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Teacher's Day Special: आर्मीमैन रतन ने तराशे हैं खेल के कई रत्‍न Agra News

सेना में रहते हुए कई जवानों को एथलेटिक्‍स की दुनिया में कमवाया नाम। रिटायरमेंट के बाद भ्‍ाी युवाओं को दे रहे ट्रेनिंग।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Thu, 05 Sep 2019 09:33 AM (IST)Updated: Thu, 05 Sep 2019 09:33 AM (IST)
Teacher's Day Special: आर्मीमैन रतन ने तराशे हैं खेल के कई रत्‍न Agra News
Teacher's Day Special: आर्मीमैन रतन ने तराशे हैं खेल के कई रत्‍न Agra News

आगरा, मनोज कुमार। वर्ष 1978 में एशियन गेम्स में 1500 मीटर दौड़ में देश को कांस्य पदक दिलाने वाले आर्मीमैन रतन सिंह भदौरिया ने खेल के तमाम रत्‍न भी तराशे हैं। वैसे तो उनकी कोचिंग से सेना के कई जवान एथलेटिक्स में दुनिया भर में नाम कमा चुके हैं मगर चीफ कोच से रिटायरमेंट के बाद रतन सिंह ने गांव-देहात के युवाओं को भी खेल जगत के फलक पर बैठाया है। खेल के प्रति उनके समर्पण का सिलसिला जारी है।

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बाह के कुंवरखेड़ा के रहने वाले रतन सिंह भदौरिया युवावस्था से ही खिलाड़ी रहे हैं। सेना में रहने के दौरान वर्ष 1978 के एशियन गेम्स में 1500 मीटर दौड़ में उन्होंने कांस्य पदक हासिल किया था। वर्ष 1988 से 1990 तक वे सेना के चीफ कोच रहे हैं। रतन सिंह बताते हैं कि उनकी कोचिंग से सेना के कई जवानों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया।

वर्ष 1994 से सेना से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने गांव देहात के युवाओं को खेल के प्रति प्रेरित करना जारी रखा। उनका पूरा फोकस फिजीकली फिटनेस पर रहता है। वे कहते हैं कि केवल खेल के बूते ही करियर बनाना मुश्किल है। शारीरिक रूप से फिट होने पर पहले फोर्स में भर्ती होना जरूरी और तब खेल को प्राथमिकता देनी है। उनकी इस सीख से सैकड़ों युवा सेना, अर्धसैन्य बल और पुलिस आदि में सेवारत हैं और खेल प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर तक नाम रोशन कर चुके हैं।

तीन में दो सैनिक बेटे भी खिलाड़ी

रतन सिंह के तीन बेटे हैं। राकेश, संतोष और रविंद्र। राकेश और रविंद्र सेना में हैं, जबकि संतोष बिजनेस करते हैं। राकेश 800 मीटर दौड़ के जूनियर वर्ग में नेशनल चैंपियन और रविंद्र सीनियर वर्ग में नेशनल चैंपियन रह चुके हैं। वर्तमान में देवरी रोड के पास रामविहार कॉलोनी में रह रहे रतन सिंह अभी युवाओं की खेल प्रतिभा को निखार रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर तक न पहुंचा पाने पर दिया इस्तीफा

रतन सिंह को वर्ष 2000 में स्थानीय एकलव्य स्टेडियम में एथलेटिक्स कोच नियुक्त किया गया। यहां दस साल तक रहने के दौरान राष्ट्रीय स्तर तक कई खिलाड़ियों को पहुंचाया। रतन सिंह बताते हैं कि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक भी खिलाड़ी को न पहुंचाने पर उन्हें अफसोस हुआ और जिम्मेदारी लेते हुए कोच से इस्तीफा दे दिया।


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