ब्रज के स्मृति पटल पर आज भी ताजा हैं लोकतंत्र के पर्व की वो बातें
लाेकसभा चुनाव ब्रज मंडल के लिए हमेशा से ही यादगार रहा। कभी उपचुनाव में तीन बार आना पड़ा था यहां मुख्यमंत्री को। तो कान्हा की धरा पर दिग्गजों ने भी चाटी धूल।
आगरा, जेएनएन। करीब 85 वर्षीय बुजुर्ग पन्ना सिंह आर्य की लड़खड़ाती आवाज में आज भी देश के लोकतंत्र की मजबूती का दंभ और गौरव का भाव महसूस किया जा सकता है। अतीत की धुंधली स्मृतियां उनके मन मस्तिष्क में आज भी हैं। वे बताते हैं कि पहले वोटिंग की प्रक्रिया काफी जटिल थी। कई- कई घंटे लाइन में खड़े रहने के बाद वोट डालने की बारी आ पाती थी। मथुरा के सुरीर निवासी 85 वर्षीय पन्ना सिंह आर्य बताते हैं कि उन्हें अब तक पहला वोट देना याद है। वह खुशी अब भी उत्साह से भर देती है। उस समय आवागमन के लिए एकमात्र जरिया बैलगाड़ी हुआ करती थी। ज्यादातर लोग झुंड बनाकर वोट डालने जाते थे। वापस लौटते समय लोग मतदान केंद्र के आसपास बिकतीं गुड़ की जलेबियां जरूर खाते थे। एक अच्छी बात थी कि नेता लगभग सभी लोगों को नाम और चेहरे से पहचानते थे।
उपचुनाव में तीन बार आना पड़ा था मुख्यमंत्री को
वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में कासगंज के पटियाली से मलिक मोहम्मद जमीन अहमद विधायक बने। उनके इंतकाल के बाद वर्ष 1982 में यहां पर उपचुनाव हुआ। उस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता थी। कांग्रेस ने नगला अमीर के राजेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया था। केंद्र एवं प्रदेश सरकार ने अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक दी। केंद्र एवं प्रदेश सरकार के मंत्रियों को क्षेत्र में लगाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र खुद तीन बार यहां पर आए। दो बार सभाएं की तो एक बार ब्राह्मण समाज के लोगों से मुलाकात की। बुजुर्ग रवींद्र दादा बताते हैं उस चुनाव में कांग्रेस के कई प्रमुख नेता यहां पर आए थे। किशन चंद्र तिवारी उन दिनों की याद करते हुए कहते हैं कि वीपी सिंह सहित कांग्रेस के कई मंत्री कई दिन तक यहां रहे थे।
60 वर्षीय सतेंद्र पांडे बताते हैं कि उस चुनाव में ब्राह्मण समाज के कांग्रेस से विमुख होने की आशंका थी। मुख्यमंत्री पहली बार सभा करने आए थे। दूसरी बार ब्राहमण समाज के लोगों से मिलने आए। हेलीकॉप्टर देखने के लिए इतनी भीड़ हो गई थी कि यह कार्यक्रम भी सभा में बदल गया। उन्होंने तीसरी बार आने का कार्यक्रम बनाया तो हेलीकॉप्टर को एटा में ही छोड़ दिया। वहां से कार से पटियाली आए तथा यहां एक मंदिर में समाज के लोगों के साथ मुलाकात की। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई थी।
कान्हा की धरा पर दिग्गजों ने चाटी धूल
अस्था के संसार में ब्रज की रज जितनी सुखद अनुभूति देने वाली है, सियासत में यहां की धरा धुरंधरों के लिए उतनी ही दिल को कचोट दिलाने वाली भी साबित हुई है। योगीराज श्रीकृष्ण की धरा मथुरा के वाशिंदों का मूड भांपने में राजनीति के दिग्गज भी धोखा खा गए। इनमें अटल बिहारी वाजपेयी, नटवर सिंह के साथ ही चौधरी चरण सिंह के परिजन भी शामिल हैं। वर्ष 1975 तक राजनीति की सुर्खी बन चुके अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ से मथुरा में चुनाव लड़ने आए थे। इस चुनाव में जनता ने हरा दिया और वह तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1980 के चुनाव में कांग्रेस से कांग्रेस के नटवर सिंह ने भाग्य आजमाया, लेकिन जनता ने उनके रुतबे को भी नजरअंदाज कर दिया। नटवर सिंह को इस चुनाव में दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी लोकदल से चुनावी मैदान में उतरीं। और वे कांग्रेस के मानवेंद्र से चुनाव हार गईं। फतेहपुर सीकरी के सांसद चौधरी बाबूलाल के बेटे रामेश्वर 1999 में रालोद से चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे। 2004 का चुनाव भी काफी दिलचस्प था। इस चुनाव में चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती चुनाव लड़ने आईं, मगर तीसरे स्थान पर रहीं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देशभर की नजर थी। इस चुनाव में सिने तारिका हेमा मालिनी भाजपा से लड़ रहीं थीं। उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत चौधरी थे। इस चुनाव में हेमा मालिनी ने जयंत को हराकर मथुरा की जनता का दिल जीता।
तीन-तीन बार जीते थे तीन महारथी
धर्मनगरी की धरा का जिस पर दिल आया तो काफी समय तक लगाव बना रहा। लगातार तीन बार जीतने का रिकॉर्ड भाजपा के चौधरी तेजवीर सिंह के नाम दर्ज है, जबकि अलग-अलग समय में तीन चुनाव जीतने का रिकॉर्ड मानवेंद्र सिंह और चौ. दिगम्बर सिंह के भी नाम रहा है। चौधरी दिगम्बर सिंह ने 1962 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद 1969 के उपचुनाव और 1980 में जनता पार्टी सेक्यूलर के टिकट पर भी लोकसभा चुनाव जीता। इसी तरह मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर 1984 में, जनता दल की टिकट पर 1989 में और कांग्रेस की टिकट पर 2004 में जीते। इधर, भाजपा के टिकट पर 1996 में चुनाव लड़े चौ. तेजवीर सिंह सांसद बनने में सफल रहे, इसके बाद 1998 और 1999 में चुनाव जीते।
मुल्तान, सियासत के सुल्तान
हरियाणा के गांव से आकर टूंडला में बसने वाले मुल्तान सिंह सादगी और समर्पण की मिसाल थे। नगर पालिका से लेकर संसद तक उनकी धाक ही थी कि उन्हें सियासत का सुल्तान कहा जाता था। चौधरी चरण सिंह उनके यहां आकर रुकते थे तो मुलायम सिंह और लालू यादव उनसे राजनीति के गुर सीखते थे। चुनाव के दौरान न कार्यालय होता था और न झंडे-पोस्टर। लाल टोपी लगाए उनकी सेना प्रचार के लिए साइकिलों पर निकलती थी और किला फतेह होता था। वे भी कभी साइकिल तो कभी जीप से क्षेत्र में घूमते थे। बात कर रहे हैं टूंडला विधानसभा क्षेत्र से जीत की हैट्रिक लगाने वाले चौधरी मुल्तान सिंह की। मूल रूप से गुडगांव (हरियाणा) के छोटे से गांव जनौला में जन्मे मुल्तान सिंह का परिवार 1940 में टूंडला में आकर बस गया था। उन्होंने नगर पालिका का चुनाव लड़कर राजनीति में एंट्री ली थी। इसके बाद 1962 में सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार टूंडला विस सीट पर चुनावी मैदान में उतरे और फिर सियासत में पीछे मुड़कर नहीं देखा। खेतों में वे घोड़ी से जाते थे और सियासत के लिए साइकिल और पुरानी जीप थी। हर चुनाव में लाल टोपी लगाए उनकी टोली प्रचार को निकलती थी। उस वक्त दयालबाग और बरौली अहीर क्षेत्र भी टूंडला विस क्षेत्र का हिस्सा हुआ करती थी। बीच में यमुना बहती थी। गर्मियों में यमुना में पानी कम हो जाता था तो लोग पैदल पार कर जाते थे। कार्यकर्ता भी घर से खाना लेकर चलता था और खेतों में मूली-टमाटर मिल जाते थे। 1967 में मुल्तान सिंह फिर से प्रत्याशी बने और जीत हासिल की। इसके बाद 1969 के चुनाव में वे बीकेडी में चले गए। जनता के बीच लोकप्रियता से उन्हें फिर से जिता दिया। टूंडला विधानसभा सीट आरक्षित होने के बाद वे आगरा से विस चुनाव लड़े और विधायक रहते जलेसर लोकसभा सीट पर पहला चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। इसके बाद तीन बार सांसद रहे।
जनसभा में टूटी थीं सांसें
23 सितंबर 1990 जलेसर सांसद रहते हुए चौधरी मुल्तान सिंह रोहतक सामाजिक कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे। इसी बीच उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वहीं आखिरी सांस ली।