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हरतालिका तीज 2019: अखंड सौभाग्‍य के वरदान के व्रत का जानिए क्‍या है विधान Agra News

सुहागिन स्त्रियां रविवार को रखेंगी व्रत। करेंगी शिव- पार्वती की आराधना।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 31 Aug 2019 01:26 PM (IST)Updated: Sat, 31 Aug 2019 01:26 PM (IST)
हरतालिका तीज 2019: अखंड सौभाग्‍य के वरदान के व्रत का जानिए क्‍या है विधान Agra News
हरतालिका तीज 2019: अखंड सौभाग्‍य के वरदान के व्रत का जानिए क्‍या है विधान Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। सभी चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्‍व है। हरतालिका दो शब्‍दों से मिलकर बना है- हरत और आलिका। हरत का अर्थ है 'अपहरण' और आलिका यानी 'सहेली'। प्राचीन मान्‍यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्‍हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्‍णु से उनका विवाह न करा पाएं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्‍था है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्‍य का वरदान देते हैं। वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्‍त‍ि होती है। यह त्‍योहार मुख्‍य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को गौरी हब्‍बा के नाम से जाना जाता है।

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भाद्रपद की शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र में कुमारी तथा सौभाग्यवती स्त्रियां पति सुख को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। इस व्रत को तीज, हरितालिका तीज, अखंड सौभाग्यवती व्रत इत्यादि के नाम से जाना जाता है।

धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी

कठिन तप है हरितालिका का व्रत

पंडित वैभव बताते हैं कि हरताल‍िका तीज की महिमा को अपरंपार माना गया है। हिन्‍दू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए इस पर्व का महात्‍म्‍य बहुत ज्‍यादा है। हरियाली तीज और कजरी तीज की तरह ही हरतालिका तीज के दिन भी गौरी-शंकर की पूजा की जाती है। हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन है। इस दिन महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला व्रत करती हैं। यही नहीं रात के समय महिलाएं जागरण करती हैं और अगले दिन सुबह विधिवत्त पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत खोलती हैं। मान्‍यता है कि हरतालिका तीज का व्रत करने से सुहागिन महिला के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है।

हरतालिका तीज व्रत का महत्त्व

यह व्रत वास्तव में सत्यम शिवम् सुंदरम के प्रति आस्था और प्रेम का त्यौहार हैं। कहा जाता है की इसी दिन शिव और मां पार्वती का पुनर्मिलन इसी दिन हुआ था। हरियाली तीज शिव-पार्वती के मिलन का दिन है। सुहागिनों द्वारा शिव-पार्वती जैसे सुखी पारिवारिक जीवन जीने की कामना का पर्व है। वैभव जोशी कहते हैं कि वास्तव में हरतालिका तीज सुहागिनों का त्यौहार है लेकिन भारत के कुछ स्थानों में कुंवारी लड़कियां भी मनोनुकूल पति प्राप्त करने के लिए यह व्रत रखती हैं।

हरतालिका नाम के पीछे क्या है तर्क

भद्रा मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। यह एक ऐसा समय है, जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है। सभी ओर हरियाली ही हरियाली होती है। इस हरियाली की सुंदरता, मधुरता, मोहकता को देखकर भला कौन नहीं मंत्रमुग्ध हो जाएगा। इस मौसम में नव शाखा, नव किसलय, नवपल्लव एक दूसरे से स्पर्श कर अपने प्यार का इजहार करते हैं और मानव जीवन को भी मधुर मिलन का एहसास कराते हैं।

हरतालिका तीज व्रत महात्म्य कथा

पार्वती जी की पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए महादेव शिव ने इस प्रकार से कथा कही थी। हे गौरी ! पर्वतराज हिमालय पर भागीरथी के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर कठिन तप किया था| इस दौरान तुमने अन्न का त्याग कर रखा था तथा केवल हवा तथा सूखे पत्ते चबाकर तपस्या की थी|

माघ की शीतलता में तुमने लगातार जल में प्रवेश कर तप किया था। वैशाख की तप्त गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया| श्रावण की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न, जल ग्रहण किये व्यतीत किया| तुम्हारी इस तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दु:खी और नाराज रहते थे| एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराजगी को देखकर नारद जी तुम्हारे आये|

तुम्हारे पिता नारद जी आने का कारण पूछा तब नारद जी बोले –हे गिरिराज! मुझे भगवान विष्णु भेजा है| आपकी कन्या की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान उससे विवाह करना चाहते हैं। बताएं आपकी क्‍या इच्छा है| नारदजी की बात से पर्वतराज बहुत ही प्रसन्न होकर बोले – श्रीमान! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है| वे तो साक्षात् परब्रह्म है| यह तो सभी पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-संपत्ति से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने|

नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का शुभ समाचार सुनाया| किन्तु जब तुम्हे इस शादी के सम्बन्ध में पता चला तो तुम बहुत दुखी हुईं| तुम्हें दु:खी देखकर तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तब तुम बोली – मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, परन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है| मैं धर्मसंकट में हूं| अब मेरे पास प्राण त्यागने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं बचा है। तुम्हारी सखी ने कहा – प्राण त्यागने का यहां कोई कारण नहीं लगता। दुःख के समय धैर्य से काम लेना चाहिए| वास्तव में भारतीय नारी जीवन की सार्थकता इसी में है कि एकबार स्त्री जिसे पुरुष मन से पति रूप में वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त सच्चे मन तथा तन से निर्वहन करे| सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के सामने तो भगवान भी असहाय हैं| मैं तुम्हें घने वन में ले चलती हूं जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हे ढूंढ़ भी नहीं पायेंगे| मुझे पूरा विश्वास है कि भगवान् अवश्य ही तुम्हारी इच्छा की पूर्ति करेंगे|

अपनी सखी के साथ तुम जंगल में चली गईं। इधर तुम्हारे पिता तुम्हे घर में नहीं देखकर बड़े चिंतित और दु:खी हुए| वे सोचने लगे कि मैंने तो विष्णु जी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया हैं | यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत ही अपमान होगा।

ऐसा विचार कर पिता ने तुम्हारी खोज शुरू करवा दी| तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर के गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगी| भाद्रपद में शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि तथा हस्त नक्षत्र था| उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया| रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मैं शीघ्र ही प्रसन्न होकर तुम्हारे पास आ गया और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा –

मैं सच्चे मन से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ| यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां आये हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये| तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया। प्रात: होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया| उसी समय गिरिराज अपने बंधू-बांधवों के साथ तुम्हे ढूंढते हुए वहां पहुंचे। तुम्हारी मन तथा तन की दशा देखकर अत्यंत दु:खी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पूछा। तब तुम बोलीं– पिताजी मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक्त कठोर तपस्या में बिताया है| मेरी इस तपस्या का एकमात्र उद्देश्य महादेवजी को पति रूप में प्राप्त करना था। आज मैं अपनी तपस्या का फल पा चुकी हूँ। चूंकि आपने मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय किया इसलिए मैं अपने अराध्य महादेव शिवजी की तलाश में घर से चली गई। अब मैं इसी शर्त पर घर लौटूंगी की आप मेरा विवाह महादेव जी के साथ ही करेंगे। पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हे घर वापस ले आए। किंचित समय उपरांत उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ तुम्हारा विवाह मेरे साथ किया।

महादेव शिव ने पुनः कहां– हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी पूजा-अर्चना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरुप हम दोनों का विवाह संभव हो पाया। अतः इस व्रत का महत्त्व यही है कि जो स्त्री तथा कन्या पूरी निष्ठा के साथ व्रत करती है उसको मै मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।

पूजन विधि

हरतालिका व्रत पूजा में निम्नलिखित सामग्री को एकदिन पूर्व ही इकट्ठा कर लेना चाहिए ताकि पूजा के समय किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो।

पंचामृत ( घी, दही, शक्कर, दूध, शहद) दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर,चन्दन, अबीर, जनेऊ, वस्त्र, श्री फल, कलश,बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी। काली मिट्टी अथवा बालू रेत, केले का पत्ता, फल एवं फूल।

माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जैसे — चूड़ी, बिछिया,बिंदी, कुमकुम, काजल, माहौर, मेहँदी, सिंदूर, कंघी, वस्त्र आदि लेनी चाहिए।

व्रत के लिए ध्यातव्य बातें

- जो स्त्री या कन्या इस व्रत को एक बार करती है उसे प्रत्येक वर्ष पूरे विधि-विधान के साथ व्रत करना चाहिए।

- पूजा का खंडन किसी भी सूरत में नहीं करना चाहिए।

- इस दिन नव वस्त्र ही पहनना चाहिए।

- हरतालिका तीज पूजन मंदिर तथा घर दोनों स्थान में किया जा सकता है।

- इस दिन अन्न, जल या फल नही खाना चाहिए।  


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