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Water Conservation: देश के इस गुरुद्वारे में सहेजी जाती है पानी की हर बूंद, Used Water का भी उम्‍दा है इस्‍तेमाल

गुरुद्वारा गुरु का ताल के जलाशय में हर वक्त रहता है आठ से नौ फुट पानी। बर्तन धोने और नहाने में इस्तेमाल होने वाला पानी करते हैं एकत्र। बरसात की एक बूंद को भी नहीं जाने देते व्यर्थ।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 05 Apr 2021 09:29 AM (IST)Updated: Mon, 05 Apr 2021 09:29 AM (IST)
Water Conservation: देश के इस गुरुद्वारे में सहेजी जाती है पानी की हर बूंद, Used Water का भी उम्‍दा है इस्‍तेमाल
आगरा के गुरुद्वारा गुरु के ताल में पानी की हर बूंद सहेजी जा रही है।

आगरा, प्रभजोत कौर। गुरुद्वारा गुरु का ताल में पानी की हर बूंद को बचाने का प्रयास होता है। बर्तन धोने से लेकर गऊशाला और गुरुद्वारा परिसर में रहने वाले परिवारों के द्वारा इस्तेमाल होने वाले पानी तक को छोटी-छोटी टंकियों में एकत्र कर एक बड़े जलाशय में पहुंचाया जाता है। इस जलाशय का पानी खेती में इस्तेमाल होता है। जलाशय में हर वक्त आठ से नौ फुट पानी रहता है।

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यह एतिहासिक गुरुद्वारा 35 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां करीब 500 सेवादारों के 150 परिवार रहते हैं। गुरुद्वारा परिसर में रहने के लिए सराय, ताल, लंगर भवन, गऊशाला व पार्किंग है। सराय में 148 कमरे हैं। गऊशाला में गोबर की नियमित उठान के साथ बायोगैस प्लांट में उपयोग होता है। बर्तनों की धुलाई का पानी भी टैंक में एकत्र किया जाता है। जिसे खेती में इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं, गुरुद्वारा परिसर में जमीन के नीचे छह छोटी-छोटी टंकियां बनाई हुई हैं। इन टंकियों में बर्तन धोने के बाद आने वाला पानी, गुसलखानों में नहाने में इस्तेमाल हुआ पानी, गऊशाला में गाय-भैंसों को नहाने में इस्तेमाल हुआ पानी एकत्र होता है। इस पानी को गुरुद्वारा परिसर में ही बने जलाशय से जोड़ा गया है।इस जलाशय में गाय-भैंसों का पेशाब, गोबर आदि भी पहुंचता है। जलाशय की तलहटी में चिकनी मिट्टी भी डाली हुई है, जिससे यह पानी खेती के लिए काफी फायदेमंद हो जाता है। इसी जलाशय के पानी से गुरुद्वारा परिसर में होने वाली खेती की सिंचाई की जाती है। दो साल पहले धार्मिक परिसरों में स्वच्छता के सर्वे में गुरुद्वारा गुरु का ताल को प्रदेश में प्रथम स्थान मिला था।

बंद करा दी गई हैं बोरिंग

पहले गुरुद्वारा परिसर में 10 से ज्यादा बोरिंग थी, इससे पानी का दोहन ज्यादा हो रहा था। अब सभी बोरिंग बंद करा कर एक ही बोरिंग रखी गई है। इसी बोरिंग से हर दूसरे दिन परिसर में बनी चार लाख लीटर की पानी की टंकी को भरा जाता है। बरसात का पानी भी सहेजा जाता है। बरसात का पानी भी जलाशय में ही जाता है। गुरुद्वारा परिसर में नालियों में छोटे-छोटे गेट बनाए हुए हैं, जो अधिक बरसात होने पर खोल दिए जाते हैं, जिससे पानी बहकर परिसर के बाहर के नाले में चला जाए।गुरुद्वारा के मीडिया समन्वयक मास्टर गुरनाम सिंह ने बताया कि हमारी कोशिश होती है कि बरसात की हर बूंद सहेजी जाए। पर, जिस साल बरसात अधिक होती है हम नालियों के गेट तभी खोलते हैं। वर्ना हमारे जलाशय से पानी बाहर आ जाएगा। गुरुद्वारा परिसर में इस्तेमाल होने वाले पानी की हर बूंद को दोबारा इस्तेमाल किया जाता है।


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