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करोड़ों का गोलमाल..परिवहन निगम में ऊपर तक थी गिरोह की पहुंच

आरोपों के बाद भी जांच में अफसरों ने दी क्लीनचिट। डीएम की संस्तुति पर भी नहीं हुआ निलंबन।

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Aug 2018 04:18 PM (IST)Updated: Fri, 24 Aug 2018 04:18 PM (IST)
करोड़ों का गोलमाल..परिवहन निगम में ऊपर तक थी गिरोह की पहुंच
करोड़ों का गोलमाल..परिवहन निगम में ऊपर तक थी गिरोह की पहुंच

आगरा(विनीत मिश्रा): रोडवेज बसों में टिकट का फर्जीवाड़ा कर परिवहन निगम को करोड़ों का चूना लगाने वाले गिरोह की पहुंच विभाग में ऊपर तक थी। सेटिंग ऐसी कि उनकी हर शिकायत को नजरअंदाज किया गया। गिरोह के सदस्यों पर गंभीर आरोप लगे, लेकिन जांच अधिकारियों ने हमेशा उन्हें क्लीन चिट दी। ऐसे में उनके हौसले बढ़ते गए और वह अपने कारनामे को अंजाम देते गए।

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रोडवेज बसों को हाईजैक कर टिकटों का फर्जीवाड़ा कर अलीगढ़, मथुरा और हाथरस के इस गिरोह ने निगम को करीब 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाया है। मंगलवार को एसटीएफ ने छापा मारकर गिरोह के 11 सदस्यों को दबोच लिया है। 10 साल से अधिक समय तक फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह की पहुंच बहुत ऊपर तक थी। बीते वर्ष 10 जून को इसकी शिकायत हुई, तब गिरोह के सदस्य संविदा परिचालक खेम सिंह के स्थान पर फाउंड्री नगर डिपो से अलीगढ़ मार्ग पर फर्जी चालक और परिचालक को एक अन्य तत्कालीन संविदा परिचालक पंकज लवानिया ने खंदौली पुलिस से शिकायत कर पकड़वाया था। इसे लेकर गिरोह ने पंकज को जान से मारने की धमकी दी। पकड़े गए परिचालक अंकित को जेल भेज दिया गया। लेकिन यहां भी उसे आरोप मुक्त कर दिया गया। तब एक तत्कालीन अधिकारी ने इस मामले की जांच की और खेम सिंह को क्लीन चिट दे दी। बाद में फाउंड्री नगर से खेम सिंह का तबादला मथुरा कर दिया गया। जबकि पंकज लवानिया सुबूत दिखाते रहे, लेकिन किसी ने नहीं सुनीं।

यही नहीं फर्जीवाड़े के विरोध पर 26 जुलाई 2011 को आगरा के तत्कालीन आरएम नीरज सक्सेना के साथ कार्यालय में घुसकर सात-आठ लोगों ने मारपीट की। तब जिस अशोक को एफआइआर में शामिल किया गया था। उसकी गिरोह के सदस्यों ने बाद में अलीगढ़ के बुद्धविहार डिपो में संविदा परिचालक के रूप में नियुक्ति करा दी। डीएम की संस्तुति के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई: हाथरस डिपो के ही एक कर्मचारी जय कुमार शर्मा ने 2013 में इस फर्जीवाड़े की शिकायत की। मथुरा डिपो के परिचालक देवेंद्र सिंह, हाथरस डिपो के परिचालक मेघ सिंह समेत कई अन्य कर्मचारियों पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया। तब तत्कालीन डीएम संयुक्ता समद्दर ने इसकी जांच कराई। डीएम ने जांच में शिकायत सही पाई और इन कर्मचारियों के निलंबन की संस्तुति की, लेकिन उनका निलंबन नहीं किया गया।

शिकायतकर्ता पर ही गिरा दी गाज:

फर्जीवाड़े की शिकायत करने वाले संविदा परिचालक पंकज लवानिया की शिकायत पर कार्रवाई तो नहीं हुई, लेकिन उनकी संविदा समाप्त कर दी गई। पंकज बताते हैं कि उन्होंने 8 मई को उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को पत्र भेजकर शिकायत की थी। इसके बाद 10 मई को परिवहन मंत्री से पूरे मामले की शिकायत की। पंकज बताते हैं कि शिकायत पर कार्रवाई तो नहीं हुई, लेकिन गिरोह ने साजिश रचकर 22 मई को पंकज की बस में कुछ बिना टिकट यात्री बैठा दिए और बस की चेकिंग की गई। मामले की जांच के बाद 16 अक्टूबर को पंकज की संविदा समाप्त कर दी गई। इसके बाद पंकज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फिर परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक पी गुरुप्रसाद से मिले और पूरे मामले की जानकारी दी। प्रबंध निदेशक की संस्तुति पर ही एसटीएफ ने जांच शुरू की और पूरा फर्जीवाड़ा पकड़ा। टिकट माफिया का था 10.44 करोड़ का सालाना टर्नओवर: रोडवेज में माफिया और अफसरों की मिलीभगत से चल रहे सिंडिकेट की कमाई किसी बड़ी लिमिटेड कंपनी से कम नहीं थी। इसमें कामगार तो कम सैलरी वाले थे। मगर, सिंडिकेट को संचालित कर रहे कर्मचारी और अफसरों को मोटा मुनाफा हो रहा था। एसटीएफ की गिरफ्त में आए माफिया और उसके गुर्गो से पूछताछ में सामने आया है कि उनका सालाना टर्नओवर 10.44 करोड़ का था। इसमें सभी का हिस्सा तय था।

स्पेशल टास्क फोर्स एसटीएफ की आगरा यूनिट ने मंगलवार को इगलास में मुठभेड़ के बाद रोडवेज के टिकट माफिया देवेंद्र और उसके साथी अशोक के साथ गुर्गो को भी गिरफ्तार किया था। एसटीएफ ने गिरोह के काम करने के तरीके को जानने के बाद उनसे कमाई के बारे में पूछताछ की। इसमें सामने आया कि माफिया के शिकंजे में मथुरा, अलीगढ़ और हाथरस की करीब 29 बसें थीं। इनको हाईजेक कर माफिया के गुर्गे इन्हें संचालित करते हैं। हर बस से एक दिन में 10-12 हजार रुपये की कमाई होती है। अगर 10 हजार रुपये औसत मान लें तो एक दिन में सभी बसों से 2.90 लाख रुपये की कमाई हो जाती थी। इस तरह एक माह में 87 लाख रुपये और एक वर्ष में 10.44 करोड़ रुपये की कमाई हो रही थी। दस वर्षो से यह गिरोह रोडवेज की जड़ें खोखली कर रहा था। इस तरह दस वर्षो में गिरोह 100 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर चुका है। इसमें सभी का हिस्सा तय था। गिरोह को संचालित कर रहे माफिया से लेकर जिम्मेदार पदों पर बैठे बड़े अधिकारियों को भी मोटी रकम पहुंचती थी। हर माह नकद में उन्हें हिस्सा मिल जाता था, इसलिए किसी स्तर से यह बात लीक नहीं हो रही थी।

गोलमाल की राशि और बढ़ सकती:

एसटीएफ की अभी तक की जांच में माफिया के ग्रुप में 29 बसों के संचालन के साक्ष्य मिले हैं। एसटीएफ को यह भी जानकारी मिली है कि आगरा की 15 बसों को भी ये हाईजेक करते थे। इसके साक्ष्य अभी संकलित किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि गोलमाल की रकम सौ करोड़ से बहुत अधिक होगी।

अफसरों की गर्दन तक पहुंचेंगे एसटीएफ के हाथ: टिकट माफिया से पूछताछ में यह सामने आ चुका है कि उनके साथ गिरोह में रोडवेज के बड़े अधिकारी भी शामिल थे। इनसे उनकी फोन पर वार्ता होती थी। साथ ही रुपयों का लेनदेन भी उनके बीच होता था। एसटीएफ अब लेनदेन और उनके बीच के जुड़ाव के साक्ष्य जुटा रही है। इसके बाद उनकी गर्दन तक हाथ पहुंचेंगे।


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