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दिमाग का सॉफ्टवेयर होता है री-इंस्टॉल, परीक्षा का डर दूर करने में मददगार बन रही ये थैरेपी

अल्फामाइंड पावर थैरेपी छात्रों के लिए साबित हो रही उपयोगी। दस दिन में ही सामने आते हैं सकारात्मक नतीजे।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 04 Feb 2019 02:44 PM (IST)Updated: Mon, 04 Feb 2019 02:44 PM (IST)
दिमाग का सॉफ्टवेयर होता है री-इंस्टॉल, परीक्षा का डर दूर करने में मददगार बन रही ये थैरेपी
दिमाग का सॉफ्टवेयर होता है री-इंस्टॉल, परीक्षा का डर दूर करने में मददगार बन रही ये थैरेपी

केस वन- दसवीं का छात्र तुषार काफी परेशान रहता है। बोर्ड परीक्षा नजदीक है लेकिन पढ़ाई में मन नहीं लग रहा। एकाग्र्रता की कमी के कारण मन भटकता रहता है। इसके कारण वह तनाव में है। कुछ समय से चिड़चिड़ाहट की भी समस्या सामने आ रही है।

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केस दो- बारहवीं की छात्रा श्रेया का भी यही हाल है। मोबाइल की लत के कारण उसका पढ़ाई में मन नही लगता है। परीक्षा नजदीक आने के कारण वह परेशान सी रहने लगी है। दोस्तों और परिजनों से बातचीत भी कम कर दी है।

आगरा, कुलदीप सिंह। यह समस्या सिर्फ तुषार और श्रेया की ही नहीं बल्कि लगभग हर दूसरा छात्र पढ़ाई में मन न लगने की समस्या का शिकार हैं। स्वभाव में बदलाव, चिड़चिड़ापन, पढ़ाई में मन न लगने या याददाश्त की कमजोरी को अक्सर अभिभावक बच्चे में दिमाग की कमी, शैतान या केमिकल इन बैलेंस की समस्या समझकर अनदेखा कर देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसी समस्या के निदान के लिए विदेशों में अल्फामाइंड पावर थैरेपी बहुत प्रचलित है। अब इस थैरेपी को लेकर शहर में भी छात्रों और अभिभावकों में रूझान बढ़ रहा है। बोर्ड परीक्षा नजदीक आने के कारण 25 से 30 युवा प्रति माह इस थैरेपी के लिए पहुंच रहे हैं। पढ़ाई से लेकर नौकरी तक में इस थैरेपी की मदद ली जा रही है। अल्फामाइंड पावर थैरेपिस्ट निधि ने बताया कि एक कक्षा में एक ही टीचर सब बच्चों को पढ़ाता है फिर भी उनमें से कुछ ही बच्चे सक्रिय और तेज होते है। अब सोचने की बात ये है कि जब सब कुछ एक जैसा मिलता है तो कोई और आप से अच्छा परिणाम कैसे लाता है। फर्क माहौल का नहीं बल्कि काम के प्रति आप के नजरिये, याददाश्त, सोच, दिमाग और आपके कंट्रोल का है।

क्या है अल्फामाइंड पावर थैरेपी

इस थैरेपी में बिना किसी दवा के इंसान के दिमाग में मौजूद विकारों को दूर किया जाता है। इंसान के दिमाग में मौजूद अल्फा तरंगों को पैदा किया जाता है। विभिन्न एक्सरसाइज और मेडीटेशन के द्वारा इन तरंगों को पुनर्जीवित किया जाता है।

कैसे करती हैं काम

आम भाषा में यह थैरेपी दिमाग में मौजूद सॉफ्टवेयर को री-इंस्टॉल करने की तरह है। दिमाग में एकाग्र्रता के लिए उपयोगी अल्फा तरंगों को सक्रिय किया जाता है। महज दस दिन की ट्रेनिंग से सकारात्मक असर देखने को मिलते हैं। निरंतर तीन माह तक अभ्यास के बाद मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है।

छात्रों पर क्या असर

इससे छात्रों में एकाग्रता और सीखने की क्षमता तेजी से बढ़ती है। वह अधिक समय तक चीजों को याद रख पाते हैं। हाल में सेना और उच्च पदों की तैयारी कर रहे छात्रों पर इस थैरेपी के सकारात्मक परिणाम सामने आए। पढ़ाई में एकाग्रता की कमी से तनाव में रहने वाले सभी छात्र थैरेपी के माध्यम से बेहतर प्रदर्शन कर परीक्षा में सफल हुए।

सफलता के लिए जरूरी है अभ्यास

कोई भी बात या कार्य दोहराते रहने से, अवचेतन मन का हिस्सा बन जाता है। इसका अर्थ ये हुआ कि आप अपने जीवन में जिस तरह के सुधार या बदलाव चाहते हैं, जिस स्तर की सफलता हासिल करना चाहते हैं और जिस तरह के सामथ्र्य और क्षमता की अपेक्षा खुद से करते हैं, उन्हें अपने मन में दोहराते रहें। किसी भी कार्य में 'नहींÓ शब्द का प्रयोग करने से बचें।

बीमारी की मुख्य वजहें

सिनेमा

हॉरर फिल्म देखकर कई बार लोग अंधेरे से डरने लगते हैं। कई बार फिल्म के किरदार में खुद की छवि देखकर भी लोग तनाव में आ जाते हैं।

सोशल मीडिया

खास तौर पर सोशल मीडिया के नकारात्मक पोस्ट भी इस बीमारी का कारण बनते हैं। दुष्कर्म की खबरों से कई बार युवतियां भयभीत होकर बीमारी का शिकार हो जाती हैं।

मिलते हैं मनचाहे नतीजे

भविष्य संवारने के लिए तेजी से इस थैरेपी की ओर आकर्षित हो रहे हैं। निरंतर अभ्यास से उन्हें मनचाहे नतीजे मिल रहे हैं।

- विवेक पाठक, अल्फामाइंड पावर थैरेपिस्ट 


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