Ganesh Utsav2020: गणपति पधारने वाले हैं अब अपने धाम, जानिए क्यों जरूरी है स्थापना के बाद विसर्जन
Ganesh Utsav2020 1 सितंबर को है गणेश उत्सव का अंतिम दिन। अनंत चतुर्दशी पर होंगे गणपति विदा।
आगरा, तनु गुप्ता। दुख हर्ता, सुख कर्ता गणपति के विदा होने की बेला आने को है। एक सितंबर को गणपति अपने धाम पधार जाएंगे। दस दिनाें तक अनवरत चली आराधना पूर्ण हो जाएगी। अनंत चतुर्दशी के दिन गजानन को जल में विसर्जित कर दिया जाएगा। परंपरा का अनुसारण करने वाले नदियों में गणपति प्रतिमा का विसर्जन करेंगे तो पर्यावरण हितैषी अपने अपने घरों में गमलों या पानी की टंकी में विसर्जन करेंगे। तरीका कुछ भी लेकिन गणपति को विसर्जित अवश्य ही किया जाएगा। इस मान्यता के बाबत धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी ने जानकारी दी कि गणेश चतुर्थी से शुरू होने वाला गणेश उत्सव अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त हो जाता है। इस परंपरा के पीछे धार्मिक ग्रंथों में कथाओं का वर्णन मिलता है।
विसर्जन की कथा
पंडित वैभव बताते हैं कि धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक श्रीवेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्रीगणेश को लगातार दस दिन तक सुनाई थी। जिसे श्रीगणेश जी ने अक्षरश: लिखा था। दस दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोलीं तो पाया कि दस दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया है। ऐसे में वेद व्यास जी ने तुरंत गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया था। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।
क्यों लगाया गया माटी को लेप
इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े, इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया। यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई। माटी झरने भी लगी, तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा। इस बीच वेदव्यास जी ने दस दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए। तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और दस दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।
अन्य मान्यता
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। गणेश स्थापना के बाद से दस दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन- सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है।