Hariyali Teej 2020: 15 अगस्त 1947 देश के साथ बिहारीजी के लिए भी था खास, आज भी जारी है परंपरा
Hariyali Teej 2020ः सुबह और शाम दोनों ही सेवाओं में हिंडोल में झूलेंगे आराध्य। कोरोना काल के चलते इस बार आराध्य के दर्शन न होंगे सुलभ।
आगरा,, जेएनएन। 15 अगस्त 1947, जिस दिन देश को स्वतंत्रता मिली, इसी दिन पहली बार ठा. बांकेबिहारी बेशकीमती स्वर्ण-रजत हिंडोले पर विराजमान हुए थे। उसके बाद परंपरा बन गई कि ठाकुरजी हर साल हरियाली तीज के दिन भक्तों को इस हिंडोले में बैठकर दर्शन देते हैं। कोरोना संक्रमण के चलते पहली बार ऐसा होगा जब ठाकुरजी की सेवा तो होगी, लेकिन दर्शन से भक्त वंचित रहेंगे।
ठा. बांकेबिहारी के अनन्य भक्त हरियाणा निवासी हरगुलाल बेरीवाला ने वर्ष 1942 में ठाकुरजी के लिए भव्य झूला निर्माण का जिम्मा वाराणसी के कारीगर लल्लन राय को सौंपा। इसके लिए वाराणसी के गांव कनकपुर में शीशम के जंगल खरीदे गए। पांच साल में बनकर तैयार हुए बेशकीमती झूले में करीब एक हजार तोला सोना व दो हजार तोले चांदी की नक्काशी कुशल कारीगरों द्वारा की गई। झूले के मध्य में लता-पताओं व मयूरों से अंकित मुख्य भाग के अलावा दोनों ओर अष्ट खंबे व अष्ट सखियां स्थापित की गईं। ठा. बांकेबिहारी जब हिंडोले में विराजमान होते हैं तो रजत निर्मित पंखे लिए आदमकद सखियों की प्रतिमाएं एकदम जीवंत प्रतीत होती हैं।
ठाकुरजी हरी पोशाक करते हैं धारण
हरियाली तीज पर ठा. बांके बिहारी को इत्र से मालिश कर हरी पोशाक और स्वर्ण व मोतियों से अलंकृत जेवरात धारण कराए जाते हैं। विभिन्न प्रकार के सुगंधित पेय पदार्थ व घेवर-फैनी समेत अनेक व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
हर साल संवारा जाता है हिंडोला
मंदिर सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी कहते हैं बेशकीमती ङ्क्षहडोले की देखरेख विशेष रूप से होती है। रुई व मखमली कपड़ों में सुरक्षित रखे ङ्क्षहडोले के विभिन्न भागों को हरियाली तीज से पहले दृव्यों से सफाई होती है। उन्हें एक-एक कर संयोजित एक रात पूर्व मंदिर में स्थापित किया जाता है।
अद्भुत है मंदिर की मान्यता
श्रीधाम वृन्दावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिस भूमि पर आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँकेबिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत 1921 के लगभग किया गया। मंदिर में स्थित विग्रह को राधा कृष्ण का स्वरूप है। मान्यता है कि रात में बिहारी जी निधिवन रास करने चले जाते हैं। और सुबह मंदिर वापस आते हैं। इसलिए यहां वर्ष में एक बार जन्माष्टमी पर ही मंगला आरती होती है।