फौजी के जुनून से कटघरे में रसूखदार, जानिये होनहार बेटी के कत्ल से जुड़ी पूरी दास्तां
रसूखदार आरोपित के परिवार को कानून से धूल चटा रहे रिटायर्ड सूबेदार। तमाम धमकियां मिलीं, लेकिन न्याय के रास्ते पर पीछे नहीं हटे।
आगरा, यशपाल चौहान। उन पर रसूख है। भीड़ और पैसा भी। सिस्टम का साथ भी उनको मिलता रहा था। मगर, होनहार बेटी से घिनौने कृत्य ने सब बेकार कर दिया। बेटी के फौजी पिता के जुनून से ये रसूखदार कटघरे में हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि आरोपित को सजा जरूर मिलेगी।
मूल रूप से जम्मू के रहने वाले शोध छात्रा के पिता सेना से सूबेदार पद से रिटायर हुए थे। होनहार बेटी को पढ़ाने के लिए उन्होंने आगरा के दयालबाग शिक्षण संस्थान में भेजा। मगर, १५ मार्च २०१३ को उसकी नृशंसता से हत्या कर दी गई। शुरुआत में वे बोलने से बचते रहे। मगर, बाद में उन्हें पता चल गया कि घिनौनी हरकत करने वाले उनसे जुड़े हैं, जिन्हें वह आदर्श मानते हैं। कानूनी लड़ाई शुरू कर दी। आरोपित उदय स्वरूप के नाना रिटायर्ड आइएएस हैं। छात्रा के पिता का कहना है कि शुरुआत में उन्हें तरह-तरह से दबाव में लेने के प्रयास किए। सीबीआइ जांच के दौरान ही फरवरी २०१४ को उदय स्वरूप को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। सीबीआइ के चार्जशीट लगाने तक वे खून का घंूट पीकर बैठे रहे। चार्जशीट में जब उसकी घिनौनी करतूत सामने आ गई तो वे हाईकोर्ट के जमानत देने के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गए। शोध छात्रा के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट ने गलत जमानत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान ले लिया था। सीबीआइ की चार्जशीट लगने के बाद आरोपित की ओर से भी हाईकोर्ट में दुष्कर्म की धारा में जमानत को अर्जी दी गई थी। २८ मई २०१८ को हाईकोर्ट ने यह अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद आरोपित ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में जमानत को अर्जी दी। यहां १४ वकीलों की फौज अदालत में खड़ी की। उधर, शोध छात्रा की ओर से केवल दो अधिवक्ता ही अपनी बात रख रहे थे। आरोपित ने जमानत में पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के रुख से वह कटघरे में हैं। जमानत पर जनवरी में फैसला होना है, लेकिन मिलने की उम्मीद कम हैं। शोध छात्रा के पिता का कहना है कि उनकी रातों की नींद उड़ गई है। बस जी रहे हैं किसी तरह। बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए वे लंबी लड़ाई लडऩे को तैयार हैं। पूरा परिवार उनके साथ है।
बच्चे ने गलती कर दी
शोध छात्रा के पिता का कहना है कि घटना के बाद उन्होंने कुछ लोगों भरोसा किया था। सोचा था कि न्याय करेंगे। मगर, वे आरोपित के परिवार से मिल गए। गुरु महाराज ने शक्ति दी। इसीलिए वे न्याय के रास्ते पर आगे बढ़े। अब कुछ लोग उनसे आकर कहते हैं कि बच्चे से गलती हो गई। यह बात उनको चुभती है। भला सभ्य समाज में इतनी दङ्क्षरदगी दिखाने वाले के लिए कोई ऐसी दलील कैसे दे सकता है?
ये रहा घटनाक्रम
15 मार्च 2013- डीईआइ की शोध छात्रा की निर्मम हत्या कर दी गई। छात्रा की कार खेलगांव के पास सड़क पर लावारिस खड़ी मिली।
16 मार्च 2013- कार के पास बाउंड्रीवाल में लैपटॉप बैग और १७ मार्च को लैब से पंद्रह कदम की दूरी पर लैपटॉप मिला।
31 मार्च 2013- फोरेंसिक विशेषज्ञों की टीम घटनास्थल पर पहुंची, सघन जांच की।
22 अप्रैल 2013- को परिस्थितिजन्य और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर उदय स्वरूप और यशवीर सिंह संधू को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर पुलिस ने जेल भेज दिया।
30 अप्रैल 2013- हत्यारोपियों को ४८ घंटे की पुलिस रिमांड पर लिया, लेकिन पुलिस मुंह तक न खुलवा सकी।
12 जुलाई 2013 - पुलिस की केस डायरी में हत्याकांड का चश्मदीद सामने आ गया।
15 जुलाई 2013 - हत्योरोपियों की सत्र न्यायालय से जमानत खारिज।
18 जुलाई 2013 - पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों के खिलाफ चार्जशीट लगा दी।
22 जुलाई 2013- शोध छात्रा की पिता के प्रार्थनापत्र पर शासन ने केस सीबीआइ को स्थानांतरित कर दिया।
10 फरवरी 2014- हाईकोर्ट से उदय को जमानत मिली।
5 जनवरी 2016- सीबीआइ ने पूरक चार्जशीट पेश की। इसमें सिर्फ उदय को हत्या और दुष्कर्म का अभियुक्त बनाया गया।
सीबीआइ अधिकारी के दबाव में दबी आइपॉड की जांच
शोध छात्रा हत्याकांड में सीबीआइ ने ढाई साल बाद गायब आइपॉड बरामद कर लिया था। दुकानदार से उसे ठीक कराने वाले तक पहुंची केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) की जांच आगे बढ़ रही थी। मगर, जांच कर रहे इंस्पेक्टर रिश्वत लेने के आरोप में निलंबित कर दिए गए। इसके बाद एक सीबीआइ अधिकारी के दबाव में जांच ही दबकर रह गई।
दयालबाग शिक्षण संस्थान की बायो नैनो टैक्नोलॉजी लैब में १५ मार्च २०१३ को शोध छात्रा की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। छात्रा के मोबाइल, लैपटॉप, आइपॉड और पेन ड्राइव गायब थे। लैपटॉप और मोबाइल घटना के दूसरे दिन कैंपस में ही मिल गए। मगर, आइपॉड गायब था। सीबीआइ ने पांच अक्टूबर २०१५ को यह आइपॉड शाह मार्केट में एक दुकान पर छापा मारकर बरामद कर लिया। दुकानदार बंटी और केशव को हिरासत में लेकर पूछताछ की। उन्होंने बताया कि कोई व्यक्ति मार्च २०१३ में उनकी दुकान पर बेचकर गया था। यहां से विजय नगर कॉलोनी के एक व्यक्ति ने इसे खरीदा था। उन्होंने खरीदकर दिल्ली में अपनी रिश्तेदार को गिफ्ट किया था। टीम को दुकान के रजिस्टर से बेचने वाले का नाम भी मिल गया। इसके बारे में टीम जानकारी कर रही थी। मगर, कुछ दिनों बाद ही जांच दब गई। इसके बाद बरामद आइपॉड कहां गया? पता नहीं चला। छात्रा के पिता का कहना है कि उन्हें भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। सीबीआइ द्वारा पेश की गई चार्जशीट में भी उसकी बरामदगी का जिक्र नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विजय नगर का व्यक्ति सीबीआइ के एक बड़े अधिकारी का रिश्तेदार था। इसलिए जांच आगे नहीं बढ़ी। इसकी जांच में लगे इंस्पेक्टर कुछ समय बाद निलंबित कर दिए गए। इसके बाद आइपॉड की जांच आगे नहीं बढ़ सकी।
इंस्पेक्टर के लिए थे बयान
रिश्वत के आरोपों की जांच को यहां सीबीआइ की टीम आई। तत्कालीन इंस्पेक्टर हरीपर्वत से बयान लिए। उनसे पूछा कि क्या सीबीआइ इंस्पेक्टर ने उनके सामने रिश्वत ली थी। मगर, उन्होंने इससे इन्कार किया।
सीजेआइ की टिप्पणी से जागी जल्द न्याय की उम्मीद
यह न्याय प्रक्रिया की धीमी रफ्तार है। शोध छात्रा हत्याकांड के पांच वर्ष आठ माह बाद भी अभी अदालत में गवाही शुरू नहीं हो सकी है। छह माह से अदालत आरोप तय करने पर ही अटकी है। मगर, अभी तक आरोप तय नहीं हो सके हैं। अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी से शोध छात्रा के पिता को जल्द न्याय की उम्मीद जाग गई है।
दयालबाग शिक्षण संस्थान की नैनो बायो टैक्नोलॉजी लैब में १५ मार्च २०१३ को शोध छात्रा की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। इस मामले में उदय स्वरूप जेल में बंद है। पुलिस ने उदय और लैब टैक्नीशियन यशवीर संधू के खिलाफ हत्या, सुबूत मिटाने और साजिश की धाराओं में चार्जशीट कोर्ट में पेश कर दी। इसके बाद सीबीआइ ने मामले की जांच की। वर्ष २०१५ में सीबीआइ द्वारा लगाई गई चार्जशीट में संधू को क्लीनचिट दे दी। शोध छात्रा के पोस्टमार्टम के दौरान बनाई गई स्लाइड का हैदराबाद की लैब में परीक्षण कराया गया। उसके वैजाइनल स्मियर में उदय स्वरूप के स्पर्म पाए गए। इसके बाद सीबीआइ ने अपनी चार्जशीट में हत्या के साथ उदय पर दुष्कर्म की धारा भी लगाई। इसमें वर्ष २०१६ में ही आरोप तय हो गए थे। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर शोध छात्रा की ओर से एडीजे-९ की अदालत में पैरवी को स्वतंत्र लोक अभियोजक के रूप में अशोक कुमार गुप्ता को चुना गया। उन्होंने सीबीआइ की चार्जशीट और हैदराबाद लैब की रिपोर्ट के आधार पर उदय और संधू दोनों पर हत्या, दुष्कर्म के साथ सामूहिक दुष्कर्म (आइपीसी की धारा ३७६ डी) और बेहोश कर दुष्कर्म करने (धारा ३७६ ए) में आरोप तय करने को अदालत में मई २०१८ में प्रार्थना पत्र दिया। अपनी तरफ से स्वतंत्र लोक अभियोजक ने पक्ष रख दिया। छह माह गुजर चुके हैं। मगर, अभी तक आरोप तय नहीं हो सके। आरोपित पक्ष के अधिवक्ता कभी किसी पेपर का बहाना बनाते हैं तो कभी नियमों का हवाला देकर समय मांग लेते हैं। अदालत भी उनकी बातों को मानकर तारीख पर तारीख दे रही है। शोध छात्रा के पिता का कहना है कि अब शायद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की टिप्पणी के बाद स्थानीय अदालत में रफ्तार बढ़े। उन्हें अदालत पर पहले से ही भरोसा था। मगर, सीजेआई के रुख के बाद उन्हें भरोसा और बढ़ गया है कि आरोपितों को जल्द कड़ी सजा मिलेगी।
पांच माह में देना होगा फैसला
पिछले दिनों यशवीर संधू के आरोप खारिज करने की याचिका पर प्रयागराज हाईकोर्ट ने स्थानीय अदालत को छह माह में शोध छात्रा हत्याकांड पर फैसला देने के निर्देश दिए थे। नवंबर में यह आदेश अदालत की पत्रावली में शामिल हुआ है। इसलिए अब हाईकोर्ट के निर्देश के मुताबिक स्थानीय अदालत को फैसला सुनाने के लिए पांच माह और बचे हैं।
54 गवाहों की गवाही और सुबूतों की लंबी फेहरिस्त
शोध छात्रा हत्याकांड में अभियोजन की ओर से 54 गवाह हैं। इनमें से कुछ पुलिस और सीबीआइ के हैं तो कुछ पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर और फोरेंसिक जांच करने वाले वैज्ञानिक हैं। अदालत में अगली तारीख २० दिसंबर है। अगर इस तारीख में आरोप तय हो गए तो उसके बाद गवाही शुरू होगी। इनकी गवाही में बहुत वक्त लगेगा। इसके साथ ही डीएनए रिपोर्ट समेत अन्य सुबूतों को अदालत में पेश किया जाएगा। डीएनए परीक्षण करने वाले हैदराबाद की लैब के वैज्ञानिकों को भी गवाही के लिए अदालत में आना होगा। इस पूरी प्रक्रिया में लंबा वक्त लगेगा।