509 वां प्राकट्ययोत्सव: ब्रज में 500 साल पहले ही लागू था 'हरित संविधान' Agra News
सेवाकुंज में हरियाली के इन उपासक संत के बनाए हरित संविधान का आज भी हो रहा पालन।
आगारा,विपिन पाराशर। वृंदा के शहर वृंदावन से हरियाली गायब है, और यमुना ने अपने घाटों को छोड़ दिया है। आज न तो कालिंदी के कूल बचे हैं और न ही हरित्रयी(समकालीन तीन संत स्वामी हरिदास व्यास, श्रीहित हरिवंश महाप्रभु और संत हरिराम व्यास) के समय की हरियाली। पांच सौ साल पहले हरित्रयी द्वारा बनाए नियमों को लागू रखा गया होता, तो वृंदावन की ये दशा आज न होती।
वृंदावन की पवित्र धरा पर 18वीं सदी तक कदंब, तमाल और वृंदा के वनों की सघन हरियाली थी। करीब पांच सौ साल पहले चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी षट्गगोस्वामियों ने उस दौर में सप्तदेवालयों (मदनमोहन, गोविंद देव, गोपीनाथ, राधाश्यामसुंदर, राधारमण, राधादामोदर और गोकुलानंद मंदिरों) की श्रृंखला शुरू की, तो यहां वृक्षों का कटान शुरू हो गया। वृक्षों के उजाड़ के बाद मंदिरों के बनने का सिलसिला शुरू हुआ तो साधकों का दर्द भी उभरकर सामने आने लगा। उस समय के संत हरिराम व्यास ने अपने पद में इस दर्द को कुछ इस तरह जताया भी---
मथुरा खुदत, कटत वृंदावन, मुनिजन सोच उपयौ।
इतनौ दुख सहवे के काजै, काहे को व्यास जिवायौ।।
संत हरिराम व्यास ने हरियाली के नष्ट होने का भय जताते हुए पद के जरिए लोगों को आगाह भी किया। संत के इस दर्द को देख ब्रज में एक अलिखित संविधान लागू हुआ। इसे 'हरित संविधान के नाम से जाना गया। इस संविधान के मुताबिक, निर्माण किए गए मंदिर की भूमि के मुताबिक बराबर भूमि पर बाग लगाए जाएं। मंदिरों का निर्माण करवाने वाले राजघरानों ने इस संविधान का पालन भी किया। गोपीनाथ बाग, गाेेविंद बाग, मदनमोहन बाग उसी समय बने। वर्षों बाद अब ये इलाके पूरी तरह बस्ती में तब्दील हो गए हैं। वह संविधान आज भी लागू होता तो वृंदावन का ये स्वरूप न बिगड़ता।
हरित संविधान के थे ये नियम
राधाबल्लभीय संप्रदाय के चाचा वृंदावनदास ने अपना संस्मरण सुनाते हुए लिखा है कि उनके गुरु ने आदेश दिया था कि वृंदावन में वास तब ही सफल होगा जबकि तुम्हारे द्वारा यहां कदंबखंडी का रोपण किया जाए। गुरु आज्ञा का पालन करते हुए ही चाचा वृंदावन दास ने कैमारवन में कदंबखड़ी स्थापित की।