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एक्सप्रेस वे पर हादसों में टूट रही गर्दन, ईट थैरेपी से बचेगी जान

- न्यूरोट्रॉमा सोसायटी ऑफ इंडिया की कार्यशाला में सड़क दुर्घटना के घायलों के इलाज पर चर्चा - 40 फीसद घायल की बिस्तर पर कट रही जिंदगी अस्पताल पहुंचने में लग रहे घंटों

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Aug 2019 10:00 AM (IST)Updated: Sun, 25 Aug 2019 06:26 AM (IST)
एक्सप्रेस वे पर हादसों में टूट रही गर्दन, ईट थैरेपी से बचेगी जान
एक्सप्रेस वे पर हादसों में टूट रही गर्दन, ईट थैरेपी से बचेगी जान

आगरा, जागरण संवाददाता। एक्सप्रेस वे बनने से सड़क हादसे बढ़े हैं, भारत में हर चार मिनट में एक मौत हो रही है। अब विदेशों की तरह एक्सप्रेस वे पर तेज रफ्तार से हो रहे सड़क हादसों में गर्दन की हड्डी टूट (सर्वाइकल फ्रैक्चर) रही है। यह मौत का बड़ा कारण है, जिनकी जान बच गई उनमें से 40 फीसद का शरीर काम नहीं कर रहा है। शुक्रवार को होटल जेपी पैलेस में शुरू हुई न्यूरोट्रॉमा सोसायटी ऑफ इंडिया की कार्यशाला (न्यूरोट्रॉमा 2019) में देश दुनिया के न्यूरोसर्जन ने सड़क हादसों के घायलों की जान बचाने पर चर्चा की।

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एक्सप्रेस वे पर गाड़ियां फर्राटा भर रहीं हैं, सड़क हादसों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह देश दुनिया के न्यूरोसर्जन के लिए चुनौती बना हुआ है। पिछले सालों में भारत में एक्सप्रेस वे बनने से विदेशों की तरह हाई स्पीड क्रैश (दुर्घटना) बढ़े हैं। तेज रफ्तार में हो रहे हादसों में सर्वाइकल फ्रैक्चर हो रहे हैं। ऐसे में घायलों को उठाने में गर्दन इधर उधर होने पर टूटी हड्डी से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी हो रही है। ऐसे में अस्पताल तक पहुंचने में हेड इंजरी और स्पाइनल कॉर्ड इंजरी से 40 फीसद की मौत हो रही है। जिनकी सांस चल रहीं हैं वे महीनों तक कोमा में रहते हैं। इसमें से भी 40 फीसद अपने घर पर बिस्तर में वेजेटेटिव (निष्क्रिय) जिंदगी जी रहे हैं। सड़क हादसे में घायलों की जान बच सके, इसके लिए पहले एक घंटे में (गोल्डन ऑवर) में इलाज मिल जाना चाहिए। मगर तीन से चार घंटे और कई केस में एक से दो दिन में मरीज अस्पताल में पहुंच रहे हैं। घायलों को अस्पताल ले जाते समय गर्दन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। गर्दन को इधर उधर ना होने दें, इसके लिए ईट थैरेपी की मदद ले सकते हैं। गर्दन के दोनों तरफ ईट फिक्स कर कपड़े से अच्छी तरह से बांध दें। जिससे गर्दन के फ्रैक्चर से स्पाइनल कॉर्ड में इंजरी ना हो। इसके बचने पर 40 फीसद घायलों की जान बच सकती है। एम्स के डॉक्टरों ने तैयार किया सस्ता घर ले जाने वाला वेंटीलेटर

एम्स के न्यूरोसर्जन डॉ. दीपक अग्रवाल ने सस्ता पोर्टबल वेंटीलेटर तैयार किया है, इसकी कीमत 50 हजार है। हॉस्पिटल के लिए भी सस्ता वेंटीलेटर तैयार किया गया है। बाजार में वेंटीलेटर की कीमत 10 से 15 लाख है। इसी तरह से हेड इंजरी में प्रेशर चेक करने के लिए 30 से 40 हजार रुपये में कैथेटर आता है, यह एक बार ही इस्तेमाल हो सकता है। सस्ता कैथेटर भी तैयार किया जा रहा है। इसी तरह से हादसे के बाद मरीज को सांस देने के लिए भी न्यूरोसर्जन ने सस्ता उपकरण बनाया है। न्यूरोट्रॉमा का एक ही गाइडलाइन से देश भर में हो इलाज

न्यूरोट्रॉमा सोसाइटी ऑफ इंडिया और न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की कार्यशाला में देश विदेश के 300 न्यूरोसर्जन शामिल हुए। 100 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। कार्यशाला में न्यूरोट्रॉमा के इलाज की गाइड लाइन तैयार की जाएगी। इसी से देश भर में इलाज हो। इसके लिए सरकार से सिफारिश की जाएगी। आयोजन अध्यक्ष प्रो. वीएस मेहता, डॉ. वी सुंदर, सह आयोजन अध्यक्ष डॉ. आरसी मिश्रा, सचिव डॉ. सुमित सिन्हा, टोरंटो के डॉ. क्रिस्टोफर एस आहूजा, प्रो. लिप चेरियन, अमेरिका के डा. जेम्स डेविड गेस्ट, प्रो. जैक आई जेलो, ऑस्टेलिया के प्रो. पीटर रिली, सचिव डॉ. डॉ. संजय गुप्ता, डॉ. आलोक अग्रवाल, डॉ. अरविंद अग्रवाल, डॉ. शाश्वत मिश्रा आदि मौजूद रहे। अब तक 62 सिर में गोली लगने के केस, गोली संग जिंदा है मरीज

आयोजन सह अध्यक्ष डॉ. आरसी मिश्रा ने सिर में गोली लगने के मामलों में इलाज पर स्टडी पेश की। वे अभी तक सिर में गोली लगने के 62 मरीजों का इलाज कर चुके हैं। उनके पास पहला केस 1986 में आया था, गोली एक तरफ से दूसरी तरफ निकल गई थी। वह अभी भी ठीक है, इसी तरह से 2000 में एक केस आया, इसमें सिर के अंदर गोली फंसी रह गई, 2019 में भी गोली सिर के उसी हिस्से में है और मरीज ठीक है। उन्होंने बताया कि सिर में लगी गोली से हाइपोथैलमस, पिट्यूटरी सहित वाइल ऑर्गन में इंजरी नहीं होती है तो जान बचाई जा सकती है।

अमेरिका में सड़क हादसों में गर्दन की हड्डी टूटने के मामले अधिक आते थे, अब यह भारत में भी देखने को मिल रहा है। यहां देर से मरीज पहुंचते हैं, अत्याधुनिक तकनीकी नहीं है इससे मौतें ज्यादा हैं।

प्रो. जैक आई जेलो, अमेरिका एक्सप्रेस वे बनने से हादसों में गर्दन की हड्डी सबसे ज्यादा टूट रही है। गर्दन के दोनों तरफ ईट लगाकर मरीज को अस्पताल तक पहुंचाया जाए तो जान बच सकती है। वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

डॉ. सुमित सिन्हा, सचिव सिर में गोली लगने पर यह नहीं मानना चाहिए कि मरीज की जान नहीं बच पाएगी। गोली वाइटल ऑर्गन में इंजरी नहीं करती है तो गोली आर पार निकलने और सिर में धंसे रहने पर भी जान बच सकती है।

डॉ. आरसी मिश्रा, आयोजन सह अध्यक्ष


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