गोवर्धन पूजा: जब श्री कृष्ण ने दिया प्रकृति के संवर्धन और संरक्षण का संदेश, ये है पर्व का महत्व Agra News
गोपाल ने गोप-ग्वालों को संगठित कर इंद्र के खिलाफ उठाई आवाज।
आगरा, जागरण संवाददाता। पंचोत्सव का चौथ उतसव गोवर्धन पूजन। वो पर्व जिस पर दिया जाता है प्रकृति के संवर्धन और संरक्षण का संदेश। ब्रज का विशेष पर्व हर परिवार में पूरे मनोयोग से मनाया जा रहा है। गोवर्धन में जहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा है वहीं आगरा में भी आस्था हिलोरे मार रही है। घर- घर में पवित्र गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति बनाई जा रही है। शाम को पूजन और अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा। शहर में सामूहिक गोवर्धन पूजन की भी तैयारी चल रही हैं। बेलनगंज तिकाेनिया, सनातन धर्म सभा मंदिर शहजादी मंडी, महाराजा अग्रसेन भवन कमला नगर, बल्केश्वर, गणेश चौक कमला नगर, ट्रांस यमुना कॉलोनी आदि क्षेत्रों में गोवर्धन महाराज की सामूहिक पूजा की जाएगी। त्योहार विशेष के महत्व के बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी। हिंदू मान्यता के अनुसार गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थें। मगर, भगवान कृष्ण के कहने पर एक वर्ष ब्रजवासियों ने गाय की पूजा की और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा की। तब से हर वर्ष ऐसा किया जाने लगा। जब ब्रजवासियों ने भगवान इंद्र की पूजा करनी बंद कर दी तो वो इस बात से नाराज हो गए और उन्होंने ब्रजवासियों का डराने के लिए पूरे ब्रज को बारिश के पानी में जलमग्न कर दिया।
भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया। लगातार सात दिन तक भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की। भगवान ब्रह्मा ने जब इंद्र को बताया कि भगवान कृष्ण विष्णु का अवतार हैं तो इस बात को जानकर इंद्र बहुत पछताए और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। इंद्र का क्रोध खत्म होते ही भगवान कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष वह इस पर्वत की पूजा करेंगे और अन्नकूट का उन्हें भोग लगाएंगें। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है।
पूजन विधि
पंडित वैभव कहते हैं कि इस दिन लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से एक पर्वत बनाकर उसे जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर उसकी पूजा करते हैं। इसके बाद गोबर से बने इस पर्वत की परिक्रम लगाई जाती है। इसके बाद ब्रज के देवता कहे जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
अन्नकूट का महत्व
भगवान श्री कृष्ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया तो वह लगातार सात दिनों तक भगवान ने सात दिन तक अन्न जल ग्रहण नहीं किया था। इसलिए व्रजवासियों ने उन्हें सात दिनों को आठ पहर के हिसाब से 56 भोग लगाए।
यहां लोक की विजय का पर्व है गोवर्धन पूजा
ब्रज के पर्वों में सबसे अनूठी है गोवर्धन पूजा। इस इलाके में दीपावली के बजाय गोवर्धन पूजा में अधिक उल्लास छाता है। गोवर्धन पूजा देवताओं की सत्ता के खिलाफ लोक विजय का पर्व है, जिसकी अगुवाई गोपालक श्रीकृष्ण ने की।
श्रीकृष्ण की ब्रज में मान्यता उनके गोपालक रूप की है। यादवों के कुल गुरू गर्गाचार्य लिखित गर्ग संहिता में गोवर्धन पूजा की शुरूआत कन्हैया के आग्र्रह पर किया जाना ही बताया गया है। कन्हैया के कहने पर ही ब्रजवासियों ने सबसे पहले इंद्र की जगह गोवर्धन यानी प्रकृति की पूजा शुरू की। तब से आज तक ब्रज और उसके आसपास के इलाके में दीपावली की तुलना में घर-घर गोवर्धन की पूजा अधिक उल्लास से की जाती है। इस दिन कढ़ी-चावल और गड्ड सब्जी बनाने का चलन है।
गोवर्धन पूजा को लोक विजय पर्व मानते हुए ब्रज के सांस्कृतिक इतिहास पर शोध कर रहे योगेंद्र ङ्क्षसह छौंकर का कहना है कि श्रीकृष्ण दुनिया के ऐसे पहले लोक महानायक हैं जिन्होंने गोप-ग्वालों को संगठित कर कंस के सामंतवाद और इंद्र के रूप में देवताओं की सरमायेदारी के खिलाफ खुली बगावत की। इस दृष्टि से गोवर्धन पूजा लोक विजय का पर्व है।
पीपुल पर्यावरण मिशन के संस्थापक अध्यक्ष आचार्य भरत ङ्क्षसह का कहना है कि कृष्ण की लीलाएं असल में जन आंदोलन हैं। कृष्ण के समय गो-धन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्रियाकलापों का आधार था। इसके खिलाफ काम करने वाली शक्तियों को चुनौती दी और उन्हें परास्त किया।