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Mouth Watering: मुंह में डालते ही घुल जाते हैं ये पेड़े, नेता से अभिनेता तक दीवाने Agra News

बुलंद दरवाजा का दीदार करने वाले अपने जेहन में बुलंद दरवाजे की खूबसूरती के साथ किरावली की मिठास भी साथ लेकर जाते हैं।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 22 Feb 2020 09:37 AM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 09:37 AM (IST)
Mouth Watering: मुंह में डालते ही घुल जाते हैं ये पेड़े, नेता से अभिनेता तक दीवाने Agra News
Mouth Watering: मुंह में डालते ही घुल जाते हैं ये पेड़े, नेता से अभिनेता तक दीवाने Agra News

आगरा, मनीष उपाध्याय। फतेहपुरसीकरी में विश्वविख्यात बुलंद दरवाजा व दरगाह का दीदार करने वाले अपने जेहन में बुलंद दरवाजे की खूबसूरती के साथ किरावली की मिठास भी साथ लेकर जाते हैं। कस्बा की आन और शान पेड़े की विशेषता और स्वाद दोनों को दिन प्रतिदिन बढ़ा रहा है। इसे पसंद करने वालों ने कस्बे की इस मिठाई को कैलाशी मिठाई बना दिया है। अब कस्बे पेड़े की कई दुकानें हो गई हैं। सभी की कुछ न कुछ खासियत है।

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कैलाशी बंसल के प्रयास से पेड़े में आई मिठास

किरावली कस्बे की दुकानों पर मिलने वाले पेड़े की अपनी अलग ही मिठास है। मुंह में रखते ही घुल जाना और स्वाद में विशिष्टता इसे मुकाम दिलाती है। किरावली में बंसल स्वीट्स के संचालक बबलू और गुड्डू बंसल बताते हैं कि लगभग 70 साल पहले इनके पिता स्व कैलाशनाथ बंसल ने पेड़े बनाना शुरू किए थे। एक छोटी सी दुकान से पेड़ों के कारोबार की जो नींव डाली आज वह वटवृक्ष बन चुकी है। रोजाना 7 से 10 किलो पेड़ों की बिक्री आज लगभग 10 कुंटल तक पहुंच चुकी है।

इन शहरों में जाता है पेड़ा

आगरा, भरतपुर, धौलपुर, दिल्ली, ग्वालियर, मुरैना, जयपुर तक पेड़ों की सप्लाई होती है। मुख्य दुकान के पीछे ही हलवाइयों का कारखाना बना है। अपनी आंखों के सामने पेड़ों को निर्मित कराया जाता है।

अभिनेता से लेकर राजनेता तक को पसंद

किरावली के पेड़ों के दीवाने अभिनेता से लेकर तमाम राजनेता रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विगत में अपनी जनसभा के लिए आगमन के दौरान किरावली के पेड़ों की डिमांड की थी। कैलाशनाथ बंसल ने उन्हें अपने हाथों से पेड़े भेंट किये थे। लेकिन, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए तत्कालीन सांसद रहे भगवान शंकर रावत पेड़े लेकर जाते थे। फिल्म अभिनेता रमेश गोयल, राजबब्बर के अलावा जन्मभूमि और लल्लूराम फिल्मों के निर्माता शिवकुमार से लेकर अनगिनत लोग इन पेड़ों के दीवाने रहे हैं।

क्वालिटी पर रहता है जोर

गुड्डू बताते हैं कि पेड़ों में प्रयुक्त होने वाले खोए को वह अपने यहां खुद बनवाते हैं। इसे उस स्तर तक भूना जाता है जब तक वह सुनहरा नहीं हो जाये। इस पेड़े की खासियत यह रहती है कि वह 10 से 15 दिनों तक खराब नहीं होता। यहां तक कि पेड़ों के लिए तगार भी वह खुद ही बनाते हैं। इसी तगार के कारण पेड़ों में रवा बनता है जो पेड़ों को स्वाद देता है।

कच्चा माल खरीदकर तैयार करते हैं पेड़े

किरावली के मुख्य चौराहा पर अग्रवाल पेड़ा भंडार के मालिक कन्हैया अग्रवाल कहते हैं कि उनके पेड़े की महक से ग्राहक खुद-ब-खुद खिंचे चले आते हैं। वर्ष 2000 में इस दुकान की शुरूआत उनके पिता राजेश अग्रवाल ने की थी। कन्हैया कहते हैं कि वे कच्चा माल खरीदकर ही पेड़े तैयार कराते हैं।

पांच किलो पेड़े से शुरू हुई थी दुकान

चौधरी स्वीट्स के मालिक रामवीर चौधरी कहते हैं कि पेड़ा ताजा और सुगंधयुक्त रहे, इसलिए प्रतिदिन जरूरत के मुताबिक ही इसे तैयार किया जाता है। दुकान की शुरूआत छोटे से तख्त पर पांच किलो पेड़े से हुई। मांग बढऩे के बाद 2007 में दुकान बना ली अब यहां पेड़े खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती है।

महक से खिंचे चले आते हैं ग्राहक

चौधरी स्वीट्स के मालिक रामवीर चौधरी का कहना है कि पेड़ा बनाने की खासियत ही ग्राहकों को खींचती है। खोआ और तगार को गरम कर तब तक मथा जाता है, जब तक कि वह लाल न हो जाए। इसके बाद सुगंध के लिए घी और इलायची का इस्तेमाल किया जाता है। 


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