भी व्यवस्था खत्म कर दी गई है। यहां तक कि प्रसिद्ध मानसी गंगा राधाकुंड कुसुम सरोवर आदि का जल आचमन के योग्य नहीं है। पिछले दिनों दीपावली से पहले अहोई अष्टमी में तमाम भक्त राधा कुंड की जल की आचमन से बीमार हो गए थे। यह बहुत ही चिंता का विषय है।

जैसे वृंदावन, मथुरा की परिक्रमा नष्ट हो गई है। उसी प्रकार गोवर्धन की परिक्रमा को नाजायज कब्जा कर नष्ट करने का कुत्सित प्रयास चल रहा है। गोवर्धन में आने वाले भक्तों के बाथरूम की, कूड़ा निस्तारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। विशेषकर महिलाओं को इस तीर्थ यात्रा में काफी कष्ट होता है। आए दिन गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। गोवर्धनवासी भी परेशान रहते हैं, गोवर्धन जी के विकास के लिए अगले 100 वर्षों को ध्यान में रखकर विश्वस्तरीय सुविधा उपलब्ध कराई जाएंं। एकीकृत विकास होना बहुत जरूरी है, जिससे कि आने वाले वर्षों में आने वाले तीर्थ यात्रियों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो। गोवर्धन क्षेत्र के साथ पिछली सरकारों ने भारी भेदभाव वह अन्याय किया है पिछले 70 सालों से वहां ना तो ढंग की सड़कें बनाई गई, ना ही परिक्रमा क्षेत्र को विकसित किया गया। राजस्थान सरकार ने तो कभी भी अपने क्षेत्र में आने वाले गिरिराज परिक्रमा वन क्षेत्र का विकास नहीं किया। गिरिराज परिक्रमा का 21 किलोमीटर का दायरे का अधिकांश हिस्सा वन क्षेत्र में आता है इसलिए भी सरकारों व विभागों के बीच अनुमतियां लेने में वर्षो लग जाते हैं। जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर बृजवासियों की रक्षा की थी। उसी इच्छा और संकल्प शक्ति के साथ गोवर्धन के सम्पूर्ण विकास के लिए कोई न्यास, बोर्ड, परिषद का गठन कर गिरिराज जी का विकास अपनी निगरानी में केंद्र सरकार करवाए । जिस तरह कन्या कुमारी के समुंदर में स्थित राम सेतु भगवान राम की प्रमाणिकता को पुरातात्विक स्तर पर सिद्ध करता है। उसी तरह गोवर्धन पर्वत भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के समय का है और उनकी प्रमाणिकता की जीवंत धरोहर है।

उन्‍होंने कहा कि गोवर्धन की लोकेशन दो राज्यों उत्तर प्रदेश और राजस्थान में होने के कारण केंद्र सरकार को पहल कर "श्री गोवर्धन जी विकास न्यास " का गठन कर श्री गोवर्धन जी को तिरुपति बालाजी, वैष्णो देवी, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की तरह सुंदर बनवाने की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी और भक्तों का आशीर्वाद भी सरकार को मिलेगा।

एनजीटी में भी चल रहा है मुद्दा

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में याची आनंद गोपाल दास और सत्यप्रकाश मंगल के अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी भी गोवर्धन पर्वत के विकास का मुद्दा उठाए हुए हैं। न्यायालय 17 बिंदुओं का आदेश भी सुना चुकी है, जिसकी अनुपालना हो रही है। 


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