Emergency के 44 साल - आगरा के जेहन में आज भी ताजा हैं हर शख्स के चेहरे पर वह खौफ Agra News
थाने पर रात भर दी थी प्रताडऩा घुटनों पर बरसाए थे डंडे। छद्म नाम से जेल गए थे अशोक दिग्गज।
आगरा, विनीत मिश्र। मैं आगरा हूं। वह आगरा, जिसके आंचल में गंगा-जमुनी तहजीब पली और बढ़ी है। आज आपातकाल लागू हुए 44 बरस बीत गए। लेकिन, उस दौर का एक-एक लम्हा आज भी जेहन में तारी है। 25 जून 1975। यही वह दिन था, जब देश में अचानक आपातकाल लागू हुआ। हर कोई स्तब्ध था। पुलिस और प्रशासन मनमानी पर उतारू हो गया। वो लम्हा भी याद है, जब सत्याग्रह शुरू हुआ, तो पुलिस स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोगों को ढूंढ रही थी। वह छिपते रहे। जब पकड़े जाते तो चौराहे पर यातना दी जाती।
नई पीढ़ी को शायद न मालूम हो, तो मैं बताता हूं। आज जिस एमजी रोड को शहर का प्रमुख मार्ग कहा जाता है, वह उसी दौर में बनी थी। अचानक भगवान टॉकीज से प्रतापपुरा चौराहे तक सिंगल रोड को फोरलेन होना था। हजारों मकान जद में थे। अचानक फोरलेन करने की घोषणा हो गई। रातों रात उन मकानों पर लाल निशान लगा दिए गए, जिनके मकान टूटने थे, सन्न रह गए। आंखें आंसुओं से तर थीं, लेकिन आपातकाल के खौफ ने जुबां पर ताला लगा दिया था। एक-एक कर वर्षों से खड़े मकान जमींदोज हो गए। ...और मलबे में दब गईं, उन परिवारों की उम्मीदें, जिन्होंने तिनका-तिनका जोड़कर मकान बनाया था। एक दर्द और भी बार-बार जेहन में आ गया। अचानक परिवार नियोजन लागू किया गया। सरकारी मुलाजिमों को नसबंदी कराने का लक्ष्य दे दिया गया, कैसे-कैसे लोगों को बहाने से ले जाकर अपनी नौकरी पक्की करने के लिए सरकारी मुलाजिम नसबंदी कराते थे, जो नहीं चाहते थे, उनकी भी नसबंदी की गई। फतेहपुर सीकरी से शाहगंज, मंटोला, नाई की मंडी होते हुए बिजली घर और ताजमहल तक भी सड़क फोरलेन होनी थी। न जाने कितने अरमानों से सजे हजारों मकान इस जद में आ गए। मकानों पर लाल निशान लगे। अपने लोगों का दुख देख मैं भी परेशान हो गया। मकान टूटने थे और सड़क फोरलेन होनी थी, शुक्र है कि 21 मार्च 1977 को आपातकाल खत्म हो गया, और सरकारी की इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। 44 साल बाद फिर से जेहन में वह सब ताजा हो गया।
सच उगलवाने को दिए करंट के 44 झटके
उस खौफनाक रात की बात मत करिए। सोचता हूं, तो रूह कांप जाती है। आपातकाल के दौर में पुलिस ने पकड़ा तो सच उगलवाने के लिए बिजली के 44 झटके दिए। घुटनों पर डंडे से इतने प्रहार किए, कि चलना मुश्किल हो गया। लेकिन पुलिस सच नहीं उगलवा पाई।
शहर के बागराजपुर में रहने वाले 70 वर्षीय अशोक दिग्गज उस दौर को याद कर आज भी सिहर जाते हैं। बताते हैं कि तब मैं मथुरा की मांट तहसील में संघ के प्रचारक था। एमए करने के बाद एलएलबी प्रथम वर्ष का छात्र था। आपातकाल लागू हुआ, तो हम भी सक्रिय हो गए। मथुरा, मांट तहसील के साथ ही गोवर्धन में गोपनीय स्थानों पर बैठकें करने लगे। आज भी अ'छी तरह से याद है, वो 13 नवंबर 1975 का दिन था। मथुरा के कृष्णानगर में अपने साथी विनोद के साथ बैठे थे। तभी एक इंस्पेक्टर बुलेट से पहुंचा और हमसे पूछताछ की। हमने खुद को छात्र बताया लेकिन इंस्पेक्टर ने सीधा आरोप लगाया कि हम लोग राहगीरों को लूटने के लिए यहां बैठे हैं। हमारी तलाशी ली गई तो सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य जेब से मिला। फिर क्या था, वो हमें थाने ले आया। थाने पर हमसे खूब पूछताछ हुई। हमने असली नाम न बताकर प्रकाश शर्मा नाम बताया था। आगरा के संघ कार्यालय पर बतौर रसोइया बताया। जो साहित्य बरामद हुआ था, उसे मथुरा में एक निश्चित स्थान पर रखने के लिए पैसे मिलते हैं। ये पैसे कौन देता है, ये नहीं मालूम। पुलिस को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। सच उगलवाने के लिए करंट के झटके दिए। हर झटके पर पूरा शरीर हिल जाता, लेकिन उन्होंने मुंह नहीं खोला। अशोक बताते हैं कि पुलिस ने रात भर में करंट के कुल 44 झटके दिए थे। इतने पर भी जब मुंह नहीं खोला तो पैर फैलाकर हमारे घुटनों पर डंडे बरसाए थे। साथी विनोद शर्मा के बारे में पुलिस ने पूछा तो बता दिया कि ये रास्ते में मिल गए थे, गोवर्धन जाते समय साथ हो लिए।
अगले दिन पुलिस ने प्रकाश शर्मा के नाम से हमें जेल भेज दिया गया। ऐसे में विनोद शर्मा बच गए। दो माह तक जेल में रहने के बाद फरवरी में रिहा हुए। अशोक बताते हैं कि जांच के लिए जेल में खुफिया एजेंसी आई थी। कोर्ट में केस की सुनवाई होती तो वह मेडिकल लगाकर लंबी तारीख ले लेते। इसी बीच पुलिस को उनकी स'चाई पता चल गई कि मैं प्रकाश शर्मा नहीं, अशोक दिग्गज हूं। और वह भी संघ के प्रचारक। इसके बाद उनकी गिरफ्तारी को पुलिस फिर सक्रिय हो गई। जिस दिन कोर्ट में अगली तारीख थी, पुलिस ने पूरा कोर्ट परिसर घेर लिया लेकिन उससे पहले ही मैंने दो माह की अगली तारीख ले ली। कई महीनों तक इधर-उधर छिपकर रहते रहे। पुलिस ने मेरी जमानत लेने वालों को भी प्रताडि़त किया। दिग्गज कहते हैं कि इसी बीच फरवरी 1977 में सरकार के लिए चुनाव का ऐलान हुआ, तो पुलिस शांत हुई, तब राहत की सांस मिली।
26 का परिवार, 13 को भेज दिया जेल
वह दौर, उफ, हर दिन पूरा परिवार दहशत में रहता था। परिवार में 26 लोग थे, एक-एक कर पुलिस ने 13 को सलाखों के पीछे भेज दिया। परिवार के पुरुष क्या साहब, महिलाओं को भी नहीं बख्शा। मां-पिता, बेटी और बेटों को एक साथ जेल में डाल दिया। पुलिस की ज्यादती इतनी कि घर के हर कोने में केवल दहशत फैली थी।
ये दर्द भरी कहानी उस महाजन परिवार की जिसने आपातकाल में सरकार की ज्यादती के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। न्यू राजामंडी में रहने वाले ओमप्रकाश महाजन परिवार के मुखिया थे। तब उम्र कोई पचास बरस की थी। संघ से जुड़े थे, ऐसे में सरकार के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया। नवंबर 1975 में पहला सत्याग्रह शुरू हुआ। उस सत्याग्रह में ओमप्रकाश महाजन आगे रहे। लोहामंडी बाजार से उन्होंने जुलूस निकाला। लोगों को सरकार के खिलाफ पंपलेट बांटे। तभी हरीपर्वत थाने की पुलिस पहुंच गई। सड़क पर ही ओमप्रकाश महाजन की जमकर पिटाई की गई। पुलिस उन्हें थाने ले गई, तो वहां भी जमकर पीटा। अगले दिन जेल भेज दिया गया। भतीजे अनिल महाजन और ललित महाजन बताते हैं कि ओमप्रकाश महाजन को जेल भेजने के बाद उनके परिवार का जोश कम नहीं हुआ। पत्नी सुदर्शना और बेटी सरोज ने भी सत्याग्रह में हिस्सा लिया, तो मां-बेटी को भी पुलिस ने जेल भेज दिया। दो बेटे प्रमोद और अशोक भी इसमें शामिल हो गए। सड़क पर जुलूस निकालते समय इन्हें भी जेल भेज दिया। तब ओमप्रकाश महाजन का संयुक्त परिवार था। बात यहीं नहीं रुकी, मां-बाप, बेटी और दो बेटों के जेल जाने के बाद परिवार का जोश कम होने के बजाए और बढ़ा। भतीजे ललित महाजन बताते हैं कि 2 जनवरी 1976 को वह पंपलेट बांट रहे थे। तभी उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उनकी बहन स्नेह भी गिरफ्तार हुईं। कुछ दिन बाद ही सरस्वती विद्या मंदिर विजय नगर में 12वीं के छात्र अनिल महाजन भी जुलूस निकालते समय गिरफ्तार कर लिए गए। अनिल बताते हैं कि हरीपर्वत थाने लाकर पुलिस ने यहां जमकर ज्यादती की। ओमप्रकाश के भतीजे अर्जुन देव, शंभू महाजन, भारत, अशोक और राकेश महाजन भी जेल में रहे। करीब पांच माह तक ओमप्रकाश महाजन को सलाखों के पीछे रहना पड़ा। ललित महाजन बताते हैं कि उस वक्त पूरे परिवार में 26 लोग थे, इनमें 13 सदस्य तो जेल में ही बंद थे। वह कहते हैं कि यातना के वह दिन याद कर आज भी रूह कांप जाती है।
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