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नारी सशक्तिकरण: कोमल हैं पर कमजोर नहीं, ये साबित करेंगी ताजनगरी की बेटियां Agra News

सिपाही भर्ती के लिए कड़ी ट्रेनिंग ले रहीं आगरा की लड़कियां। कुछ परंपरा निभाने को तो कुछ नई परंपरा डालने को बेताब। आगरा से 1800 जाबांज सेना में बढ़ा रहे क्षेत्र का मान।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 24 Jun 2019 12:49 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 12:49 PM (IST)
नारी सशक्तिकरण: कोमल हैं पर कमजोर नहीं, ये साबित करेंगी ताजनगरी की बेटियां Agra News
नारी सशक्तिकरण: कोमल हैं पर कमजोर नहीं, ये साबित करेंगी ताजनगरी की बेटियां Agra News

आगरा, विनीत मिश्र। आगरा से करीब 1800 जाबांज सेना में हैं। 2600 पूर्व सैनिकों के परिवार भी यहां रहते हैं। अब यहां से बेटियों ने भी इस परंपरा को अपनाने की ठानी है। यहां ‘द सेनाभ्यास एजुकेशनल सेंटर’ पर सुबह हो या शाम या फिर दोपहर, कोई बेटी ऊंची रस्सी पर चढ़ने का अभ्यास करती मिल जाएगी तो कोई जंप करते। कोई मंकी क्रॉल करती मिलेगी तो कोई टार्जन स्विंग जैसी प्रैक्टिस। पसीने से लथपथ, लेकिन थकावट का कोई निशान नहीं।

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कासगंज की सोनल सोलंकी हों या आगरा की संगीता जादौन या फिर लता, गीता या लक्ष्मी। सभी अफसर ही नहीं, महिला जवान के रूप में भी सीमा पर देश सेवा की तैयारी में जी-जान से जुटी हैं। इनमें से किसी के पिता या भाई सेना में रह चुके हैं तो किसी के पिता किसान हैं। मसलन, सोनल के पिता विनोद सोलंकी सेना में हवलदार हैं। पिता के नक्शे कदम पर चलकर वह सेना में भर्ती के लिए साल भर से प्रशिक्षण ले रही हैं। घाघपुरा की संगीता जादौन के भाई ब्रजेश इसी साल एयरफोर्स में एयरमैन के रूप में भर्ती हुए। भाई को देख संगीता भी सेना में भर्ती होना चाहती है। आगरा की लक्ष्मी त्रिवेदी के पिता पुलिस में हेडकांस्टेबल हैं, अब वह भी पहली बार महिला जवानों की सेना में इंट्री खुलने के बाद खुद को इसके लिए तैयार कर रही हैं। जिनकी पहले से सेना की कोई पृष्ठिभूमि नहीं है, वह परिवार में नई परंपरा डालने को बेताब हैं। इसी गांव की लता और गीता के पिता किसान हैं।

किसान की इकलौती बेटी भी कतार में

बमरौली कटारा के प्रताप भानु किसान हैं, लेकिन उनकी आंखों में इकलौती बेटी पूर्णिमा कटारा को सेना में अफसर बनाने का सपना है। पूर्णिमा सेना में अफसर के लिए एफकैट व सीडीएस की तैयारी कर रही हैं। करीब एक साल से वह पिता के सपने को पंख लगाने में जुटी हैं। गांव में परिवार के चचेरे भाई विष्णु सेना में कैप्टन हैं। पूर्णिमा कहती हैं कि मैं सेना में अफसर बनकर ये बताना चाहती हूं कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं।

हम किसी से कम नहीं

लक्ष्मी त्रिवेदी कहती हैं, जब बेटे सेना में जा सकते हैं तो हम फिर किससे कम हैं। हमारे दिल में भी देश प्रेम का जच्बा है। संगीता, लता और गीता कहती हैं कि ट्रेनिंग के दौरान हर तरह का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हमें पूरा विश्वास है कि हम सेना में भर्ती होंगे और देश की सेवा करेंगे। बरेली की साक्षी शर्मा ने दिल्ली से फिजियोथेरेपी का कोर्स किया है, लेकिन इसमें उनका मन नहीं रमा। पिता रविंद्र शर्मा बिजनेसमैन हैं। साक्षी अब आगरा में रहकर सेना में अधिकारी बनने के लिए प्रशिक्षण ले रही हैं।

विज्ञापन प्रकाशित होते ही बेटियों ने शुरु कर दी तैयारी

अब तक हमारे यहां तीन दर्जन से अधिक बेटियां प्रशिक्षण ले चुकी हैं। अप्रैल में पहली बार पीबीओआर (पर्सनल बिलो आफिसर रैंक) में महिला जवानों की तैनाती का विज्ञापन आया था, तभी से तैयारी के लिए बेटियां आने लगी थीं। ये महिला जवान सेना पुलिस में शामिल होने के बाद दुष्कर्म, छेड़छाड़ जैसे मामलों की जांच करेंगी। सैन्य प्रतिष्ठानों के साथ कैंटोनमेंट इलाकों की देखरेख करेंगी। शांति और युद्ध के समय जवानों और साजोसामान की मूवमेंट को संचालित करेंगी।

ब्रिगेडियर मनोज शर्मा (रि.), संस्थापक, द सेनाभ्यास एजुकेशनल सेंटर

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